लोक व जनजातीय कला शिविर प्रारंभ
आदिवासी अपने परंपरागत लोक कला सामान्यतः अजीविका कमाने हेतु नहीं बल्कि अपने जीवन को प्रचलित विश्वासों और मान्यताओ के अनुरूप सुख एवं शान्तिमय बनाने हेतु पारलौकिक शक्तियों से आशीर्वाद हेतु किया जाता है।
हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी पारंपरिक कला या कला धीरे-धीरे खत्म हो रही है क्योंकि आधुनिक समय में नए लोकाचार और नई तकनीक के साथ संदर्भ लुप्त हो रहे हैं।
चूंकि जीवन का तरीका बदल रहा है, इसलिए इन रचनाओं की आवश्यकता भी बढ़ रही है।
इन्हें ध्यान में रखते हुए यह शिविर लुप्तप्राय कला, शिल्प और उनके कलाकारों को सामने लाने का एक अनूठा प्रयास है।
वास्तुकला एवं योजना संकाय द्वारा तीन दिवसीय अखिल भारतीय लोक व जनजातीय कला शिविर लोककला उत्सव का आयोजन दिनांक 2 से 4 मई 2024 तक किया गया है।
इस शिविर में देश के चार प्रदेशों नार्थईस्ट, वेस्ट बंगाल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश से कई सुप्रसिद्ध लोक एवं जनजातीय कला जिसमें कोहबर - उत्तर प्रदेश, शोला पीठ- असम, मझूली मास्क- असम, पिछवाई कला - राजस्थान, साँची पट - असम, लाख डौल - वेस्ट बंगाल, शेरपाई - कोलकाता, पट्चित्र - वेस्ट बंगाल, शोरा चित्र - असम, मांडना कला - राजस्थान, फड़ पेंटिंग - राजस्थान के विविध परंपराओं और विधाओं के 11 कलाकार शामिल हो रहे हैं।
शिविर के बारे में जानकारी देते हुए प्रलेखनकर्ता भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि यह शिविर विभिन्न प्रांतो के पारम्परिक कलाओं का एक अद्भुत संगम है, जो आगंतुकों का ज्ञानवर्धन और विविध कलाओं से रूबरू कराने में अहम भूमिका निभाएगा।
- बबिता बसाक