घोसी विधान सभा के उप चुनाव में एनडीए के प्रमुख घटक दल भाजपा प्रत्याशी की पराजय के बाद सियासी घमासान मचा हुआ है। इस शिकस्त के बाद एनडीए के ही एक अन्य घटक दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर इस समय अधिक ही मुखर दिखायी देते है। शायद वे अपनी मानसिक इन्द्रियो पर काबू नही रख पा रहे हैं। वे विपक्षी नेताओं खासकर समाजवादी पार्टी पर अधिक ही गुस्से में दिखायी देते हैं। कभी वे खुद और दारा सिह चौहान को योगी मंत्रिमंडल में मंत्री बनने का दावा करते है। कभी सपा मुखिया अखिलेश यादव, शिवपाल और प्रो. रामगोपाल यादव को जेल जाने की भविष्यवाणी कर देते हैं।
सुभासपा प्रमुख जिस प्रकार की बयानबाजी कर रहे है उससे यह प्रतीत होता है कि उनकी पार्टी की कोई नीति और सिद्धांत नही है। सिर्फ जाति विशेष का सियासी इस्तेमाल करके अपना राजनीतिक स्वार्थ साध रहे हैं। कुछ इसी प्रकार की विडम्बना दारा सिंह चौहान के साथ भी जुड़ी हुई है। वो मंत्री बनने की लालसा में विधान सभा चुनाव 2022 में भाजपा छोड़कर समाजवादी बने थे। साल 2022 में हुए विधान सभा के आम चुनाव में वे घोसी से विधायक चुने गये। वे अपनी महत्वाकांक्षा पर नियंत्रण नही रख पाये। विधायक और समाजवादी पार्टी दोनो से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गये। भाजपा के बैनर तले घोसी विधान सभा सीट से उप चुनाव लड़े। उप चुनाव में श्री चौहान को जनता ने अवसरवादी मानकर नकार दिया। अन्ततः वे चुनाव हार गये। 2022 में सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर भी सपा गठबंधन का हिस्सा थे। इस दौरान वे भाजपा के खिलाफ आग उगल रहे थे। चुनाव के बाद वे भी सपा गठबंधन से से अलग होकर एनडीए के सियासी हम सफर बन गये।
दूसरी तरफ सुभासपा प्रमुख राजभर अपने जिस सजातीय बिरादरी के सहारे बडे सियासी दलो को आंख दिखाते हैं। उसी सजातीय बिरादरी के नेतृत्व वाले सुहेलदेव स्वाभिमान दल के नेता महेन्द्र राजभर ने उन्हे अपनी विधान सभा जहूराबाद से इस्तीफा देकर उप चुनाव लड़ने की चुनौती दी है। क्या राजभर अपने सजातीय नेता द्वारा दी गयी चुनौती को मंजूर करेंगे। क्या उनमें इतना आत्मबल हे। एनडीए के एक अन्य घटक दल निषाद पार्टी के अध्यक्ष और योगी सरकार के वजीर संजय निषाद पूरी तरह से शांत थे। अचानक उन्होने चुप्पी तोड़ी और ओपी राजभर को बहकने से बचने की सलाह दे डाली। फिर क्या था राजभर उन पर भी भड़क गये। मामले को भाजपा हाईकमान के सामने पेश करने की चेतावनी दे डाली। फिलहाल श्री निषाद किसी प्रकार की निरर्थक टिप्पणी करने से बच रहे हैं। जिस प्रकार से राजभर आक्रामक हैं उससे ऐसा प्रतीत होता है कि उनके ही पैरो तले जमीन खिसक गयी हो।
श्री राजभर ने घोसी पराजय के बाद दावा करते हुए कहा था कि वे स्वयं और दारा सिंह चौहान दोनो योगी सरकार में मंत्री बनेंगे। उनके इस दावे के पीछे भाजपा की कुछ मजबूरियां निहित हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा छोटी और पिछड़ी जातियों के मतदाताओं को लेकर कोई जोखिम नही उठाना चाहती है। भाजपा घोसी उप चुनाव के बाद उसमें सुधार की गुंजाइश देख रही है। इस दावे में उन्होने यूपी भाजपा नेतृत्व को हाशिए पर डाल दिया। उनका कहना था कि एनडीए के मालिक पीएम नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमितषाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा है। उन्होने विरोधी दलों पर चोट करते हुए कहा था कि एनडीए विरोधी दल नही चला रहे हैं। वे दिल थाम कर बैठे, कलेजा फट जायेगा और हार्ट अटैक आ जायेगा। हम दोनों मंत्री बनेंगे।
घोसी विधान सभा उप चुनाव में भाजपा की पराजय के बाद उनके बयानों में स्थायित्व और एकरूपता का अभाव दिखायी देता है। कभी वे कहते है कि चुनाव में समाजवादी पार्टी की ओर से पैसे बांटे गये थे। कभी कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी के उप चुनाव नहीं लड़ने की वजह से भाजपा प्रत्याषी को पराजय का सामना करना पड़ा। फिर कहते है कि दारा सिंह चौहान के प्रति जनता के बीच नाराजगी थी। यदि भाजपा का कोई स्थानीय प्रत्याशी चुनाव लड़ा होता तो भाजपा चुनाव नहीं हारती।
दूसरी तरफ घोसी उप चुनाव में सपा की जीत के नायक बनकर उभरे शिवपाल सिंह यादव ओपी राजभर के बयानो पर चोट करते हैं। वे कहते हैं कि मैने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से विधान सभा के भीतर ही कह दिया था कि राजभर को जल्दी से मंत्री बना दो। उनका उनका कोई भरोसा नही, वे कब हमारी तरफ आ जाये। इन्हे किसी बहुरूपिया से कम न समझो।