नेपाल और भारत के साहित्यिक आदान प्रदान को मजबूत करने के लिए नेपालगंज में पहली अप्रैल से आयोजित तीन दिवसीय नेपाल भारत साहित्य संगोष्ठी संपन्न हो गयी. नेपालगंज के ऐतिहासिक महेंद्र पुस्तकालय में एकत्रित हुए दोनों देशों के रचनाकारों, समालोचकों और अनुवादकों ने एकमत से कहा कि हिंदी और नेपाली भाषा को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए हिंदी से नेपाली और नेपाली से हिंदी में बड़े पैमाने पर अनुवाद किये जाने की आवश्यकता है.
यह आयोजन नेपालगंज उप महानगर पालिका के सौजन्य से हुआ एवं इसका संयोजन महेंद्र पुस्तकालय ने किया. इसमें उपमहानगर पालिका के कार्यवाहक मेयर कमरुद्दीन राई, महेंद्र पुस्तकालय के अध्यक्ष बलराम यादव, नेपाल भाषा आयोग के सदस्य डॉक्टर अमर गिरी, गोपाल अश्क और नेपाल प्रज्ञा संस्थान की सदस्य हंसावती कुर्मी शामिल हुईं. इसमें नेपालगंज उपमहानगर के कार्यकारी सदस्य बसंत कनौजिया का योगदान भी उल्लेखनीय रहा.
इस अवसर पर नेपाल के शीर्षस्थ साहित्यकार सनत रेग्मी ने कहा हिंदी के बड़े साहित्यकारों को समझकर हमने हिंदी भाषा को जाना है. पुस्तकालय के पचहत्तर वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका वांग्मय जगत को भेजे गए अपने शुभकामना सन्देश में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री श्री शेर बहादुर देउबा ने कहा था कि पुस्तकालय द्वारा शिक्षा के प्रसार के लिए बिगुल फूंकने का प्रयास सराहनीय है. इस अवसर पर अनेक वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि आठवीं अनुसूची में नेपाली भाषा को शामिल किया जाना ही पर्याप्त नहीं है भारत सरकार को इसके प्रसार के लिए और अधिक प्रयास करना चाहिए. कुछ वक्ताओं का मत था कि प्रसार का ये कार्य नेपाली भाषा के डिजिटल प्रयोग से किया जा सकता है.
संगोष्ठी के दूसरे दिन अवधी के भगीरथ डॉ० राम बहादुर मिश्र ने भारत और नेपाल के संबंध में अवधी भाषा का योगदान विषयक शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत और नेपाल के संबंधों में अवधी भाषा कि भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है और भाषा के माध्यम से दोनों देशों की संस्कृति को सुदृढ़ करने के लिए अवधी सहित अन्य भाषाओं का योगदान भी उल्लेखनीय है. युवा साहित्यकार द्वारिकानाथ पाण्डेय ने नेपाल और भारत के सांस्कृतिक सौहार्द में युवाओं की भूमिका विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज का युवा डिजिटल माध्यम को ज़्यादा पसंद कर रहा है इसलिए पुस्तकों का ई प्रकाशन किया जाना चाहिए.
संगोष्ठी के दूसरे दिन हिंदी और नेपाली भाषाओँ के अनेक रचनाकारों द्वारा कहानी, कविता और ग़ज़ल जैसी विधाओं में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की गयीं. सबसे अधिक प्रशंसनीय रही लखनऊ की संस्था कथा रंग फाउंडेशन की प्रस्तुति. कहानियों के मंचीय वाचन की इस प्रस्तुति को बहुत सराहना मिली. मंच पर उपस्थित रेडियो के तीन कलाकारों नूतन वशिष्ठ, अनुपमा शरद एवं पुनीता अवस्थी ने गौरा पन्त शिवानी की कहानी लाल हवेली तथा अमिता पाण्डेय, कौन्तेय जय एवं द्वारिकानाथ पाण्डेय ने अलग अलग पात्रों के संवादों की नाटकीय प्रस्तुति से समा बाँध दिया. नेपाल भाषा आयोग के सदस्य डा. अमर गिरी ने इस प्रयोग को अपने देश में दोहराने की बात कही.
संगोष्ठी में राजेन्द्र वर्मा ने गीत, अलंकार रस्तोगी ने व्यंग्य, नवनीत मिश्र द्वारा अपनी कहानी, अनमोल मिश्र द्वारा ग़ज़ल एवं कौन्तेय जय द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया. रचना पाठ सत्र में नेपाली भाषा के अतिरिक्त अवधी और भोजपुरी बोलियों में भी रचनाओं का पाठ हुआ. नेपाल भारत साहित्य संगोष्ठी के भारतीय दल के संयोजक रजनीकांत वशिष्ठ ने भविष्य में भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करते रहने की प्रतिबद्धता जताई.
इस अवसर पर गठित नेपाल भारत अवधी परिषद के नवनिर्वाचित सचिव प्रदीप सारंग ने कहा कि दोनों देशों के बीच भाषा, साहित्य, संस्कृति और पर्यटन इत्यादि को सुदृढ़ करने के लिए परिषद् निरंतर प्रयासरत रहेगी.
नेपाली साहित्यकार सनत रेग्मी के संरक्षण में गठित परिषद् में डॉ० राम बहादुर मिश्र को समन्वयक, नेपाल प्रज्ञा परिषद् की सदस्य हंसावती कुर्मी को अध्यक्ष, भारत से मीडिया 4 सिटीजन के संपादक रजनीकांत वशिष्ठ एवं नेपाल के पत्रकार बिजय बर्मा को उपाध्यक्ष, डॉ० आराध्य शुक्ल को मीडिया प्रभारी एवं कार्यकारी सदस्यों को भी सर्वसम्मति से चुना गया.
दोनों दिन के कार्यक्रम का कुशल सञ्चालन मणि अर्याल और हरी प्रसाद तिमिश्मलाई जी ने किया.