वो शायर बदनाम! जो नशा ख़ूब करता था, पर उस पर किसी और ही चीज़ का नशा चढ़ा रहता था। जो अपनी एक अलग धुन, अलग अंदाज़ में रहता था। और शायद जो लिखता था, वो उसके जीवन में, उसकी आंँखों से साफ़-साफ़ झलकता था। ऐसा गीतकार जिसकी शादी में उसी का लिखा गाना गाया जाता है, शिव कुमार बटालवी।
मौत का गीत गाने वाला वो गीतकार जो गाता था
"जोबन रूत्ते जो भी मरदा फूल बने या तारा,
जोबन रुत्ते आशिक़ मरदे या कोई करमा वाला।"
मुझे 1971 में आई फ़िल्म आनन्द का एक डायलॉग याद आ रहा है जिसमें राजेश खन्ना कहते हैं कि, "जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लम्बी नहीं।" और शायद ये बात शिव के लिए ही कही गई थी। क्योंकि 1973 में मात्र 36 वर्ष की उम्र में बड़ी ज़िंदगी जीकर शिव ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।शिव, जिन्हें मेले में चलते-चलते एक लड़की को देखकर मुहब्बत हो जाती है। और जब वो बीमारी के कारण मर जाती है तो उसके लिए गीत लिखते हैं।
"इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत,
गुम है, गुम है, गुम है।
ओ साद मुरादी, सोहनी फब्बत
गुम है, गुम है, गुम है।"
इसके बाद उन्हें मशहूर लेखक गुरुबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी से भी मुहब्बत हुई। लेकिन उसकी शादी विदेश में हो गई और तब इस बिरहा दे सुल्तान ने लिखा -
"माये नी माये मैं इक शिकरा यार बणाया,
ओदे सिर ते कलगी ओदे पैरीं झांजर,
ते ओ चोग चुगेंदा आया।
1970 में बीबीसी द्वारा लिया गया एक इंटरव्यू जिसकी अधूरी क्लिप हमें यूट्यूब पर देखने को मिलती है। शिव का एक मात्र इंटरव्यू है, जो उपलब्ध है। जिसमें महेंद्र कौल इंटरव्यू ले रहे हैं और शिव से पूछते हैं कि "शिव कुमार साहब, आजकल जो भारत की स्थिति है, उसमें कवि भागना चाहता है, फ़रार होना चाहता है ज़िंदगी से वातावरण से। ऐसी स्थिति आपको भारत में मिलती है....(बात कहते कहते शिव बीच मेंबोल पड़ते हैं और दोनों के बीच वार्तालाप होता है)
"मैं भी भागना चाहता हूंँ!"
"कहां भागना चाहते हैं?"
"अपने आप से दूर!"
"क्यों?"
"क्या है! ज़िंदगी... मेरा ख़्याल है कि हम सब लोग न.... एक स्लो सुसाइड, एक आराम से मौत मर रहे हैं। और वही बात है..... और ये हर इंटेलेक्चुअल के साथ होगा। जो बौद्धिक है, उसके साथ तो ये ट्रेजेडी रहेगी। ये दुखांत रहेगा। वो मर रहा है हर पल।"
इस इंटरव्यू में आप देखेंगे, शिव का वो भोलापन, जो उनके स्वच्छ हृदय की निष्कलुष भावनाओं को प्रतिबिंबित कर रहा है।उनकी आंँखों का वो गीलापन, जो उनके जीवन की तमाम त्रासदियों के कठोर चित्र प्रदर्शित करता है। उनके चेहरे पर फैली मखमली सुंदरता, जो आपको चुंबक की भांँति अपनी ओर खींचेगा। साथ ही साथ उनकी वो मीठी आवाज़ भी सुन सकेंगे, जो आपके कानों से होती हुई सीधे रूह तक पहुंँचती है।
मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम शिव को अपना भाई मानती थीं। उन्होंने ही शिव को "बिरहा दा सुलतान" भी कहा। उन्होंने पंजाबी में शिव को एक चिट्ठी लिखी थी जो इंटरनेट पर उपलब्ध है और कुछ इस तरह है।
"अमृता प्रीतम दी शिव कुमार दे नाम चिट्ठी"
शिव वीर,
"तुहाडी कविता ने मेरे कोले एना लिखवाया नी मैनू जेना रुवाया ए!" तुहाडा दरद सदा जेओंदा रहे।"
पूरी चिट्ठी का मतलब हिन्दी में कुछ यूंँ है, जो मुझे समझ आया कि -
भाई शिव,
"तुम्हारी कविता ने मुझे उतना लिखवाया नहीं जितना रुलाया है। तुम्हारा ये दर्द सदा जीवित रहे।" फिर अमृता प्रीतम जी उसी चिट्ठी में कहती हैं कि, "तुम्हें पता नहीं ये साल वरदान है या अभिशाप। अगर अभिशाप भी है तो इसमें एक वरदान छुपा हो सकता है।"
तुम्हारी दीदी - अमृत
अमर उजाला काव्य के एक इंटरव्यू में शिव के बेटे मेहरबांँ बताते हैं कि "शिव ने अपने नाम के साथ बटालवी नहीं लगाया। उनकी किताबों पर शिव कुमार ही मिलेगा। बटाला में रहने की वजह से लोगों ने उनके नाम के साथ शिव लगा दिया।"शिव जितने लोकप्रिय हिंदुस्तान में हैं उतने ही पाकिस्तान में भी हैं। उनकी रचनाओं में गूढ़ अर्थ लिए वो सीधापन, वो मिठास, वो सादापन दिखाई देता है, जो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर ले। शायद यही कारण है कि उन्होंने हिन्दी में भले रचनाएंँ न की हों, इसके बावजूद उनकी लोकप्रियता हिन्दी में अद्वितीय है। हिन्दी फ़िल्मों जैसे, लव आज कल में "आज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा" और उड़ता पंजाब में "एक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत गुम है" इत्यादि उनके लिखे हुए गाने इस बात का प्रमाण हैं।
शिव दर्द के सागर में पड़े सीप के मोती जैसे थे। बेशक़ीमती!उन्होंने जो जिया वो लिखा और जो लिखा वो जिया। अंत में शिव के लिखे हुए गीत की कुछ पंक्तियां
"की पुछदेओ हाल फ़कीरां दा
साडा नदियों बिछड़े नीरां दा
साडा हंझ दी जूने आयां दा
साडा दिल जल्या दिलगीरां दा"