पत्तल में भोजन करने की परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है| किसी भी प्रकार के शुभ कार्यों में जैसे शादी ,पूजा-पाठ ,या कोई भी मंगल कार्य हो सभी में पत्तल पर भोजन करना शुभ माना जाता है|
लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे पत्तल पर भोजन करने की परंपरा खत्म सी होने लगी| बदलते समय के साथ लोगों को ऐसा लगता है कि पत्तलों में भोजन करना उनके लिए शर्म की बात है| पत्तल में भोजन गरीब लोग करते है, क्योंकि जो लोग ऐसा सोचते है उन्हें पत्तल के महत्त्व के बारे में पता नहीं होता है| वे पत्तल को केवल एक साधारण सा भोजन करने का पात्र समझते है| उन्हें लगता है केवल भोजन करना है चाहे पत्तल में करे या फिर डिस्पोजल में|
लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि पत्तल में भोजन करना जितना सेहतमंद होता है ,डिस्पोजल में भोजन करना उतना ही नुकसानदायक होता है| जिसकी जानकारी सभी लोगों को होना चाहिए तभी लोग पत्तल में भोजन करने के महत्व को समझ पाएंगे और उन्हें ये भी समझ में आयेगा कि प्राचीनकाल में लोग पत्तल में भोजन करने को इतना महत्व क्यों देते थे? भारत का गौरवशाली इतिहास, भोजन कराने की अद्भुत वैज्ञानिक व्यवस्था। पत्तल में भोजन करने को सही मायने में भोजन पाना या भोजन ग्रहण करना कहा जाता है, जो भारतीय संस्कृति और हमारे धर्म सम्मंत है।
ऐसी बहुत सी अच्छी और महत्वपूर्ण चीजें है जो हमारे पूर्वज हमारे बुजुर्ग हमे विरासत में दे गए पर हम पाश्चात्य संस्कृति अपनाने में अंधे हो गए हमने धीरे धीरे हमारी संस्कृति को ही छोड़ने का काम किया। अब एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी। जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है|
लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है।
जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए।
जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए।
पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है।
केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है ,इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है।
पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है।
पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है।
पत्तले प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है।
अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है।
अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा।
डिस्पोजल के कारण जो हमारी मिट्टी ,नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा।
जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। सबसे बड़ी बात पत्तले ,डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है। ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का विश्व मे कोई सानी नही है।