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स्टालिन को तमिलनाडु की कमान : बड़ी जीत बड़ी चुनौती

मधुवेल करुणानिधि स्टालिन को काफी लम्बा इन्तजार करना पड़ा. अंतत: वह तमिलनाडु  के मुख्यमंत्री हो ही गये. २०१९ के लोकसभा चुनाव में द्रमुख की व्यापक जीत को देखते हुए उन्हें और भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने साबित कर दिया है कि दिवंगत जयललिता की गैरमौजूदगी में भी ए आई ए डी एम के को  यूँ ही नहीं खारिज किया जा सकता. अब स्टालिन के सामने बड़ी चुनौती सक्रिय विपक्ष तो है ही बल्कि कोविड १९ से भी मुकाबला करने की भी है. सिर पर नाचती सबसे बड़ी दूसरी चुनौती भारी कर्ज है.

बड़ी जीत बड़ी चुनौती
बड़ी जीत बड़ी चुनौती

 

मधुवेल करुणानिधि स्टालिन को काफी लम्बा इन्तजार करना पड़ा. अंतत: वह तमिलनाडु  के मुख्यमंत्री हो ही गये. १९६७ से द्रविड़ दलों का दबदबा कायम होने के बाद से अब तक वो तमिलनाडु पर २१ सालो तक शासन कर चुके हैं. डी.एम.के. की ओर से राज्य में तीसरे मुख्यमंत्री बनेंगे. एक दशक तक विपक्ष में रहे और ५ बार मुख्यमंत्री रहे पिता करुणानिधि की छाया से मुक्त होने बाद स्टालिन ने ६ अप्रैल को हुए चुनावों में १३ दलों के अलायन्स को अच्छी जीत दिलाई है.

२०१९ के लोकसभा चुनाव में द्रमुख की व्यापक जीत को देखते हुए उन्हें और भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने साबित कर दिया है कि दिवंगत जयललिता की गैरमौजूदगी में भी ए आई ए डी एम के को  यूँ ही नहीं खारिज किया जा सकता. अब स्टालिन के सामने बड़ी चुनौती सक्रिय विपक्ष तो है ही बल्कि कोविड १९ से भी मुकाबला करने की भी है. सिर पर नाचती सबसे बड़ी दूसरी चुनौती भारी कर्ज है. ३१ मार्च २०२० को राज्य पर कुल कर्ज ४.९ लाख करोड़ था और मार्च २०२१ तक बढ़ कर ५.७ लाख करोड़ हो जाने का अनुमान है. एक अन्य चुनौती वादे के मुताबिक युवाओं और महिलाओं को रोजगार मुहय्या करना भी है. पार्टी ने स्थानीय लोगो को नौकरियों में ७५% आरक्षण देने के लिए कानून बनाने का वायदा किया है और ५ साल तक १० लाख नौकरियां देने का लक्ष्य निर्धारित किया है और रोजगार सर्जन करने परिवारों की आय बढ़ाने राज्य में उद्योगों को पुनर्जीवित करने और अर्थ्व्यव्स्था को गति प्रदान करने की कोई योजना कागजो पर नही है.

नई पीढ़ी के नेतृत्व में हुए पहले विधानसभा चुनाव में स्टालिन की द्रमुक ने निर्णायक जीत हासिल की है. पिछले २५ सालों में वो पहली बार हुआ है की द्रमुक ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया है वह भी तब जबकि उसने ६१ सीटे सहयोगी दलों के लिए छोड़ी थी. हालाँकि अन्नाद्रमुक  ने भाजपा से हाथ मिला लिया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा अमित शाह दोनों ने तमिलनाडु में कई जगह प्रचार किया था लेकिन इसका कोई बहुत ज्यादा फायदा नही हुआ. इन परिणामो से अन्नाद्रमुक की सहयोगी पी.एम.के. को सबसे ज्यादा निराशा हुई होगी. इसने वन्न्यार समुदाय के लोगो को अति पिछड़ा वर्ग में १०.५% आरक्षण दिलवाने की लड़ाई लड़ी थी लेकिन इसका चुनाव में वांछित परिणाम नही निकला. स्टालिन ने कट्टर केंद्र विरोधी द्रविड़ ग्रुप को बनाए रखा जिसके मूल में ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रीय पहचान और संघी भावना को बढ़ाना शामिल है. करुणानिधि के विपरीत वह अधिक शांत सतर्क और सक्षम प्रशाशक हैं. वह साफ़ सुथरी छवि रखने में भी विश्वास रखते है.

अन्नाद्रमुक  की भी स्टालिन पर पैनी नजर रहेगी और करुणानिधि और जयललिता के दिनों जैसी स्थिति नही होगी जिसमे दोनों चतुराई से एक ही समय में विधानसभा में मौजूद होने बचते थे. अन्नाद्रमुक की हार में भाजपा कारक का बहुत बड़ा योगदान है. अब अन्नाद्रमुक का अल्पकालिक लक्ष्य विधयक दल को सक्रिय और एकजुट रखना होगा. जबकि दीर्घ काल में उसे शशिकला और दिनकरण सहित सभी गुटों के बीच व्यापक एकता की तैयारी करनी होगी. इन्हीं हारे हुए दलो में भाजपा और सीमन के नेतृत्व  वाला तमिल राष्ट्रवादी दल नाम तमिझार कांची है. सभी २३४ सीटो पर लड़ने वाली यह एक मात्र पार्टी थी. फिलहाल राज्य की राजनीती में दो बड़े द्रविड़ समूह के बीच का खेल है. क्या अगले ५ वर्षो के दौरान रजनीकांत और भाजपा अपनी कोई अलग भूमिका तैयार कर पाएँगे. यह प्रश्न अभी प्रासंगिक है.


Published: 16-05-2021

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