द साबरमती रिपोर्ट 2002 के गोधरा कांड पर आधारित है, जिसमें साबरमती एक्सप्रेस की दो बोगियों में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी। यह घटना भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डालने वाली थी। फिल्म विक्रांत मैसी के किरदार, समर कुमार, और राशी खन्ना के पत्रकार अमृता गिल के माध्यम से इस घटना की गहराई और मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डालती है। हालांकि, फिल्म में इस संवेदनशील विषय पर तटस्थता बनाए रखने में कठिन दिखाई देती है।
निर्देशक धीरज सरना ने इस कहानी को एक पत्रकारिता थ्रिलर के रूप में प्रस्तुत किया है। जिसमें, पटकथा अपेक्षा से कमजोर रही। गहरी राजनीतिक और सामाजिक पेचीदगियों को दिखाने की कोशिश में, कहानी कभी-कभी सतही और भ्रामक लगती है। संवाद और दृश्य अधिक सशक्त हो सकते थे।
विक्रांत मैसी का प्रदर्शन फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने एक आदर्शवादी पत्रकार की भूमिका को गंभीरता और सच्चाई के साथ निभाया है। रिद्धि डोगरा और राशी खन्ना ने अपने किरदारों में सटीकता लाई है, लेकिन उनका प्रभाव कहानी में सीमित रहा।
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और संगीत कहानी के साथ न्याय करते हैं। हालांकि, संपादन में कसावट की कमी और संवादों की गहराई का अभाव दर्शकों को पूरी तरह जोड़े रखने में असफल रहता है।
फिल्म सच्चाई और मीडिया की नैतिकता के मुद्दों को उठाने की कोशिश करती है, लेकिन इसके निष्कर्ष अस्पष्ट हैं। गोधरा कांड जैसे संवेदनशील विषय पर फिल्म में गहराई और निष्पक्षता की कमी खलती है।
रेटिंग और निष्कर्ष:
द साबरमती रिपोर्ट एक गंभीर विषय पर आधारित है, लेकिन कमजोर पटकथा और निर्देशन के कारण इसका प्रभाव सीमित हो जाता है। यह फिल्म उन लोगों के लिए है जो गोधरा कांड और इसके सामाजिक प्रभाव पर एक नई दृष्टि चाहते हैं।
- अभिनव