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बच्चों को मोबाइल से दूर करो : पढने की आदत डालो

हिंदी भाषा और उसकी सहोदरी बोलियों से युवा पीढ़ी को जोड़ने की मुहिम में कथा रंग फाउंडेशन के राजधानी लखनऊ में आयोजित दो दिवसीय कथा रंगोत्सव में कहनियों के रचना संसार को उनके रचयिताओं के सामने मंच पर साकार किया गया. यादगार हुई लखनऊ की दो शामें.

पढने की आदत डालो
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जो साठ के आसपास होंगे उन्हें याद होगा कि गरमी की छुट्टियों में दादी या नानी से कहानियां सुनते सुनते जीवन के सतरंगी सपनों में झूला करते थे. अब आज के बेरहम हाईटेक काल में दादी नानी वृद्धाश्रमों में और नाती पोते कोसों दूर महानगरों के बहुमंजिले कोटरों में टी वी मोबाइल के हवाले हो चुके हैं. पर ये सच है कि लोकजीवन से जुड़ी उन कहानियों में कीमती सीख भी हुआ करती थी जो अनजाने में ही भविष्य की चुनौतियों से निपटने लायक बना जाया करती. ये पुरानी पीढ़ी ये नयी पीढ़ी को संस्कार देने का एक सिलसिला भी था. नयी पीढ़ी को लोकजीवन में पगी क्षेत्रीय बोलियों की कहानियों के माध्यम से समाज से जोड़ने के उसी सिलसिले का सुंदर चित्र को बीते 28 और 29 नवम्बर 2022 को एक कामयाब उत्सव की तरह पेश किया कथा रंग फाउंडेशन ने। मकसद साफ था कि कहानी की सुनने सुनाने की गुणी लत को पुनर्जीवित किया जाये और बच्चों में पढ़ने की आदत डाली जाये.

उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनउ के अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संस्थान में आयोजित इस रंगोत्सव में कहानियों के लेखकों की उपस्थिति में उनसे संवाद और उनकी कहानियों के मंचीय वाचन से भी आगे जाकर किस्सागोई का जो संगीतमय रंग भरा गया उसे राजधानी के कला जगत में एक नये प्रयोग के रूप में देखा जा सकता है. इस प्रयोग को कामयाबी तक पहुंचाने में कथा रंग की अध्यक्ष नूतन वशिष्ठ, उपाध्यक्ष पुनीता अवस्थी, सचिव अनुपमा शरद, उप सचिव डा. मालविका त्रिवेदी, कनिका अशोक, डा. अपूर्वा अवस्थी, अमिता पांडेय, रचना टंडन और ममता शुक्ला और टीम कथा रंग की मेहनत साफ झलक कर सामने आयी. उन दो दिनों में कथाकारों में आधुनिक प्रेमचंद कहे जाने वाले शिवमूर्ति, हास्य व्यंग्य लेखन में सिरमौर सुभाष चंदर, बाल और विज्ञान कथाकार संजीव जायसवाल संजय, पद्मश्री साहित्यकार डा. विद्याबिंदु सिंह और अवधी साहित्य के ब्रांड एम्बेसेडर रामबहादुर मिश्र की उपस्थिति ने चार चांद लगा दिये. अपने रचना कर्म पर कथा रंग फाउंडेशन के प्रयासों को उनकी भरपूर सराहना भी हासिल हुई.

ग्रामीण लोकजीवन से अपनी कहानियों की रचना करने वाले शिवमूर्ति ने नये लेखकों को डा. मालविका त्रिवेदी से साक्षात्कार में नसीहत दी कि नकल से बचना और सेलिब्रिटि बनने के चक्कर में मत फंसना. लेखक छोटा या बड़ा नहीं होता है. वह सिर्फ लेखक होता है. लेखको के बीच बराबरी के बजाय बराबरी की मिलावट होने लगी है. लेखक को अपने भीतर झांकना होगा. लेखक अपने भीतर झांकना बंद कर देता है, तभी उसके लेखन का खात्मा होना शुरू हो जाता है. उन्होंने बताया कि पिताजी साधू हो गयेे थे इसलिये गृहस्थी का सारा भार मुझी पर पड़ा. मैने जो कुछ लिखा अपने निजी अनुभव के आधार पर लिखा. उन्होंने कहा कि ग्रामीण औरतों का जीवन बहुत कठिन है. इसी वजह से मैने अपने लेखन में स्त्रियों का दर्द बांटने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि अब स्त्रियों की स्थिति थोड़ा ठीक हुई है और वो मन का कपड़ा और चप्पल खरीद पाती हैं. मेरी कहानियों के स्त्री पा़त्र मुझे कहीं न कहीं मिले हैं.

