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बेलगाम घोड़े तो दोनो ओर हैं

<p>विकल्प शर्मा : भोपाल : बड़े राजनीतिक दलों के लिए टिकट वितरण का विचार मंथन समुद्र मंथन जैसा ही होता है. परिणाम में विष भी निकलता है और अमृत भी. अमृत के लिए महामारी होती है, किसी भोले को विष पीना पडता है. हाल ही में पंजाब में सफेद घोडे़ को काला पोतकर

बेलगाम घोड़े तो दोनो ओर हैं
बेलगाम घोड़े तो दोनो ओर हैं

विकल्प शर्मा : भोपाल : बड़े राजनीतिक दलों के लिए टिकट वितरण का विचार मंथन समुद्र मंथन जैसा ही होता है. परिणाम में विष भी निकलता है और अमृत भी. अमृत के लिए महामारी होती है, किसी भोले को विष पीना पडता है. हाल ही में पंजाब में सफेद घोडे़ को काला पोतकर बेचने का प्रकरण सामने आया. राजनीति में तो प्रायः घोड़े काले ही होते हैं. बड़े नेता अपने अपने घोड़ों को सफेद पोतकर टिकट दिलवाने पर आमादा रहते हैं. जिन्हें टिकट नहीं मिलता, वे घोडे मनमानी करते और मैदान रौंदने लगते हैं. अतः टिकट की लगाम मजबूत और बेलगाम घोड़ों पर ही प्रायः लगाई जाती है.
टिकट वितरण में जिताऊ ही नहीं, टिकाऊ की भी जरूरत होती है और ऐसे में सर्वेक्षणों के शिखर दरकने और मान्यताओं का मन मलिन होने लगता है. राहुल गांधी कहते है कि पैराशूट उम्मीदवार नहीं चलेगा. प्रदेश कांग्रेस कहती है वफादारी का वचन दिया जाए तो चलेगा. राजनीति को वैसे ही वारांगना कहा जाता है. उसमें उसमें वफादारी का ताम्रपत्र कब काला पड़ जाये कौन जाने. मगर दूध का जला छाछ को फूंक फूंककर पीता है. भाजपा का गिद्ध कब कांग्रेस के खरगोश को उठा ले जाए. अतः वचनों की झाड़ियां तैयार की जा रही है और प्रदेश प्रभारी बावरिया प्रदेश भर में संगठन में पद होने के पटटे गले में बांधते फिर रहे हैं. प्रदेश संगठन को ही पता नहीं हो तो भी क्या हुआ.
भाजपा का अखाड़ा भोपाल में सजा है. आयोजित या प्रायोजित सर्वेक्षणों के एनस्थिशिया लगे बाण उसके पहलवानों की चेतना पर आक्रमण कर रहे हैं और जिन बाबाओं की खुरदुरी दाढ़ी पर उसने अपना कोमल हाथ फिराया था, उनकी दाढ़ियां ही उसके हाथ में रह गई हैं. कम्प्यूटर बाबा का वायरस कई बाबाओं में फैल गया है और सागर के संत सत्ता का वासंती चोला पहन मारक और सम्मोहन मंत्र पढ़ते हुए काजल की कोठरी में प्रवेश करने को लालायित हैं. दहाड़ों और पुकारों को शांत करने भाजपा के रिंग मास्टर को जन आशीर्वाद यात्रा का समापन कर रिंग में उतरना पड़ा है. नाराजों को साध या समझाकर वे जनादेश यात्रा पर निकलेंगे.
चुनावी दृश्य मजेदार है. छोटे सभी दल भाजपा को हराना मगर कांग्रेस को जिताना नहीं चाहते. भाजपा अकेली लंगोट घुमा रही है तो कांग्रेस बसपा, गोंगपा या सपा द्वारा ठुकराए जाने पर अकेले तलवार भांजने को मजबूर है. कोशिश है कि जयस उसकी ढाल बन जाए मगर वह इतनी भारी पड़ रही है कि कांग्रेस से उठाए नहीं उठ रही है. युद्ध कौशल भी अपनी तरह का है कांग्रेस वाकबाण चला रही है तो भाजपा प्रदेश भूमि का पूरा मैदान रौंदे दे रही है. कांग्रेस के नेता दिल्ली में चैन से अपनों अपनों का चयन करवाने में जुटे हैं. तो शिवराज सिंह चौहान बेचैन रुद्र की तरह पूरे प्रदेश को पसीने से तर किए दे रहे हैं. भाजपा का युवा संगठन अपने यौवन को पार्टी पर न्यौछावर करता फिर रहा है. तो कांग्रेस के युवा गगनभेदी जयकारे करते थके जा रहे हैं. कांग्रेस असंतोष की हवा पर सवार होकर सिंहासन तक पहूंचने की उम्मीद में है. तो भाजपा अपने शासन में किए गए उपकारों का स्मरण करवाकर असंतोष की हवा निकालकर सिंहासन पर जमे रहने को कटिबद्ध है. नेताओं की सभाओं में भीड़ भी है, जयकार भी है और हाहाकार भी है.
मतदान कुछ दूर है मगर भाजपा ने कमर बहुत पहले से कस रखी है. वह स्वयं भी किसी हद तक केडर आधारित पार्टी है और अब ‘‘संघं शरणं’’भी है. संघ शक्ति तो है किंतु उसमें राजनीतिक दृष्टि या कूटनीतिक बुद्धि का अभाव भी है. अतः उसका सहयोग तो सबल करेगा किंतु यदि नियंत्रण हुआ तो अलाभकारी भी हो सकता है. शिवराज जैसा कोई लोकप्रिय नेता भी कांग्रेस के पास नहीं है, जो अथक परिश्रम कर सके. कांग्रेस के नेता परिश्रम तो करते हैं मगर आराम के साथ. बड़े नेताओं में कांग्रेस के राहुल गांधी पूरा प्रदेश नाप रहे, समर्थन भी प्राप्त कर रहे और हर यात्रा से पहले मंदिर में प्रार्थना कर राम भरोसे भी लग रहे हैं. भाजपा से नरेन्द्र मोदी को पारी अभी शुरू करना है और सब जानते हैं कि छक्के या चौके से कम वे लगाते नहीं. मान लो असंभव सा राम मंदिर अध्यादेश वे ले आएं तो परिणति अध्यादेश की जो हो जनादेश में तो वह क्रांतिकारी परिवर्तन कर ही देगा.


Published: 30-10-2018

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