Media4Citizen Logo
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल
www.media4citizen.com

लोकसभा-24 : असहज होती बसपा

लोकसभा-24 चुनावी क्षितिज पर असहज होती बसपा, 2014 लोकसभा चुनाव के बाद लगातार गिरा सियासी ग्राफ  गठजोड़ की बुनियाद पर चार बार सीएम बनी मायावती 

असहज होती बसपा
असहज होती बसपा
18वी लोकसभा के लिए चुनावी जंग षुरू हो चुकी है। षह-मात का खेल जारी है।  यूपी की सियासत में मुख्य मुकाबला इंडिया गठबंधन और भाजपा अर्थात एनडीए के बीच माना जा रहा है। बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याषी  चुनावी  मैदान में है जरूर लेकिन जनता द्वाारा इन्हे कोई खास तवज्जों नहीं दिया जा रहा है।    
बसपा ने 17वी लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के जरिए दस सीटे जीती थी। उन दस सीटो को महफूज रखने की सबसे बड़ी चुनौती है। आज बसपा की साख पर संकट के बादल मंडरा रहे है।   
 
2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। बसपा-सपा ने करीब दो दषक से अधिक पुरानी दुष्मनी को भुलाकर 2019 का लोकसभा चुनाव एक साथ मिलकर लड़ा था। जिसका फायदा भी बसपा को ही मिला। बसपा ने षून्य से दहाई का आंकड़ा छू लिया। जबकि समाजवादी पार्टी अपने पुराने आंकड़े पर ही सिमट गयी। चुनावी नतीजे आने के 12 दिनों बाद बसपा ने गठबंधन को तोड़ दिया। 
 
सियासी धरातल पर गठजोड़ो का लाभ हमेषा बसपा ने उठाया। 1993 में हुए विधान सभा के  चुनाव में भाजपा के ज्वार को रोकने के लिए सपा व बसपा के बीच गठजोड़ हुआ। सपा 256 सीटो पर चुनाव लडकर 109, और बसपा 164 सीटो पर चुनाव लड़कर 67 सीटो पर जीत दर्ज की थी। पिछड़़ो और दलित समीकरण ने भाजपा के सियासी ज्वार को रोक दिया। सपा-बसपा गठबंधन से मुलायम सिंह यादव यूपी के सीएम बने। 1 जून 1995 को मुलायम सिंह को बसपा द्वारा समर्थन वपास लेने की भनक लगी।
 
2 जून को मायावती स्टेट गेस्ट हाउस में अपने विधायको के साथ बैठक कर रही थी। कथित सपाइयो द्वारा उन पर हमला कर दिया गया। इसी दिन बसपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया। मुलायम सरकार गिर गयी।  भाजपा के समर्थन से 3 जून 1995 को मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनी। भाजपा के समर्थन के बाद भी मायावती कल्याण सिंह पर हमलावर रही।
 
18 अक्टूबर 1995 को भाजपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया। मायावती का पहला कार्यकाल 4 महीने का रहा।
साल 1996 में बसपा ने कांग्रेस से समझौता किया। बसपा 300 सीटो पर चुनाव लड़ी। लेकिन महज 67 सीटे जीत पायी। 1997 में मायावती ने पलटी मार दी। भाजपा और बसपा मुखिया मायावती के बीच 6-6‘ महीने सीएम बनने का समझौता हुआ। भाजपा के समर्थन से मायावती 21 मार्च 1997 को दूसरी बार सीएम बनी। छह महीने का अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद 21 सितम्बर 1997 को उन्होने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।
 
कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने।  एक महीने का कार्यकाल भी नहीं बीता था कि मायावती ने कल्याण सिंह पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाकर 10 अक्टूबर 1997 को समर्थन वापस ले लिया। लेकिन सियासी कौषल के धनी कल्याण सिंह ने कांग्रेस, बसपा, जनता दल और बीकेकेपी के सदस्यो को तोड़कर सरकार बचा ली। कल्याण सिंह के सियासी कौषल के बूते राम प्रकाष गुप्त और राजनाथ सिंह भी इसी कालखड में मुख्यमंत्री बने। मायावती तीसरी बार 3 मई 2002 को भाजपा के ही सहयोग से मुख्यमंत्री बनी। 29 अगस्त 2003 तक पद पर रही। साल 2007 में हुए विधान सभा के चुनाव में बसपा को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का जनादेष मिला।  इस कालखं डमें मायावती ने कार्यकाल पूरा किया। 
 
साल 2018 में हुए गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के उप चुनावों ने सपा-बसपा को करीब लाने का कारक बने। दोनो सीटो पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याषियो ने जीत दर्ज की। यहां तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वाली गोरखपुर सीट भी सपा ने जीत लिया। बसपा का यही समर्थन साल 2019 लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार कर गया।  
 
सूबे की सियासत में अपना लोहा मनवा चुकी मायावती आज अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है। 2007 के विधान सभा चुनाव में बसपा ने 206 सीटो पर जीत दर्ज की थी। उसे 30.43 फीसदी मत मिले थे। लेकिन 2012 के विधान सभा के चुनावा में समाजवादी पार्टी ने बसपा को पराजित कर सत्ता वापस ले ली। इस चुनाव में बसपा को 80 सीटे मिली । इसके बाद बसपा का सियासी ग्राफ लगातार गिरता गया। सबसे बुरा हाल 2022 के विधान सभा चुनाव में हुआ। बसपा बलिया जिले की एक मात्र रसड़ा सीट ही जीत पायी।  2017 के विधान सभा चुनाव में बसपा के विधायको की तादाद घटकर 19 रह गयी थी। मत फीसद घटकर 21 पर आ गया। इस चुनाव में उसे 12.79 फीसदी मत मिले थे।
 
- जेपी गुप्ता 
 

Published: Not published yet

Media4Citizen Logo     www.media4citizen.com
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल