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बोल रहा है मोदी का करिश्माई विकास

गुजरात : विकल्प शर्मा : विकास का कोई धर्म नहीं होता और ना ही उनकी कोई जाति होती है. यह लोगों को तोडने का नहीं जोडने का काम करता है. शायद हिन्दुस्तान में गुजरात पहला ऐसा राज्य है, जिसने यह सिद्ध कर दिखाया की यह विकास दो-चार-पांच सालो में नहीं हुआ, बल्

बोल रहा है मोदी का करिश्माई विकास
बोल रहा है मोदी का करिश्माई विकास
गुजरात : विकल्प शर्मा : विकास का कोई धर्म नहीं होता और ना ही उनकी कोई जाति होती है. यह लोगों को तोडने का नहीं जोडने का काम करता है. शायद हिन्दुस्तान में गुजरात पहला ऐसा राज्य है, जिसने यह सिद्ध कर दिखाया की यह विकास दो-चार-पांच सालो में नहीं हुआ, बल्कि पिछले १३ सालो से यह अपनी गति को रफ्तार दे रहा है. गौरतलब है कि मोदी का विकास सीधे तौर पर गरीब को कनेक्ट कर रहा है, जिसका पूरा असर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव और उसके बाद निकाय चुनाव में साफ तौर पर देखा गया. उत्तर प्रदेश का गुजरात के चुनाव पर असर पडना स्वाभाविक है, क्यों कि, गुजरात में उत्तर भारतीय मतदाताओ की संख्या बड़ी संख्या में है, जो सीधे तौर पर मोदी से जुडते हैं. 2002 में ही गुजरात अपने विकास की परिभाषा लिखने लगा था. आज जब वह देश के प्रधानमंत्री हैं तो इतना कहा जा सकता है कि 2014 में पूरे देश में गुजरात के माडल का ही संदेश गया. 2017 में गुजरात में छह महीने से कोंग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी घूम घूम कर यह भ्रम फैलाने की कोशिश करते रहे हैं कि विकास पागल हो गया. इसका जवाब गुजरात का मतदाता कोंग्रेस को देने के लिये तत्पर बैठा है. कच्छ से लेकर बडौदा तक केवल यही कहा जा सकता है कि गुजरात में मोदी के विकास का करिश्मा बोल रहा है. तो सवाल उठता है कि मोदी और भाजपा से कौन नाराज है. इसका सीधा सा जवाब है कि मीडिया का एक तंत्र यह हवा देने की कोशिश कर रहा है. इस बार लडाई थोडी कठिन है. मीडिया4सिटीजन ने गुजरात की 100 सीटों का दौरा करने के बाद पाया कि गुजरात में भाजपा की यह सबसे बडी जीत होगी और यह इतिहास जनता लिखने की तैयारी कर रही है. पहले बात विकास की. विकास अलग अलग राज्यो में अलग अलग तरह से पारिभाषित किया जाता है लेकिन आम तौर पर विकास के रुप में बीएसपी फैक्टर को ही महत्व दिया जाता है. बीएसपी फैकटर मतलब बिजली - सडक - पानी लेकिन गुजरात राज्य इस फैकटर से अलग होकर कहानी लिखता है. यहां हर गांव में लगातार बिजली मिल रही है, यदि काग्रेस को थोडा शक हो तो किसी भी गांव के किसी भी पोल पर हाथ लगा कर देख लें, टेस्टिंग कर ले, वास्तविकता सामने आ जायेगी. कांग्रेस के समय में कृषि की ग्रोथ 600 करोड रुपये थी, यह अकेले गुजरात राज्य में 1700 करोड तक पहुच गई है. काग्रेस के समय एक कृषि विद्यालय था, आज 4 कृषि विश्वविद्यालय हैं. लगातार यह आरोप लगाया जाता है कि मुस्लिम विद्यालयो पर ध्यान नहीं दिया जाता है. मौलाना आजाद विश्वविद्यालय के उपकुलपति और मोदी का मुस्लिम चेहरा कहे जाने वाले जफर सरेशवाला साफ तौर पर कहते है कि में भाजपा में नहीं हूँ लेकिन में मानता हुं की जब तक मोदी प्रधानमंत्री हैं इस देश और गुजरात राज्य के विकास को रोक पाना थोडा मुश्किल होगा. अकेले अहमदाबाद में एक मुस्लिम विद्यालय था, आज उनकी संख्या 6 है. 2002 के बाद से गुजरात को किसी दंगे से नहीं गुजरना पडा. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि गुजरात का मुसलमान आज पूरी तरह से सुरक्षित है. आज गुजरात को नर्मदा का पानी मिलने जा रहा है. इतना बड़ा रीवरफ्रन्ट बन गया जो कोंग्रेस के समय में गंदा नाला हुआ करता था. मीडिया के कुछ तंत्र ने यह भ्रम फैलाने की कोशिश की कि टैकसटाईल और हीरा व्यवसाय के लोग मोदी की नीतियों से नाराज हैं और वह भाजपा से दूर जा रहे हैं. सूरत को इसका गढ़ माना जाता है. दोनो ट्रेड के सूरत के कारोबारियों ने मीडिया की इस हवा को सिरे से ख़ारिज कर दिया. सूरत शहर का सबसे बडा सत्य यह है कि इस शहर में गुजरातियों की संख्या सबसे कम है. यहां पहले नंबर पर महाराष्ट्रीयन और उसके बाद उत्तर भारतीयों की बडी संख्या है. गुजराती केवल 30 प्रतिशत हैं तो कौन है यहां निर्णायक. सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि उत्तर भारतीय यहां बड़ा उलटफेर कर सकते हैं. भाजपा के नवसारी के सांसद सी. आर. पाटील स्वयं महाराष्ट्रीयन है और यहां की लिंबायत विधानसभा सीट महाराष्ट्रियन बहुल है. यहां मुस्लिम का दबदबा भी अच्छा खासा है. जो इस बार काग्रेस की कमजोर कड़ी बनकर उभर रही है. मुस्लिम पर बोलने से क्यों बच रही है कोंग्रेस. उत्तर प्रदेश की चौट से आहत राहुल गांधी नहीं चाहते कि वो मोदी के ध्रुवीकरण के जाल में फॆंसे. इसी वजह से काग्रेस ने मुस्लीम से किनारा कर लिया है और अहमद पटेल को नीचा दिखाने के लिये काग्रेस ने टिकटो का प्रतिशत भी घटा दिया. मुस्लिम का गुबार अंदर ही अंदर फूट रहा है, जो कोंग्रेस की परेशानी का बडा कारण बनेगा. फिर बड़ा सवाल यह है कि कोंग्रेस ने इसके अलावा बडी गलती क्या की है. इसे गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और कुछ समय तक कोंग्रेस का बडा चेहरा रहे शंकरसिंह वाघेला से अच्छी तरह समझा जा सकता है. वाघेला सीधे तौर पर कहते है की कोंग्रेस बांटने की राजनीति कर रही है, समाज को भी और गुजरात को भी. कोंग्रेस के लिये यह हादसे और शर्म की बात है कि सबसे पुरानी पार्टी कहलानेवाली कांग्रेस ने तीन ऐसे लोगों से हाथ मिलाया है जिनका कोई अस्तित्व नहीं है. यह कोंग्रेस के पतन का अंतिम पडाव है. कहना ना होगा कि हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवानी का हाथ पकडकर अपने लोंगों का मनोबल गिराया है. साथ ही कोंग्रेस के अंदर आंतरिक संघर्ष को भी हवा दी है. कहा यह जा रहा है कि तीन की लडाई तीन से है. भरतसिंह सोलंकी, शक्तिसींह गोहील ओर अर्जुन मोढवाडीया इस गठबनधन का अंदर ही अंदर विरोध कर रहे हैं. मीडिया में हार्दिक पटेल को नायक बना के रख दिया जबकि पटेल समाज नें उसे सिरे से ख़ारिज कर दिया है. यह बात खुलके सामने आ चुकी है कि हार्दिक पटेल और राहुल गाधी में बडी आर्थिक डील हुई, जिसकी जानकारी समाज को नहीं दी गई और यही डील कांग्रेस और हार्दिक दो पर भारी पड़ने वाली है. लेकिन पटेल समाज को लेकर कुछ गलतिया भाजपा से भी हुई है, जिन्हे सुधारने की कोशिश की जानी चाहीये. आनंदीबेन को क्युं हटाया गया, यह विषय नहीं है, विषय है जिस समय उन्हे हटाया गया वह समय गलत था. फिर विजय रुपानी को मुख्यमंत्री बनाना यह भाजपा की दूसरी गलती थी. इन दिनो चर्चा जोर पकडने लगी है कि रुपानी १८ दिसम्बर के बाद गुजरात के मुख्यमत्री होंगे ? या फिर मुहर कहीं और लगेगी. 2014 के लोकसभा चुनाव के समय से ही सरदार पटेल नरेन्द्र मोदी की अवधारणा में रहे और यह तय था कि 2017 में गुजरात में सरदार पटेल को आगे रखकर भाजपा अपनी राजनीतिक लडाई लड़ेगी. शाह और मोदी ने यह संदेश देने की कोशिश की कि सरदार पटेल का कोंग्रेस ने खुलकर अपमान किया जिसे मोदी ने अपनी रैलियों में खूब भुनाया . सोमनाथ मंदिर को भी पटेल और नेहरू से जोडकर मोदी नें कोंग्रेस और राहुल गाँधी पर बड़े हमले किये. इसी सोमनाथ मंदिर को ले के राहुल गाँधी अपने कुछ सहयोगियों की वजह से विवादो में उलझ गये. उन्हे सफाई देनी पड रही है की वह जनेऊधारी ब्राह्मण हैं लेकिन उनका यह नरम हिन्दुत्व का मुद्दा किसी काम नहीं आनेवाला है. मीडिया४सिटीजन ने 182 सीटो में से 100 सीटों पर लोंगों की राय जानने की कोशिश की. द्वारका, सोमनाथ, राजकोट, अमरेली, जामनगर, अहमदाबाद, वलसाड, बडौदा, भरुच, गोधरा, मेहसाना, सूरत जैसे शहरों को चुना. जो राय उभरकर आयी है, वह चौंकाने वाली है. 60 प्रतिशत वोंटो के साथ भाजपा सबसे बड़ा दल बनकर उभरने का संकेत सीधे तौर पर सामने है.

Published: 12-06-2017

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