संत महामंडल की परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर 1008 स्वामी विद्या गिरि जी महाराज ने देशवासियों एवं प्रदेशवासियों को होली महोत्सव की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आनंद, उल्लास एवं प्रेम प्यार के त्योहार होली का मथुरा तथा वृन्दावन की भांति धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में भी विशेष महत्व है। इसी धरती पर भगवान श्री कृष्ण ने पूरी सृष्टि का कर्म का संदेश दे कर मानव जीवन के विभिन्न रंगों से अवगत करवाया है। महामंडलेश्वर स्वामी विद्या गिरि जी महाराज ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुखारविंद से कुरुक्षेत्र की धरती पर गीता का संदेश ही नहीं दिया बल्कि बाल्यकाल से लेकर महाभारत के युद्ध के समय तक उनका कुरुक्षेत्र की धरती पर बार बार आगमन हुआ है।
उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण को सहस्त्र नामों के साथ नित्य उत्सवमय, सदासुख सौख्यमय, सदा शोभामय और मंगलमय कहा जाता है। भगवान की भक्ति दो प्रकार की बतायी गई है:–वैधी (विधान के अनुसार) और रागानुगा (प्रेममय)। विद्या गिरि ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण प्रेम रस के सागर हैं। इस लिए रसमय ब्रह्म श्रीकृष्ण को रागानुगा भक्ति अधिक प्रिय है। इसलिए भगवान की धरती पर व्रत-त्योहार विधि-विधानमय कम, रसमय अधिक होते हैं। प्रेम की प्रधानता के कारण आनंद, उल्लास एवं मस्ती के उत्सव-त्योहारों की विशेषता है। उन्होंने बताया कि शास्त्रों में प्रमाण है कि भगवान श्री कृष्ण की होली तीनों लोकों से न्यारी है। देवी देवता भी इसे देखने के लिए लालायित रहते हैं। विद्या गिरि जी महाराज ने कहा कि आज समाज में होली के त्योहार से आपसी भाईचारे, प्रेम प्यार और आनंद से भरे जीवन का संदेश देने की आवश्यकता है। देश भर की संस्थाओं आश्रमों में होली के अवसर पर विशेष पूजन एवं अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।