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चाचा-भतीजा : कौन बनेगा यादवों का शहंशाह

सियासी सल्तनत को लेकर घरेलू विवाद के बाद सियासी लड़ाई महाभारत के पा़त्रों से जुड़ चुकी है. चाचा शिवपाल सिंह यादव और भतीजे अखिलेश यादव दोनों के बीच छिड़ी जंग अब यादवों के क्षत्रप बनने की दिशा की ओर मुड़ चुका है. यादव वोट बैंक की सियासत अब अपने चरम की ओर बढ़ चली है.

कौन बनेगा यादवों का शहंशाह
कौन बनेगा यादवों का शहंशाह

सियासी सल्तनत को लेकर घरेलू विवाद के बाद सियासी लड़ाई महाभारत के पा़त्रों से जुड़ चुकी है. चाचा शिवपाल सिंह यादव और भतीजे अखिलेश यादव दोनों के बीच छिड़ी जंग अब यादवों के क्षत्रप बनने की दिशा की ओर मुड़ चुका है. यादव वोट बैंक की सियासत अब अपने चरम की ओर बढ़ चली है. यूपी की सियासत में अभी तक यादव बिरादरी के मतदाताओं पर मुलायम सिंह का प्रभुत्व माना जाता था लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी युग के सूत्रपात के साथ ही यादव बिरादरी के मतदाताओं में बिखराव के लक्षण पाये गये थे जो अभी तक जारी हैं.

दूसरी तरफ सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के भाई और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच राजनीतिक मतभेद काफी गहरे हो चुके हैं. यद्यपि दोनों एक ही यादव बिरादरी से है. इसलिए यादव बिरादरी के मतदाताओं को अपने-अपने पाले में लाने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं. यादवों को अपनी छतरी के नीचे लाने क लिए प्रसपा मुखिया शिवपाल सिंह यादव ओर पूर्व सांसद डीपी यादव ने मिलकर यदुवंशी पुनर्जागरण मिशन नाम की संस्था का गठन किया है. यह संगठन पिछड़ों, दलितों के हक की लड़ाई लड़ेगा. इस मिशन के जरिए यादवो सहित पिछड़ों की साधने का प्रयास किया जा रहा है.

कृष्ण जन्माष्टमी का मौका था. इस मौके पर प्रसपा मुखिया शिवपाल सिंह यादव का एक बधाई पत्र सामने आया. पत्र के जरिए शिवपाल बधाई देने के साथ ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर तंज कसने से भी नहीं चूकते हैं. उन्होने बगैर किसी का नाम लिए पत्र में कहा है कि कंस ने छल से अपने पिता को अपमानित कर पद से हटाने का काम किया था. आज कंस के काल के रूप में कृष्ण का जन्म हुआ है. उनका सीधा संकेत सपा मुखिया अखिलेश यादव की ओर था क्योकि सपा में सल्तनत की लड़ाई के बाद पार्टी की पूरी कमान मुलायम सिंह यादव से अखिलेश यादव के हाथ में आ गयी थी. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इसी दिन मध्य प्रदेश के ग्वालियर में थे. जहां उन्होने एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा था कि श्री कृष्ण जिनके साथ है उसकी कभी पराजय नहीं होती है. इस दौरान उन्होने महाभारत के कौरवों और पांडवो का जिक्र कर चाचा शिवपाल और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार पर निशाना साधा था.

अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के वैनर तले यादवों को एकजुट रखने के लिए पसीना बहा रहे हैं. उसके विपरित सपा से अलग हुए शिवपाल सिंह यादव अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की छतरी के नीचे अपनी बिरादरी को एकजुट करने के लिए यात्रा निकाल रहे हैं. संगठन को खड़ा करने के मामले में शिवपाल के मुकाबले अखिलेश काफी कमजोर माने जाते हैं. समाजवादी पार्टी के भारी भरकम संगठन को खड़ा करने के पीछे शिवपाल सिंह यादव के योगदान को किसी प्रकार से भी नकारा नहीं जा सकता है. इन सब के बीच यादव बिरादरी को लेकर सपा-प्रसपा के बी खींचतान का दौर चल पड़ा है.

