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उत्तर प्रदेश में कोर्ट की सख्ती ने बदल दी : हड़ताली बिजली कर्मियों की डगर

हड़ताल वापसी की खास बात यह रही है कि सरकार और कर्मचारी संगठन के बीच हुए समझौते के तहत सरकार बर्खास्त व सेवा समाप्त किए जाने वाले कर्मचारियो को बहाल कर दिया जायेगा।

हड़ताली बिजली कर्मियों की डगर
हड़ताली बिजली कर्मियों की डगर

उत्तर प्रदेश सूबे में बिजली कर्मियों की हड़ताल ने समूचे जन मानस को झकझोर कर रख दिया था। दूसरी तरफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हड़ताली बिजली कर्मियो को आइना दिखाने के साथ ही जनहित का भी बोध कराने का काम किया है। हाई कोर्ट के दबाव की वजह से ही बिजली कर्मियों को हड़ताल वापस लेने को मजबूर किया। हड़ताली बिजली कर्मियों से निपटने के लिए यूपी की योगी सरकार के इंतजाम नाकाफी रहे। सरकार ने काफी कड़क तेवर तो अख्तियार किया लेकिन विद्युत आपूर्ति व्यवस्था में निरन्तरता बनाने मे पूरी तरह से नाकाम रही। सरकार ने हड़ताली कर्मियों के बीच दहशत पैदा करने की गरज से हड़ताल के 24 घंटे में 22-विद्युत कर्मियो पर एस्मा लगाया साथ ही 1332 हड़ताली संविदा और आउट सोर्सिंग कर्मियो को बर्खास्त कर दिया। इसके बावजूद भी सरकार हड़ताली बिद्युत कर्मियों को उनके संकल्प से डिगा नही सकी। हालांकि जब इलाहाबाद हाई कोर्ट का चाबुक चला तो कोर्ट से बचने के लिए हड़ताली कर्मचारी नेताओं को अपने संकल्प को रोकना पड़ा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में बिजली कर्मियों की हड़ताल से पैदा होने वाली दिक्कत को लेकर यूपी सरकार की ओर से एक याचिका दाखिल की गयी थी। यूपी सरकार की उस याचिका की सुनवाई करेते हुए कोर्ट ने विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति की हड़ताल को गलत और जनहित के खिलाफ करार दिया था। यही नही कोर्ट ने लखनऊ की सीजेएम कोर्ट को हड़ताली नेताओं के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर तामील कराने का हुक्म दिया था। कोर्ट ने यूपी सरकार को भी इन्हीं हड़ताली कर्मियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया था।

यूपी में बिजली कर्मचारी गुरुवार की रात 10 बजे से हड़ताल पर चले गये थे जिसकी वजह से अनपरा, ओबरा, पारीछा, हरदुआगंज के थर्मल पावर हाउस के रात की पाली के कर्मचारी अवर अभियंता और अभियंता हड़ताल में शामिल हो गये थे। हड़तालियों से काम पर वापस लौटने की राज्य सरकार की अपील को इन कर्मचारियों ने अनदेखी कर दी थी। अब सवाल यह खड़ा हो जाता है कि ऐसे कर्मचारी संगठन जो कि सीधे तौर पर जनता की सेवाओं से जुड़े हैं। उनके हड़ताल से जनता की सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ना स्वाभाविक है। जनहित के नाम पर क्या जन सेवा से जुड़े कर्मचारी संगठनो पर अघोषित रूप से प्रतिबंध लगाया जा सकता है। उनके मौलिक अधिकारो पर रोक लगाया जाना उचित होगा। मान लिया जाये जन सरोकार से तालुक रखने वाले कर्मचारियों की अपनी कोई समस्या है उस समस्या के निदान के लिए कर्मचारी संगठन अपना पक्ष सरकार के सामने प्रस्तुत करता है। सरकार कर्मचारियों के उस प्रस्ताव की अनदेखी कर मामले को लम्बित रखती है ऐसी दशा में सरकार पर दबाव बनाने के लिए कर्मचारी संगठन हड़ताल की ओर रुख करते हैं। ऐसी दशा में उन्हे हड़ताल के लिए प्रेरित करने अथवा मजबूर करने के लिए कौन जिम्मेदार है। इस समस्या का हल भी जरूरी हो जाता है। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी बात कहने, धरना प्रदर्शन करने का हक हमे संविधान में दिया गया है। इसके बावजूद भी हड़ताल से बचने अथवा ऐसा अवसर देने से बचने के लिए सरकार और नौकरशाही को भी पूरी तरह से सजग और संवेदनशील होना चाहिए। वह चाहे कर्मचारियों का विषय हो या अन्य किसी भी क्षेत्र के जुड़ा मामला हो।

