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गाज़ियाबाद में दर्दनाक मौत : एक जीवित नदी देश की सबसे प्रदूषित नदी

एक सवाल बहुत आसान सा – उत्तर प्रदेश का अबतक का सबसे एक्टिव सीएम कौन रहा है ? अच्छा इसे छोड़िये, आपसे एक दूसरा सवाल पूछते हैं कि उत्तर प्रदेश की या यूं कहें देश की सबसे प्रदूषित नदी कौन-सी है ? यह नदी बहुत ही जल्द यमुना में मिलकर यमुना को भी जहरीली बना देगी. जी हां, योगी सरकार फिर भी मौन है, हालांकि योगी सबसे एक्टिव सीएम जरूर हैं.

एक जीवित नदी देश की सबसे प्रदूषित नदी
एक जीवित नदी देश की सबसे प्रदूषित नदी

जब कालूवाला नदी गौतमबुद्धनगर जनपद के तिलवाड़ा गांव से पश्चिम व मोमनाथल गांव से पूर्व में यमुना में मिलती है तो इसमें बहते हुए काले रंग के बदबूदार पानी को देखकर कोई कह नहीं सकता है कि यह एक जीवित नदी है. यही नहीं अगर किसी अंजान व्यक्ति को इस स्थान पर लाकर पूछा जाये कि यह कौन सी धारा है तो वह शर्तिया ही इसे गन्दा नाला कहकर सम्बोधित करेगा. इसके विपरीत जब यह नदी अपने मायके अर्थात उद्गम स्थल सहारनपुर जनपद में शिवालिक की पहाड़ियों के ढलान कालूवाला दर्रा से चलकर नीचे आती है तो यहां के साफ-शुद्ध पानी को देखकर हर कोई जरूर कहेगा कि यह तो अमृत जल है. जी हां हम बात कर रहे हैं हिंडन नदी की, जो शिवालिक की पहाड़ियों अर्थात कालूवाला पास से प्रारम्भ होती है. यह बरसाती नदी है. इसमें छोटी अन्य सहायक धाराएँ भी आकर मिलती हैं.

दरअसल हिंडन नदी जिसका पुरातन नाम हरनंदी था और जिसका पवित्र ग्रंथों में वर्णन है. आज प्रदूषण का ऐसा विकराल दंश झेलने को यहां तक मजबूर हो गई कि हाल ही में जारी नेशनल वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग प्रोग्राम की रिर्पोट में हिंडन नदी को ” ई श्रेणी ” यानी सबसे खराब श्रेणी में रखा गया है. इसके कारण इसकी गिनती अब उत्तर प्रदेश की सबसे प्रदूषित नदी के रूप में होने लगी है. यदि सरकार या सरकारी अधिकारियों द्वारा लापरवाही जारी रही तो यह नदी देश की सबसे प्रदूषित नदी बन जाएगी. यही नहीं ये नदी यमुना में मिलकर यमुना को भी जहरीली बना देगी.

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुर का टांडा से निकलने वाली धारा को ही हिंडन नदी माना जाता रहा है. सेटेलाइट मैपिंग व ब्रिटिश गजेटियर के आधार पर देखें तो हिंडन का उद्गम मुजफ्फराबाद जनपद में शिवालिक हिल्स बताया जाता है. हिंडन उद्गम अन्तिम गांव कालूवाला टोंगिया है. यहां से हिंडन नदी के तल में करीब आठ किलोमीटर दूर पैदल चलकर बरसनी फॉल तक पहुँचा जा सकता है. नदी का यह तल करीब 100 मीटर चौड़ा है.

हिंडन नदी का उदगम सहारनपुर जिले में निचले हिमालय क्षेत्र के ऊपरी शिवालिक पर्वतमाला में स्थित शाकुंभरी देवी की पहाड़ियों में है. यह पूर्णतः वर्षा आश्रित नदी है. धार्मिक आख्यान कहते हैं हिंडन नदी पांच हजार साल पुरानी है. मान्यता है कि इस नदी का अस्तित्व द्वापर युग में भी था. हरनंदी के पानी से पांडवों ने खांडव प्रस्थ को इंद्र प्रस्थ बना दिया था. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि रावण का भी हरनंदी के साथ नाता था. रावण का जन्म गौतम बुद्ध नगर ( नोएडा ) के बिसरख गांव में हुआ था. बिसरख के पास से हरनंदी गुजरती थी.

