जीवन के अनुभवों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का एक सशक्त माध्यम कहानी लेखन है. पहले की कहानियाँ और गीत कई पीढ़ियों तक मुँहजबानी ही चलती रहती थीं. उक्त विचार अंतर्राष्ट्रीय अवधी लोक गायिका कुसुम वर्मा ने अवधी अध्ययन केन्द्र उत्तर प्रदेश द्वारा राजकीय इण्टर कालेज बाराबंकी में आयोजित पाँच दिवसीय अवधी किहानी लेखन और अनुवाद प्रशिक्षण कार्यशाला के समापन समारोह में व्यक्त किये. श्रीमती वर्मा ने यह भी कहा कि पुराने लीकगीतों और कहानियों में संस्कृति व संस्कार झलकते हैं.
समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए अवधी अध्ययन केन्द्र, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्रदीप सारंग ने कहा कि अवधी कहानी लेखन और अनुवाद प्रशिक्षण कार्यशाला एक ऐतिहासिक कदम है जो कि अवधी के उन्नयन में मील का पत्थर साबित होगा. विशिष्ट अतिथि नूतन वशिष्ठ का समापन में पुनः आगमन हुआ. उन्होंने कहा कि कहानी लेखन में काल्पनिक कथाओं के बजाय बेहतर रहेगा कि अपने आसपास घटित हो रही घटनाओं को कहानी का विषय बनाया जाय.
प्रथम सत्र में प्रशिक्षणाचार्य डॉ विनयदास ने किहानी लेखन के अनुभव साझा किए और सवालों के जवाब देते हुए कहा कि आर्थिक कारणों से बढ़ी जिंदगी की भागदौड़ के बीच संवेदनाएं कमतर होती जा रही हैं, लेखनी से इस भयावह स्थिति के विरुद्ध जंग लड़नी है.
डॉ राम बहादुर मिश्रा के निर्देशन में संचालित इस पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला में 25 युवाओं/ छात्रों/ शिक्षकों ने प्रतिभाग किया जिसमें महिला और पुरुषों की संख्या लगभग बराबर रही. सभी ने एक एक कुछ ने दो दो कहानियाँ लिखी हैं. शिक्षिका शिल्पा देवी ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी के अनुवाद किये तो रजत बहादुर ने एक बेहतरीन कहानी लिख डाली. राजकीय शिक्षिका मनोरमा चौरसिया व नागेन्द्र प्रताप सिंह ने एक-एक मार्मिक कहानी लिख कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया.
प्रशिक्षणाचार्य के रूप में डॉ राम बहादुर मिश्रा, डॉ विनय दास, डॉ अम्बरीष अम्बर, अजय प्रधान, प्रदीप महाजन व संयोजक प्रदीप सारंग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अपर पुलिस अधीक्षक बाराबंकी पूर्णेन्दु सिंह ने शुभारम्भ किया तो अंतरराष्ट्रीय अवधी लोकगायिका के साथ समापन. दूसरे तीसरे और चौथे दिन क्रमशः सेवानिवृत्त आई पी एस अधिकारी अशोक कुमार वर्मा, प्रोफेसर अर्जुन पाण्डेय, रेडियो की लोकप्रिय पूर्व कार्यक्रम प्रस्तोता नूतन वशिष्ठ ने अपने संबोधन से प्रतिभाभागियों को समृद्ध किया.
कार्यशाला को सफल बनाने में सचिव पंकज कँवल, सदानन्द वर्मा, अब्दुल ख़ालिक़, अनुपम कुमार वर्मा, चन्दन पटेल का विशेष योगदान रहा. कवि अनिल श्रीवास्तव लल्लू, लेखक इकबाल राही, डॉ पुष्पेन्द्र कुमार ने भी प्रशिक्षणार्थियों में अपने अनुभव साझा किये.