यादव बिरादरी का अतीत काफी गौरवशाली रहा है. 1922 में गोरखपुर के चौरीचौरा के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले अधिकतर लोग दलित एवं पिछड़ी जातियों के थे. आंदोलन का नेतृत्व भगवान अहीर ने किया था जिसकी वजह से उन्हे फांसी की सजा दी गयी थी. स्वतंत्रता सेनानियों में एक प्रमुख नाम चौधरी रघुबीर सिंह का भी मिलता है. आजादी से पहले ही यादव नेता चौधरी नेहाल सिंह, चौधरी गंगाराम, बाबूराम यादव और लक्ष्मी नारायण ने यूपी, दिल्ली और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में उपजातियों में बंटे हुए यादवों को एकजुट करने की पहल की थी. 1908 में इन नेताओं ने यादव सभा का गठन किया था. इसी साल रेवाड़ी राजपरिवार से जुड़े राव मान सिंह ने अभीर यादव कुलदीपक किताब में यादव, अहीर, गोप सभी क्षत्रिय यदुकुल के वंशजो को एक होने की अपील की थी. 1908 में ही दिलीप सिंह ने रेवाड़ी से अहीर गजट पत्रिका प्रकाशित की थी.

यूपी जब संयुक्त प्रांत था तब मैनपुरी ही अहीर संगठनों की धुरी हुआ करती थी. चौधरी पद्मा सिंह, चौधरी कामता सिंह और चौधरी श्याम सिंह ने साल 1910 में मैनपुरी में अहीर-यादव क्षत्रिय महासभा गठित की थी. 1912 में शिकोहाबाद में अहीर क्षत्रिय विद्यालय की स्थापना की गई थी. अहीर यादव क्षत्रिय महासभा ने सबसे पहले यादवों की विभिन्न उपजातियों को साथ लाकर उन्हें राजनीतिक शक्ति के रूप में संगठित किया. राव बलबीर सिंह ने यादवों को जनेऊ पहनने की प्रेरणा दी थी. तो बिहार के मुंगेर में राजपूत और भूमिहार नाराज हो गए और यादवों-अहीरों के साथ इनकी हिंसक झड़पें भी हुईं थी. विट्ठल कृष्ण खेतकर ने 1924 में इलाहाबाद में अखिल भारतीय यादव महासभा बनायी.

आजादी के पहले से ही अखिल भारतीय यादव महासभा सरकार से सेना में यादव रेजिमेंट बनाने की मांग करती रही है. यह मांग आज भी दक्षिण हरियाणा के राव उठाते रहते हैं.
यादवों में भी उप जातिया है. इनमें प्रमुख रुप से अहीर, ग्वाला, आभीर और गोल्ला हैं. अहीर में तीन शाखाऐं पायी जाती हैं. यदुवंशी, नंदवंशी और ग्वालवंशी. यादवों की इन्ही उप जातियों में महाकुल, ग्वाला, गोप, किसनौत, गोरिया, गौर, भुर्तिया, राउत, थेतवार, राव, घोसी और मंझारोठ शामिल है. इनकी कुरुबा, धांगर,पाल, बघेल या गड़रिया भी उपजाति की ही एक शाखा है. कुरुबा की गिनती योद्धाओं में की जाती है. घांगर किले बनाने में निपुण थे. इंदौर के होल्कर वंश धांगर जाति से तालुक रखते हैं. अहीरों की चार शाखाऐं विकसित हुई. खेतकर या गड़रिया, अहीर या गोपालक, महिशकर या भैस पालक, खेतकर या कंबल बनाने वाले थे. यदुवंशी खुद को राजपूत मानते हैं. छठवीं सदी के बाद राज करने वाले यादव राजाओं के वंशज यदुवंशी यादवों से सामाजिक-राजनीतिक संबंध बेहतर नहीं थे. यदुवंशी राजपूतों में जडेजा, चुड़ासमा, गायकवाड़, जाधव, वाडियार, सांलासकर, कलचुरी, जेसलमेर के भाटी राजपूत शामिल हैं.


Published: 10-09-2022

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