विद्युत कर्मचारियों की हड़ताल से आम उपभोक्ताओं को होने वाली दिक्कत से राहत देने के लिए पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने दो घंटे अतिरिक्त कार्य करने तथा जरूरत पड़ने पर 24 घंटे सेवा देने का भरोसा सरकार को दिया था लेकिन इसके बावजूद भी सरकार उपभोक्ताओं को विद्युत आपूर्ति देने में नाकम रही है। ज्ञात हो कि पावर आफीसर्स एसोसिएशन में करीब एक हजार से अधिक कर्मचारी हैं जिसमें अधीक्षण अभियंता, अधिषासी अभियंता, सहायक अभियंता, लेखाकार और अन्य कार्मिक शामिल हे। फिर भी सरकार और पावर आफीसर्स एसोसिएशन प्रदेश के उपभोक्ताओं को नियमित विद्युत आपूर्ति देने में असफल रहे हैं।

हाईकोर्ट के आदेश पर बिजली विभाग के कर्मचारी नेताओं के खिलाफ वारंट जारी हो गया। सरकार इन कर्मचारी नेताओं की गिरफ्तारी से बचती रही लेकिन कर्मचारी नेता खुद की गिरफ़्तारी के लिए सरकार को चुनौती देकर उकसा रहे थे। कर्मचारी नेताओं का मकसद यह था कि सरकार उन्हे बंदी बना ले जिससे उन्हे सोमवार 20 मार्च को न्यायालय पर हाजिर होने से बचा सके। साथ ही बिजली आपूर्ति में बाधक बनने का दोष सरकार के सिर पर फोड़ा जा सके। हाईकोर्ट के दखल के बाद कर्मचारी नेताओं के तेवर कुछ ढीले पड़े। सरकार और हड़ताली कर्मचारी नेताओं के बीच बातचीत के बाद करीब 65 घंटे की हड़ताल के बाद हड़ताली कर्मचारी काम पर वापस लौटे। 20 मार्च सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर्मचारी नेता हाजिर हुए। कोर्ट ने हड़ताल से हुए नुकसान की भरपाई कर्मचारी नेताओं और हड़ताल पर रहे कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन और विभिन्न मद से करने का विकल्प दिया जिस पर विपक्षी मौन रहे।

हड़ताल पर जाने के लिए बिद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति का पक्ष था कि सरकार ने हमे बाचतीत करने का मौका नही दिया। बातचीत में सरकार ने दिलचस्पी नही दिखयी जिसकी वजह से समिति को आंदोलन की डगर पर चलना पड़ा। हड़ताल के दौरान करीब 650 संविदा और आउट सोर्सिंग कर्मियो की सेवा को समाप्त कर दिया गया। इसके अलावा हड़ताल के दौरान कर्मचारी मुहैया नही करा पाने के मामले में 7 एजेंसियों पर मामला दर्ज कराया गया है जिन एजेंसियों पर केस दर्ज कराया गया है उन एजेंसियों को प्रतिबंधित किया गया है भविष्य में ये एजेंसियां निगम में काम नही कर सकेंगी। हड़ताल वापसी की खास बात यह रही है कि सरकार और कर्मचारी संगठन के बीच हुए समझौते के तहत सरकार बर्खास्त व सेवा समाप्त किए जाने वाले कर्मचारियो को बहाल कर दिया जायेगा। साथ ही जितने भी मुकदमे हड़ताल के दौरान सरकार की ओर से दर्ज कराये गये हैं उन्हे सरकार वापस कर लेगी। 22 कर्मचारियो पर एस्मा और 29 लोगों पर केस दर्ज कराया गया था।


Published: 24-03-2023

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