हिंडन नदी में छोटी छोटी अन्य सहायक धाराएं भी आकर मिल जाती हैं. शाकुंभरी वन क्षेत्र के पास शिवालिक पहाड़ियों पर होने वाली वर्षा का पानी हिंडन की मुख्य धारा में आता है. इसके अतिरिक्त वृक्षों की जड़ों से रिसने वाला पानी भी धीरे धीरे मुख्य धारा में मिलता रहता है. बरसात के समय इन सभी धाराओं में भरपूर पानी आता है. यही पानी बहते हुए नीचे तक जाता है. इन सभी धाराओं के मिलने से हिंडन नदी बनती है. सहारनपुर जनपद से आगे यह नदी मुजफ्फरनगर व शामली जनपदों की सीमा में प्रवेश करती है. हिंडन नदी को सीमा रेखा मानकर ही मुजफ्फरनगर व शामली जनपदों की सीमाएँ तय की गई हैं. हिंडन के पूर्व में मुजफ्फरनगर और पश्चिम में शामली जनपद है. इन दोनों जनपदों में सीधे तौर पर कृषि बहिस्राव व बुढ़ाना कस्बे का तरल व ठोस कचरा भी हिंडन में मिलता रहता है, लेकिन जैसे ही हिंडन मेरठ की सीमा में प्रवेश करती है तो मेरठ जनपद में मेरठ-मुजफ्फरनगर सीमा पर बसे गांव पिठलोकर के जंगल में हिंडन नदी के पूर्व से बहकर आने वाली काली पश्चिम नदी में मिल जाती है.

मुजफ्फरनगर-शामली की सीमा से आगे बढ़ते हुए हिंडन नदी मेरठ व बागपत जनपदों में प्रवेश कर जाती है. इन दोनों जनपदों का भी हिंडन नदी को सीमा रेखा मानकर ही बँटवारा किया गया है. हिंडन के पूर्व में मेरठ जनपद है जबकि पश्चिम में बागपत जनपद. यहां से हिंडन करीब दस किलोमीटर आगे बढ़ती है तो हिंडन के पश्चिम से बहकर आने वाली कृष्णी नदी बरनावा गांव के निकट हिंडन में मिल जाती है. बरनावा से पहले हिंडन नदी के पूर्व में स्थित मेरठ जनपद के सरधना कस्बे से आने वाला एक गन्दा नाला भी मेरठ जनपद के ही कलीना गांव के जंगल में हिंडन में मिल चुका होता है.

यहां से हिंडन नदी आगे बढ़ती है तो हिंडन नदी के पूर्व में मेरठ जनपद में अपर गंगा नहर के जानी एस्केप से करीब 1500 क्यूसेक पानी हिंडन में डाल दिया जाता है. जानी एस्केप की करीब 2000 क्यूसेक पानी डालने की क्षमता है. यह पानी मेरठ-बागपत मार्ग से दो किलोमीटर पहले मोहम्मदपुर धूमी गांव के जंगल में डाला जाता है. यहां से आगे नदी में पानी का बहाव बढ़ जाता है और कुछ साफ भी हो जाता है.

यह नदी सहारनपुर जनपद से प्रारम्भ होकर गंगा और यमुना के बीच दोआब क्षेत्र में मुजफ्फरनगर, शामली, गाज़ियाबाद होते हुए करीब 300 किलोमीटर का सफर तय करके अंत में गौतम बुद्ध नगर के पास और दिल्ली से कुछ दूर तिलवाड़ा यमुना में समाहित हो जाती है लेकिन गाजियाबाद में हिंडन की चुनौतियां अधिक बढ़ जाती हैं. यहां जहां शहर का सीवेज व ठोस कचरा तथा उद्योगों का तरल कचरा नदी को बद-से-बदतर स्थिति में ले जाता है वहीं नदी के बेसिन पर किया गया अतिक्रमण एक गम्भीर समस्या पैदा करता है.

