अंकगणित के प्रश्नों जैसे हैं हम हल हो जायेंगे !
राजधानी लखनऊ में एक शुद्ध साहित्यिक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. अवसर था आचमन कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम में आयोजित इस काव्य समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक उपस्थित रहे जिनका स्वागत आचमन फाउंडेशन के संस्थापक युगल डॉ सोनरूपा विशाल एवं विशाल रस्तोगी ने किया. इस काव्य संध्या में देश के दिग्गज कवि जुटे।
स्वागत भाषण में हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए कहा कि लखनऊ साहित्य और तहज़ीब की सरजमीं है. ऐसे में आचमन जैसे गरिमाययी कार्यक्रम होना हम सब के लिए गर्व की बात है. आयोजन के सम्मान सत्र में प्रथम 'आचमन सम्मान' विख्यात वरिष्ठ कवि डॉ हरिओम पँवार को प्रदान किया गया. विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम के अध्यक्ष जितेन्द्र कुमार एवं इंडो अमेरिकन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के चेयरमैन मुकेश बहादुर उपस्थित रहे. सम्मान के इस सत्र का संचालन डॉ अक्षत अशेष ने किया।
सम्मान समारोह के बाद एक शानदार कवि सम्मेलन का आग़ाज़ हुआ. आचमन की संस्थापक डॉ सोनरूपा विशाल के संचालन में मेरठ से आये सुप्रसिद्ध कवि हरिओम पंवार ने अपनी ओजस्वी वाणी से कवि सम्मेलन में कवि धर्म को गान करते हुए आत्ममंथन की धारा प्रवाहित कर दी. उन्होंने कहा-
पैरों में अंगारे बांधे
सीने में तूफान भरे
आंखों में दो सागर आंजे
कई हिमालय शीश धरे
मैं धरती के आंसू का
संत्रास नही तो क्या गाऊँ
खूनी तालिबानों का इतिहास नही तो क्या गाऊँ
इक़बाल अशहर शायरी के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने कहा -
यही जुनून यही एक ख़्वाब मेरा है
वहाँ चराग़ जला दूँ जहाँ अंधेरा है
तेरी रज़ा भी तो शामिल थी मेरे बुझने में
मैं जल उठा हूँ तो ये भी कमाल तेरा है
आपसी सौहार्द और गंगा जमुनी तहज़ीब को जिंदा रखने वाले शायर विनोद श्रीवास्तव ने कहा -
धर्म छोटे - बड़े नहीं होते ,जानते तो लड़े नहीं होते ।
चोट तो फूल से भी लगती है, सिर्फ पत्थर कड़े नहीं होते ।।
कवि सम्मेलन की प्रखर आवाज़ चिराग जैन ने बताया कि साहित्य में कवि और कविता का योगदान क्या है
हम हैं हिन्दी कविता की बुनियाद में गड़ने वाले लोग
कहीं बहुत जमनेवाले और कहीं उखड़ने वाले लोग
कवि-सम्मेलन पर मजमेबाज़ी का तमगा मत टांको
मंचों पर भी मिल जाते हैं लिखने-पढ़नेवाले लोग
शायरा डॉ भावना श्रीवास्तव ने अपनी ग़ज़ल में कहा -
ये मैंने कब कहा अच्छा नहीं है
वो अच्छा है मगर मुझ सा नहीं है
सुख़न कारी है काविश रात दिन की
ये नौ से पांच का क़िस्सा नहीं है
युवा कवि योगेश शुक्ला ने की पंक्ति यूं थी -
जोश में होती कभी होती थकी सी
क्योंकि तन का भार ढोती! पालकी सी
और सुख-दुख मध्य कावा-काटती है
ज़िन्दगी है ख़ूबसूरत नर्तकी सी
कवि सम्मेलनों की सबसे छोटी चिड़िया मनु वैशाली ने कहा -
उलझे उलझे हैं सुलझा लो सिद्ध सरल हो जायेंगे,
पूर्णफलित या समाकलित या फिर अवकल हो जायेंगे,
सिर्फ निरंतरता रखना तुम और जरा सा संयम भी,
अंकगणित के प्रश्नों जैसे हैं हम हल हो जायेंगे !