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भारत जोड़ो यात्रा : निखरता राहुल का सियासी चेहरा

इस यात्रा के जरिए जनता से उन्होंने सीधे संवाद स्थापित करने के सूखे को खत्म कर पार्टी की बिगड़ती सेहत को सुधारने की पहल की है। राहुल गांधी ने अपने नाजुक कदमो को माटी से सीधे तौर पर जोड़कर यह साबित कर दिया है कि वे पप्पू नही रहे, मजबूत सियासी योद्धा बन चुके हैं।

निखरता राहुल का सियासी चेहरा
निखरता राहुल का सियासी चेहरा

यूपी की सियासत में कांग्रेस की कमजोरी जग जाहिर है। साल 1989 लोकसभा चुनाव के बाद यूपी की सियासत में कांग्रेस का सूरज डूबने के बाद आज तक उदित नहीं हो पाया है। इस कालखंड से सूबे में कांग्रेस को काफी दुष्वारियों के दौर से गुजरना पड़ रहा है। साल 2009 लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस मुल्क की सियासत में भी काफी कमजोर होती गयी। कांग्रेस की इस कमजोरी के पीछे उसकी वातानुकूलित सियासत और जनता से संवाद के टूटते रिश्ते मुख्य वजह रहे हैं। आज उस कमजोरी को दूर करने के लिए राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा आरम्भ की है। इस यात्रा के जरिए जनता से उन्होंने सीधे संवाद स्थापित करने के सूखे को खत्म कर पार्टी की बिगड़ती सेहत को सुधारने की पहल की है। राहुल गांधी ने अपने नाजुक कदमो को माटी से सीधे तौर पर जोड़कर यह साबित कर दिया है कि वे पप्पू नही रहे, मजबूत सियासी योद्धा बन चुके हैं।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर कुछ सियासी दलो में बेचैनी देखी जा रही है। कुछ राजनीतिक इस यात्रा को यूपी की सियासत से जोड़ कर देख़ रहे हैं। जबकि राहुल गांधी ने अपनी रणनीति में फिलहाल यूपी को दूर रखा है। कांग्रेस के सियासी कदम भले ही कमजोर हों इसके बावजूद वह एक मजबूत दस्तक देने में कामयाब रहे हैं। कांग्रेस को केन्द्र की सत्ता खोने का दर्द आज भी उसे सता रहा है। साल 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस सिर्फ यूपी ही नहीं मुल्क की सियासत में काफी कमजोर हुई है। कांग्रेस के अध्यक्ष रहे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के मकसद और उसकी रणनीति की गहराई में जाये तो आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण एवं अज्यो के जरिए दो सौ सीटे जीतने पर केन्द्रित है। पार्टी के रणनीतिकारो का मानना होगा कि बिहार और यूपी को वहो के क्षेत्रीय दलों की ताकत पर फिलहाल छोड़ना अधिक श्रेयस्कर होगा। यूपी में मृत प्राय पड़े कांग्रेस में प्राणवायु भरना बहुत आसान नही है।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का फोकस उन राज्यों पर अधिक रहा है जहां कांग्रेस का संगठन क्रियाषील और मजबूत है। जिन राज्यो में आज भी कांग्रेस ही भाजपा और उसके सहयोगी दलो को चुनौती देती आ रही है। पार्टी उन राज्यों में अधिक मजबूती के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहती है। जहां तक यूपी के सियासत की बात है फिलहाल वह अधिक दखलंदाजी से खुद को बचा कर चल रही है। ऐसा भी नही है िकवह यूपी की सियासत से पूरी तरह से खुद को अलग कर लिया हो। यूपी और बिहार में भी कांग्रेस अपने सियासी ताकत को आजमायेगी।

साल 2०24 में लोकसभा के आम चुनाव में कांग्रेस की रणनीति में सबसे पहले भाजपा को केन्द्रीय सत्ता से बेदखल करने पर केन्द्रित है। सत्ता से भाजपा की बेदखली के बाद यूपी में कांग्रेस को अपने पैर पसारने में आसानी हो सकती है। सबसे पहले उसे अपने कमजोर संगठन को मजबूत करना होगा। यदि कांग्रेस अपनी रणनीति में कामयाब होकर करीब दो सौ सीटो का आंकड़ा प्राप्त कर लेती है तो सपा, बसपा, सहित अन्य भाजपा विरोधी दलो का बेरोक टोक समर्थन उसे आसानी से मिल जायेगा। कोई भी गैर भाजपा विरोधी दल भाजपा को सत्ता में देखना पसंद नही करता है। ऐसी दशा में कांग्रेस केन्द्र में सरकार बनाने में कामयाब हो सकती है। इसलिए कांग्रेस को बाहर से समर्थन जुटाने में मुष्किल नही होगा। तकरीबन सभी गैर भाजपा विरोधी दलों का एक ही मकसद है। यह सही है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से यूपी की सियासत में उसे कोई खास फायदा होता दिखायी नही देता हे। विपक्षी एकता का संदेष देने के लिए राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के लिए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और बसपा मुखिया मायावती के साथ ही रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को आमत्रंण दे चुके हैं। उनके आमंत्रण के बदले उनकी सफल यात्रा के लिए सभी ने अपनी-अपनी शुभकामनाऐं देकर राहुल की हौसला अफजाई करने का काम किया है।
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Published: 14-01-2023

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