गाजियाबाद से आये व्यंग्यकार सुभाष चंदर रूबरू थे राजधानी के नामचीन कवि मुकुल महान से. अट्टहास सम्मान से विभूषित सुभाष चंदर ने व्यंग्य लेखन के बारे में सुधि श्रोताओं के समक्ष कहा कि विसंगतियों या किसी परेशानी से बेचैनी में व्यंग्य लिखा जाता है जबकि हास्य किसी के चेहरे पर मुस्कान के लिये लिखा जाता है. उनका कहना था कि व्यंग्य तो खूब लिखा जा रहा है पर हास्य में फूहड़पन घर कर गया है. उन्होंने युवा लेखको को टिप दिया कि भाषा चुटीली हो लेकिन शैली का चयन सोच समझ कर किया जाना चाहिये.

अगले दिन पद्मश्री डा. विद्याबिंदु सिंह ने अवधी भाषा के संवर्द्धन में लगे रामबहादुर मिश्र से लोक कथाओं की लोकप्रियता में गिरावट के कारणों पर चर्चा की. वो बोलीं कि आज बच्चे अपनी दादी नानियों के साथ समय बिताने के बजाय मोबाइल में उलझे हुए हैं. इस प्रवृत्ति ने उन्हें सामाजिक भावनात्मक जुड़ाव से दूर कर दिया है जो लोेक कथाएं हमें सिखाती हैं. अभिभावकों को चाहिये कि वो अपने घर में ऐसी चित्रकथा या पत्रिकाएं मंगवायें जिनमें क्षेत्रीय भाषा और मातृभाषा हो. इसके अलावा स्कूल और काॅलेज अपने यहां कहानी वाचन के सत्र आयोजित करें, कहानी प्रतियोगिताओं का आयोजन करें, कहानी लेखन कार्यशालाओं का आयोजन करवायें. तो रामबहादुर मिश्र ने केन्द्र सरकार की इस बात के लिये सराहना की कि नयी शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से उसने क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के प्रोत्साहन का बीड़ा उठाया है. कथा रंग फाउंडेशन ने भी इसी सूत्र को लेकर अपनी यात्रा आरम्भ की है.

दोनों दिन हर सत्र में लेखकों से संवाद के बाद उस लेखक की रचना के मंचीय वाचन की प्रस्तुतियों से कथा रंग ने हिंदी पट्टी की भाषा और क्षेत्रीय बोलियों-अवधी, बुंदेली, कन्नौजी, बृज भाषा, बघेली से युवा मन को जोड़े रखने के अभियान का संदेश देने का प्रयास किया. आडिटोरियम में बैठे दर्शकों से हर प्रस्तुति को जिस तरह का रिसपांस मिला उससे लगा कि ऐसे प्रयास जारी रहने चाहिये. कुछ तो सुगबुगाहट होगी अगर ईमानदारी से कोशिश की जाये. इसके पहले कथा रंग राजधानी और आसपास की शिक्षा संस्थाओं में अपनी भाषा अपनी बोली से जुड़ाव के आयोजन करता रहा है.

पहले दिन के पहले सत्र में कथा रंग की अध्यक्ष नूतन वशिष्ठ और आकाशवाणी के वरिष्ठ उद्घोषक सत्यानंद ने शिवमूर्ति की प्रतिनिधि कहानी जुल्मी का मंच से वाचन किया जिसने रंगोत्सव में आये अतिथियों ंको भावुक कर दिया. तो दूसरे सत्र में सुभाष चंदर की कहानी बिट्टो रानी का मंचीय वाचन कथा रंग की सचिव अनुपमा शरद और अंकुर सुवंश सक्सेना ने करके कथा रंग की परंपरा का बखूबी निर्वहन किया. दूसरे दिन भी रंगोत्सव की शाम जीवन के हर रंग में और भी सराबोर रही. दर्शकों को खूब गुदगुुदाया तो रुलाया भी. अंतिम प्रस्तुति मिलन ने न केवल दर्शकों को दो मिनट तक लगातार स्टेंडिग ओवेशन देकर तालियों से स्वागत करते रहने को मजबूर कर दिया बल्कि स्वयं लेखक संजीव जायसवाल तक को मंच पर आकर भावुक होकर ये कहना पड़ा कि मेरी रचना में ऐसे सितारे टाँके कि उनके पास शब्द नहीं हैं कहने को. राजधानी की नामचीन थियेटर आर्टिस्ट संध्या रस्तोगी, कनिका अशोक, अनुपमा शरद और अभ्युदय ने जहां अपनी आवाज और अभिनय के जादू से और सीमा पाल ने अपने नृत्य से उनकी कहानी का जो चित्र खींचा वो स्वयं उस लेखक को बहुत पसंद आया जो आज देश के मशहूर बाल साहित्यकार हैं. कहानी को इस तरह बैकग्राउंड म्यूजिक और थियेट्रिकल टच देने के लिये अभिनय और नृत्य से सजा कर पेश करने की संकल्पना कथा रंग की सचिव अनुपमा शरद की थी जो बेहद कामयाब रही और सराही गयी. लाइट्स एंड साउंड का प्रयोग बहुत अच्छा रहा.

कथाकार महेन्द्र भीष्म की बुंदेली कहानी एक थी बिन्नू को अपनी आवाज से सजाया डा मालविका त्रिवेदी और कनिका अशोक ने. ग्रामीण बुंदेली महिला चरित्र के जीवन मे आये उतार चढ़ाव के ग्राफ को उकेरती इस कथा के वाचन में कलाकारों ने वास्तविकता के लगभग करीब उच्चारण में अपनी सधी प्रस्तुति दी. इसके बाद डा. अपूर्वा अवस्थी ने जब कन्नौजी बोली में अपनी कहानी राजा बुकरकना का वाचन कलाकार अनमोल मिश्रा के साथ किया तो आडिटोरियम में बैठे कला सुधि अपने ठहाके रोक नहीं पाए. आकाशवाणी के अवकाश प्राप्त अधिकारी और रंगमंच के मझे हुए कलाकार और कथा रंग के संरक्षक विजय बनर्जी ने सभी प्रस्तुतियों की सराहना करते हुए अपूर्वा की प्रस्तुति का विशेष जिक्र किया. कहानी कहने का वही बतकही वाला अंदाज जो कभी दादी का हुआ करता था. उसी शाम अवधी साहित्य के शीर्ष पुरुषों में शामिल वंशीधर शुक्ल की कहानी काजी का नौकर का अमिता पांडे, जय और द्वारिका ने अवधी बोली में मजेदार वाचन करके दर्शकों को खूब गुदगुदाया. इसमें उनका काव्योम संस्था के मिश्र और द्वारका ने बखूबी साथ निभाया।

इस आयोजन में आकाशवाणी के पूर्व अधिकारी और ख्यात रंगकर्मी विजय बनर्जी, स्वतंत्र भारत के पूर्व संपादक और माध्यम संस्था के सचिव अनूप श्रीवास्तव, आकाशवाणी लखनऊ के पूर्व निदेशक पृथ्वीराज चौहान, दूरदर्शन अहमदाबाद के पूर्व अधिकारी मनोज चतुर्वेदी, दूरदर्शन के अधिकारी आत्मप्रकाश मिश्र, वास्तुकार और व्यंग्य लेखक के के अस्थाना, कवि सर्वेश अस्थाना, आकाशवाणी के अधिकारी संजय पाण्डेय, सुमोना पाण्डेय, जयश्री कुलभास्कर, लखनऊ कनेक्शन वर्ल्डवाइड के संस्थापक अनिल शुक्ल, नीरजा शुक्ला, अर्चना त्रिपाठी, साहित्यकार विनीता मिश्र, झारखण्वीड से आयीं कथाकार वीणा श्रीवास्तव, डा. प्रज्ञा पाण्डेय, नवयुग डिग्री कॉलेज की प्राचार्य डा. मंजुला, इंडिया इनसाइड के संपादक अरुण सिंह, पत्रकार डा. आशीष वशिष्ठ सहित नगर के गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए. प्रसिद्ध पत्रकार और उपन्यासकार दयानंद पांडेय के शब्दों में कथा रंग अप्रतिम कार्य कर रहा है. आयोजन में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों और नवयुग डिग्री कॉलेज की छात्रों का सहयोग उल्लेखनीय रहा. 


Published: 06-12-2022

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