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वन भूमि पर किसान को मालिकाना हक़

विकल्प शर्मा : नयी दिल्ली : केंद्र सरकार और लगभग सभी भाजपा शासित राज्य सरकारों ने किसानों को लेकर अपने बजट में भरपूर दरियादिली दिखाई है. उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से शुरू हुआ किसानों की उपेक्षा का मसला आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए एक बड़ी समस

वन भूमि पर किसान को मालिकाना हक़
वन भूमि पर किसान को मालिकाना हक़
विकल्प शर्मा : नयी दिल्ली : केंद्र सरकार और लगभग सभी भाजपा शासित राज्य सरकारों ने किसानों को लेकर अपने बजट में भरपूर दरियादिली दिखाई है. उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से शुरू हुआ किसानों की उपेक्षा का मसला आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए एक बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है. किसान कहते हैं उन्हें फिर ठगने की कोशिश की जा रही है. शायद उनका यही आक्रोश नाशिक से लेकर मुंबई की सड़कों तक देखा गया. एक बार को महाराष्ट्र के देवेन्द्र फडनवीस भी घबरा गए और उन्हें लगने लगा कि इस बार मामला आश्वासन से नहीं टलने वाला. लगभग 15 हज़ार आदिवासी और 20 हज़ार किसान जब पिछले दिनों नाशिक से मुंबई के लिए निकल पड़े तब उनके नेता डॉक्टर अजित नेवले ने तय कर लिया था की सरकार से लिखित आश्वासन लिए बिना वे वापिस नहीं आने वाले. उनकी मांगें नयी नहीं थीं लेकिन जिस तरह से वे अडिग थे उससे सरकार को लगा था कि कोई ठोस पहल किये बिना मामला सुलझने वाला नहीं था. देवेन्द्र फडनवीस सरकार ने भारत सरकार के प्रति किसानों में बढ़ते आक्रोश को समझा और नेवले तथा अशोक दबले की अगुवाई वाली अखिल भारतीय किसान सभा की 12 साल पुरानी मांग को प्राथमिकता देते हुए ठोस आश्वासन दिया. दरअसल वर्षों से वन भूमि पर अपनी आजीविका चला रहे आदिवासी यह भूमि अपने नाम करने की मांग करते आ रहे हैं. हर नयी सरकार और मुख्यमंत्री से किसानों की यही उम्मीद थी. कई बार सरकार के प्रतिनिधियों ने किसानों को केवल आश्वासन ही दिया. लेकिन न तो उनके हालत ही बदले और न ही किसानों ने अपनी मांगें छोड़ी. इस संबंध में केंद्र सरकार ने 2006 में वन भूमि मालिकाना हक़ क़ानून बनाया लेकिन उसका अमल महाराष्ट्र में बहुत धीमी गति से हो रहा है. वजह यह रही कि सत्ता पर काबिज़ लोगों ने न तो कभी किसानों के हित साधने की गंभीरता दिखाई और न ही किसान संगठन की ओर से कोई ठोस चुनौती मिली. लेकिन इस बार यह मामला उल्टा था. पुणे से जिस दिन किसानों का हुजूम चला फडनवीस को ये खबर लग गयी थी कि इस बार कुछ हल तो निकालना ही होगा. किसान मुंबई पहुंचे और सरकार के प्रतिनिधियों से संवाद कायम करने लगे. बातचीत में फडनवीस ने प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया कि उनके वन भूमि मालिकाना हक़ के दावों पर चाह महीनों में निर्णय ले लिया जायेगा. जिन किसानों को इसके लिए अपात्र किया गया है उनके दावों पर फिर से जाँच होगी. किसानों को अपात्रता की सूची से हटाने के लिए सरकार मदद करेगी. हैरान करने वाली बात ये है कि किसानों को यह आश्वासन सात सालों में तीसरी बार दिया गया है. तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने रायगढ़ में नाशिक और धुले से आये आदिवासियों को व्यक्तिगत और समुदाय के स्तर पर वन भूमि के मालिकाना हक़ देने की बात कही थी. उस वक्त चौहान सरकार के खिलाफ किसानों की नाराजगी को दूर कर दिया गया था पर किसानों की मांग पहले की तरह बनी रह गयी और आश्वासन धरे रह गए. दो साल पहले मार्च में ही करीब एक लाख आदिवासी किसानों ने इस मांग के चलते धरना दिया था. फडनवीस ने दो बार मंजूरी दी और दोनों ही बार बात आगे नहीं बढ़ी. पिछले दस साल में वन भूमि मालिकाना हक़ के केवल 31 प्रतिशत दावों को मान्यता मिली. जबकि लगभग ढाई लाख किसान अपात्र घोषित कर दिये गए. अब फडनवीस सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि इन ढाई लाख किसानों की अपात्रता कैसे दूर करे. इस पूरे मसले में शरद पवार की पार्टी शुरू से गंदा खेल रही है लेकिन लगता है फडनवीस इस बार भारी पड़ रहे हैं.

Published: 21-03-2018

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