कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य आम जन की लोक भाषा और बोलियों का उत्थान और उनके महत्व पर प्रकाश डालना था जिसके अंतर्गत हिंदी उर्दू ,संस्कृत, भोजपुरी, अवधी, कन्नौजी, मैथिली और पंजाबी जैसी अनेक भाषाओं में प्रस्तुतियां दी गईं । कार्यक्रम की शुरुआत में अनमोल मिश्रा जी ने संस्कृत भाषा में माँ वीणापाणि की वंदना की इसके उपरांत देवांश तिवारी और अर्पित सिंह जी ने बड़े ही मनोहर रूप से कार्यक्रम का संचालन किया ।
एक तरफ कैफ़ ग़ाज़ीपुरी जी ने उर्दू अदब की तालीम और शुमारी से सभी को रूबरू करवाया तो वहीं दूसरी ओर प्रशांत 'प्रखर' ने अपने अवधी किस्से "रामखेलावन दादा और तीन ठग" से सभी को खूब हंसाया ।
संस्कृत में एक सुगठित वक्तव्य अर्चना तिवारी जी ने प्रस्तुत किया इसके उपरांत तहज़ीब, नज़ाकत, और नफ़ासत के शहर लखनऊ में उर्दू के खासे विकास पर वर्तिका पाण्डेय जी ने बड़े ही करीने से रोशनी डाली । उन्होंने मीर, फैज़, ग़ालिब और मजाज़ जैसे बेशुमार शायरों की ग़ज़लों और नज़्मों से समां बांध दिया ।
"गुलों में रंग भरे बाद ए नौ बहार चले, चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले..." सुनते ही लोग झूम उठे ।
कौन्तेय जय जी ने प्रेमचंद की हिंदी कहानी "गिल्ली डंडा" को अवधी में बड़े ही चुटले ढंग से प्रस्तुत किया तो वहीं अनमोल मिश्रा जी ने कन्नौजी कहानी "राजा बुकरकना" सुना कर खूब तालियां बटोरीं । पंजाबी भाषा में अंशिका शुक्ला ने अमृता प्रीतम जी की मशहूर कविता "मैं तेनु फेर मिलांगी" पढ़कर लोगों का मन जीत लिया ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉक्टर रश्मि कुमार मौजूद रहीं जिन्होंने अपने गीत से सभी को प्रेरित किया । साथ ही प्रो. अल्का पाण्डेय जिन्होंने बांग्ला गीत "अमार सोनार बांग्ला" तथा प्रो. अशोक कुमार जी भी मौजूद रहे जिन्होंने उड़िया भाषा में जगन्नाथ पुरी का वर्णन किया ।
- अंशिका शुक्ला