रजनीकांत वशिष्ठ : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार के तीन साल के राजकाज में देश की सवा सौ करोड़ आम जनता के लिये अच्छे दिन आये कि नहीं। इस बारे में जनता की नब्ज टटोली तो आवाज आयी कि दिशा तो सही है पर जाना अभी दूर पड़ेगा। मोटे तौर पर लोगों को फिलवक्त लग रहा है कि देश की गद्दी पर बैठा बंदा बेईमान नहीं है। इस दौरान मोदी सरकार ने क्या क्या किया उसे थोड़े में समेटने की कोशिश करें तो यही सम-हजय आता है कि गरीब समर्थक सरकार की छवि बड़े कायदे से ग-सजय़ी गयी जिस पर आम जन ने यकीन करके मुहर भी लगा दी। या यूं भी कह सकते हैं कि मोदी सरकार अपने कदमों से जनता को यह यकीन दिलाने में कामयाब रही है कि जो भी फैसले वो ले रही है उससे गरीब को फायदा होगा। यही नहीं पिछली यूपीए सरकार ने भी जो गरीब के हित में फैसले लिये थे उन्हें अमल में लाने का काम भी मोदी सरकार ने किया है। एक पत्रकार की हैसियत से जन मन के बीच जाकर जो जान पाया उसके हिसाब से कुछ फैसले ऐसे रहे, जिससे लोगों को महसूस हुआ है कि अच्छे दिन भले अभी न आये हों पर अच्छे दिन आने की आस जगी है।
मोदी सरकार का एक फैसला जिसका संज्ञान सबसे पहले लेना चाहूंगा वो रहा स्वच्छ भारत अभियान। सवा सौ करोड़ की घनी आबादी वाले देश भारत के अंदर नागरिकों में स्वच्छता के लिये जागरूकता फैलाने वाले इस अभियान की जितनी प्रशंसा की जाये वो कम है। स्वच्छता के प्रति आम भारतीय की जो धारणा है वो बहुत ही कमजोर है। जो भारतीय नागरिक लंदन, न्यूयार्क, पेरिस या सिडनी की सड़कों पर कचरा फेंकने से पहले सौ बार सोचता है वही अपने देश को गंगोत्री से लेकर कन्याकुमारी तक कचरा घर बनाने में जरा भी शरम महसूस नहीं करता बल्कि ऐसा करना वो अपनी शान सम-हजयता है। मोदी सरकार के इस काम से न केवल विदेशों में भारत की छवि में सुधार हुआ है बल्कि देश में गंदगी के कारण बीमारियों पर होने वाले आम आदमी के खर्च को कम किया जा सकता है। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनउ में ही पान और गुटके की पीक से लाल सरकारी कार्यालयों की सी-िसजय़यां अब साफ होने लगी हैं। पर बुरी आदतें देर से जाती हैं इस काम को कोई सरकार अकेले नहीं कर सकती, आम जन को अपनी बुरी आदतंे बदलनी होंगी। खास बात ये है कि गरीबों को यह बात सम-हजय में आने लगी है।
आम जन को मोदी सरकार के ये अभियान भले ही रोटी, कपड़ा और मकान की बुुनियादी जरूरतें पूरी करने वाले न लगें पर जब नागरिक का शरीर स्वस्थ रहेगा तभी तो वो कुछ भोग पायेगा। इसके लिये मोदी ने प्रधानमंत्री के बजाये एक योगी की तरह सबको स्वस्थ बनाने की ठान ली। लो कर लो बात अब सरकार कसरत करवायेगी जैसे सवाल उठने लगे। गहराई से सोचा जाये तो मोदी ने योग को भारत के लिये ही नहीं विदेशों का पाॅपुलर वेलनेस मंत्र बना दिया। स्वस्थ तन और मन से भविष्य का भारत बने इसके लिये मोदी सरकार ने योग के संस्कार बच्चों से डालने शुरू कर दिये। योग को ड्राइंग रूम से निकाल कर आम जन के बीच बाहर लाने में बाबा रामदेव के बाद यह मोदी की ही सफल पैरवी थी कि योग आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य की गारंटी के रूप में सामने है।
मोदी सरकार की बैंको में गरीबों का खाता खुलवाने की जन धन योजना को भी गरीब ने हाथों हाथ लिया। वो इस लिये कि आजादी केबाद से अब तक गरीब की पहुंच बैंक तक नहीं हो पायी थी। खासकर देश की 65 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के गरीब शादी ब्याह, खेती पाती के कर्जे के लिये सेठ साहूकारों के चक्रवृद्धि ब्याज के चंगुल में ही फंसे हुए थे और बैंक में खाता खोलना दुश्वार हुआ करता था। इस जन धन योजना को मिेले अपार जन समर्थन से न केवल देश के सरकारी बैंकों की खस्ता माली हालत में सुधार आया बल्कि गरीब को सरकार से राज सहायता सीधे खाते मंे पाने का रास्ता साफ हो गया। समर्थ लोगों से अनुरोध किया अपनी राज सहायता छोड़ो और काफी लोग मान भी गये। फिर प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में जिस तरह से काम धंधा लगाने के लिये सस्ता ऋण बांटा गया। आवास योजना में ब्याज मुक्त ऋण दिलाया गया। उससे गरीबों को लगा कि ये सरकार हमारे लिये कुछ तो कर रही है जो ठोस है।
