कार्टूनिस्ट गणेश डे कला के माध्यम से प्रसिद्ध रहे भारत के कलाकार यामिनी राय के कर्मभूमि (के घर से लगभग 40 किमी) स्थान बांकुरा वेस्ट बंगाल के थे। गणेश दादा किसी संस्थान से कला की कोई शिक्षा नहीं प्राप्त की थी।
बचपन से रेखांकन करने का शौक़ रहा। दादा ने अपनी जीविका के लिए एक पान की दुकान चलाते थे और खाली समय मे रेखांकन करते थे और इसी को अपनी जीविका का साधन भी बनाया। चित्रकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि गणेश डे ने अपना सफर बतौर कार्टुनिस्ट ‘जनधारा ‘ से शुरु किया और आगे इस कड़ी में गणेश डे 1989 से 1994 तक अनेकों पत्र पत्रिकाओं में रेखांकन किया। ‘The Chronicle’ में भी काम किया ।
साल 1996 से 1998 तक ‘समता लहर’ ‘स्वतंत्र भारत’ और ‘THE TIMES OF INDIA’ , पायनियर, स्वतंत्र भारत,राष्ट्रीय स्वरूप जैसे अख़बारों में भी अपने कार्टुनों के माध्यम से छाप छोड़ी और 1995 से बहुत से सोसल सेक्टर में पूरी तन्मयता से अपने रेखांकन को करते रहे। गणेश डे ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश में अपने रेखांकन के बहुत काम किये।
अपनी भावनाओं, अपनी कला दृष्टि ,अपने विचारों को अपनी कला अभिव्यक्ति का प्रमुख मार्ग बनाया। उन्होने उम्र के अंतिम पड़ाव में भी निरंतर काम किया। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
तमाम कठिनाइयों के बावजूद अपने मन पसंद कार्य करते रहे। उनके हाथ से निकले हुए एक एक रेखाएं समाज की दशा और दिशा दोनों को चुनौती देती है।
वे कहते थे कि " अब डिजिटल समय मे मेरे द्वारा बनाये कार्टून को लेकर चिंतित हूँ क्योंकि अब इस उम्र के पड़ाव में डिजिटल काम करना सम्भव नहीं "। आज कलाकार के लिए 'सम्मान' से अधिक जरूरी है 'काम' और 'पैसा'।
दादा जैसे कलाकार समाज और सरकार दोनो के लिए धरोहर थे। दादा नई पीढ़ी और बच्चो को मुफ्त कार्टून कला सीखने को तैयार रहते थे। जिससे यह कला कभी खत्म ना हो। उनकी बोलती रेखाएं आज भले ही ठहर सी गईं हैं। लेकिन उनकी स्मृतियाँ सदैव हमारे हृदय मे रहेगी।