हिंडन नदी प्रदूषण के साथ अतिक्रमण की समस्या को झेल रही है. गाजियाबाद और इसके आसपास के भू माफियाओं ने इस नदी को छोटा कर दिया है. कभी अपने पूरे वेग से बहने वाली हिंडन नदी आज सिकुड़कर नाला हो गई है और आसपास की हरियाली भी खत्म हो गई है. पूरे इकोलॉजिकल सिस्टम पर अवैध कब्जों ने ग्रहण लगा दिया है. आबादी बढ़ने के साथ ही नदी के आसपास कंक्रीट के जंगल तैयार होता चला गया. ज़मीन के दाम अधिक होने के कारण मोटी कमाई के लिए प्रशासनिक अधिकारियों ने हिंडन नदी के ज़मीन पर अतिक्रमण करवा दिया. यही वजह है कि सहारनपुर में 300 मीटर चौड़ी नदी गाज़ियाबाद में 30 मीटर रह गई है.

इस नदी को बीमार और जहरीला बनाने में सौ से ज्यादा उद्योग खतरनाक भूमिका निभा रहे हैं. इन छोटे बड़े उद्योगों का उत्प्रवाह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से नदी में मिलता है और नदी को प्रदूषित करता है. सरकारी रिपोर्ट के अनुसार टेक्सटाइल्स, डाइंग, पाइप, साइकिल रिक्शा, रबर, प्रिंटिंग, फैब्रिक्स, कागज़, रसायन आदि के उद्योग शामिल हैं. इसके अलावा सैकड़ों नालों का गंदा पानी भी हिंडन नदी में गिर रहा है. पानी में ठहराव होने और उसमें लगातार घरेलू और औद्योगिक कचरा प्रवाहित किए जाने के कारण नदी में प्रदूषण बढ़ गया और धुलित ऑक्सीजन शून्य हो गई. घरेलू और औद्योगिक कचरे के कारण नदी में एल्गर ब्लूम उत्पन्न हो गए हैं, जो जीवों के लिए भी खतरनाक है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चीनी मिलों और डिस्टिलरियों का गंदा पानी, चमड़ा उद्योग के रसायनिक पानी ने हिंडन के पानी को विषैला कर दिया है. प्रचुर मात्रा में आर्सेनिक फ्लोराइड, मैग्नीशियम, क्रोमियम, नाइट्रेड, लेड जैसे घातक तत्व की मात्रा लगातार बढ़ने से हिंडन का पानी जहरीला हो गया है. इस वजह से जलीय जीव जंतु खत्म हो गए हैं.

हिंडन व उसकी सहायक नदियों में बहते अत्यधिक प्रदूषित पानी के कारण नदी किनारे बसे गांव-कस्बों का भूजल भी जहरीला हो चुका है. सैंकड़ों गाँवों में जल जनित गम्भीर बीमारियाँ पनप रही हैं. सैंकड़ों लोग जल-जनित जानलेवा बीमारियों के कारण असमय काल के मुँह में समा चुके हैं. कुछ किसान हिंडन व उसकी सहायक नदियों में बहने वाले जहरीले पानी से जाने-अनजाने अपनी फसलों की सिंचाई भी करते हैं, जिस कारण से जहां उनके खेतों की कृषि मिट्टी में परसिसटेंट ऑरगेनिक पाल्यूटेंटस जैसे तत्व पाये गए हैं वहीं उस मिट्टी में पैदा हुई सब्जियाँ व अन्य फसलों में भी कीटनाशकों के तत्व मिले हैं. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के आदेश के पश्चात हिंडन व उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे गाँवों से सैंकड़ों की संख्या में हैण्डपम्प उखाड़े जा चुके हैं.

पहले हिंडन का पानी विषैला नहीं था, इसमें साइबेरियन समेत दूसरे देशों के प्रवासी पक्षी भी प्रवास करते थे लेकिन आज देसी पक्षी भी हिंडन नदी के पास नहीं फटकते हैं. हिंडन से मछलियां भी गायब हो गई हैं. पहले इस नदी में सोल, सिंघाड़ा मछली समेत मछलियों की कई किस्में पाई जाती थीं. लोग मछली पकड़ने का काम करते थे. जिन नदियों के किनारे सभ्यतायें बसती थीं वहां भयंकर जल प्रदूषण की त्रासदी के कारण बस्तियां उजड़ने की कगार पर हैं. नदी में प्रदूषण का प्रतिशत इतना है कि नदी के पानी को छूना तो दूर उसके पास खड़ा होना भी दूभर हो चला है.


Published: 18-09-2022

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