मोदी सरकार को जिस युवा वर्ग ने सिर माथे पर बैठाया था उसकी सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी थी। वो भी आज के टेक्नो युग में जहां रोबोट, कम्प्यूटर हाथ का काम छीन रहे हों। सबको रोजगार देना इस क्या किसी सरकार के बस में नहीं है। इस बीहड़ समस्या से निपटने के लिये मोदी सरकार ने एक नया फंडा सामने रख दिया कि नौकरी तलाशने के बजाये खुद नौकरी देनेे लायक बनो। स्टार्ट अप इंडिया और मेक इन इंडिया अभियान सामने लाये गये। रिस्पांस बहुत उत्साहवर्द्धक न हो पर देश के युवाओं को अपनी प्रतिभा को सामने लाने का एक अवसर तो दिखायी दिया। लगभग 7 करोड़ युवाओं ने अपना काम शुरू करने के लिये मुद्रा योजना में लोन लिया है। इसलिये अभी अच्छे दिन दिखायी न पड़ रहे हों पर यह तय है कि आने वाले समय में देश के युवा नौकरी देने लायक बन सकते हैं।
प्रधानमंत्री उज्जवला योजना का यहां जिक्र करना इसलिये जरूरी है कि इस योजना ने गांवों की आधी दुनिया को प्रभावित किया है। यह और बात है कि गांवों में खाना बनाने के ईंधन के मद में गांव के घरों का मासिक खर्चा ब-सजय़ जायेगा। जो काम पहले गांव से मिलने वाली लकड़ी या गोबर के उपलों से मुफत में हो जाया करता था उसके लिये अब खर्चा करना होगा। पर ग्रामीण महिलाओं के जीवन में एक क्रांति आ गयी। ये सच है कि बैंक खाता खुलवाने में जो मुसीबत हुआ करती थी वैसी ही मुसीबत पहले एक अदद रसोई गैस सिलिंडर पाने में हुआ करती थी। आज इस उज्जवला योजना से गांवों में रहने वाली गरीब महिलाओं को धुंए से मुक्ति मिली है। यह भी एक ऐसा फैसला है जिससे गरीब खासकर ग्रामीण महिलाओं को लगा कि मोदी सरकार गरीबों की सरकार है। इन सबके उपर नोटबंदी का फैसला सामने आया जिसने देश के आम आदमी की सोच को बहुत गहराई के साथ प्रभावित किया। उस दौरान देश के जिस भी हिस्से में गया आम आदमी को बड़ा संतुष्ट और इत्मीनान से पाया।
किसान, मजदूर, कामगार जिस किसी से भी उस दौरान बात हुई तो उसने पैसे के लिये थोड़ी परेशानी की बात तो कही पर यह भी कहा कि मोदी जो कर रहा है ठीक कर रहा है। हमारे एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र ने इसे गरीब का परपीड़ा सुख का अनुभव बताया। मतलब गरीब के पास तो पहले भी पांच सौ या हजार का नोट नहीं हुआ करता था पर जो बिस्तर, तकियों या तिजोरियों में नंबर दो का पैसा जमा किये बैठे थे उनका बंटाधार हो गया। नोट बदल गये, जो डर था कि विकास ठप हो जायेगा वैसा भी नहीं हुआ। इस फैसले से गरीब खुश रहा या नाखुश इसका पता उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव नतीजों ने दे दिया।
मोदी सरकार के तीन सालों के कामकाज का आकलन करने पर एक और बात सामने आती है। वो ये कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुरू के डे-सजय़ साल तो दुनिया में इंडिया की ब्रांडिग में लगे रहे। उसके बाद सर्जिकल स्ट्राइक या नोटबंदी जैसे फैसलों से उन्होंने आम जन को जहां चैंकाया वहीं गरीब को यह संदेश देने में कामयाब रहे कि यह सरकार उनके लिये काम करना चाहती है। पर चुनौतियां अभी बहुत बाकी हैं। सबसे बड़ी चुनौती किसान की आय ब-सजय़ाने की है। कृषि आधारित देश में किसान की हालत अब भी नाजुक है। उत्तरप्रदेश की नवागंतुक योगी सरकार ने किसानों को कर्जमाफी की थोड़ी राहत जरूर दी है। पर यह सहायता उंट के मुंह में जीरे के समान है। खेती पाती मुनाफे का धंधा जब तक नहीं बनेगा तब तक गांव का युवा शहर की ओर भागता रहेगा। दूसरी चुनौती नंबर दो के काम करने की लोगों की आदत को बदलने की है। चालीस सालों में रिश्वत टेबिल के नीचे से हुमक कर लोगों की नसों में प्रवेश कर गयी है। थाना, कचहरी, कार्यालय की एक एक ईंट भ्रष्टाचार से चुनी जाती रही है। लोग बदलेंगे तभी देश बदलेगा। सरकार कामकाज में पारदर्शिता लाने की ईमानदार कोशिश कर सकती है। फिलवक्त तो आम जन को लगता है कि ये सरकार कोशिश तो कर रही है।