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भारत जोड़ो यात्रा : अब समझ आयेगी पसीने की कीमत

निर्जीव कांग्रेस में कितना प्राण वायु भर पायेगे राहुल. पर कांग्रेस अपनी सियासी सेहत सुधरने की गरज से पसीना बहाने की डगर पर चल पड़ी है.

अब समझ आयेगी पसीने की कीमत
अब समझ आयेगी पसीने की कीमत

कांग्रेस अपनी सियासी सेहत सुधरने की गरज से पसीना बहाने की डगर पर चल पड़ी है. अब उसे पसीने की कीमत का अहसास होगा. कभी कांग्रेस ऐसी यात्राओं का उपहास उड़ाती थी. आज वही कांग्रेस को उसी यात्रा की शरण में जाने को मजबूर होना पड़ा है. कांग्रेस के सियासी तरकश में एक अचूक अस्त्र प्रियंका वाड्रा मानी जाती थी. कांग्रेस अपने उस अचूक अस्त्र का भी प्रयोग कर चुकी लेकिन कामयाबी उससे कोसो दूर रही है.

नतीजन कांग्रेस को अपनी वातानुकूलित सियासत से बाहर निकलकर जनता से सीधे तोर पर संवाद स्थापित करने को मजबूर होना पड़ा. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 7 सितम्बर बुधवार से भारत जोड़ो यात्रा के तहत करीब 3570 किमी की दूरी तय करने को चल पड़े हैं. राहुल की भारत जोड़ो यात्रा देश के 12 राज्यों, दो केन्द्रशासित प्रदेशों से होकर गुजरेगी. इस मर्तबा राहुल गांधी कांग्रेस के बिगड़ते चेहरे को संवारने के लिए अपने पसीने से उसका श्रंगार करेंगे. देखने वाली बात तो यह होगी कि निर्जीव कांग्रेस में राहुल गांधी कितना प्राण वायु भर पाते हैं.

06 जनवरी 1983 को पूर्व प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर ने जब कन्या कुमारी से पैदल चलकर 25 जून 1983 को गांधी समाधि राजघाट पर अपनी यात्रा का समापन किया था. तो उस वक्त कांग्रेसी हुक्मरान ने उनकी इस यात्रा को ढकोसला जैसे शब्द से नवाजा था. अपनी पद यात्रा के समापन के बाद चन्द्रशेखर ने देश में शुद्ध पेयजल, शिक्षा की दशा में सुधार, सभी को स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने, आदिवासियों के जीवन स्तर में बदलाव लाने के साथ ही सामाजिक असमानता और कुपोषण से निपटने की दिशा में पहल करने की अपेक्षा तत्कालीन हुकूमत से की गयी थी. उस दौरान उनकी इस अपील की अनदेखी करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित करार दिया गया था.

आज उसी कांग्रेस को पद यात्रा के जरिए जनता के बीच जाने के लिए विवश होना पड़ा है. कांग्रेस का फोकस जनता से मिलकर सीधे तौर पर संवाद स्थापित करने पर केन्द्रित रखा गया है. राहुल की इस यात्रा में 117 कांग्रेसी नेताओं का चयन किया गया है जो निरंतर राहुल गांधी के साथ पद यात्रा में शामिल रहेंगे. भाजपा अध्यक्ष रहे लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितम्बर 1990 में सोमनाथ से आयोध्या तक के लिए राम रथ यात्रा निकाली थी. यह रथ यात्रा पूरी तरह से राजनीतिक थी लेकिन बिहार में लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी की इस रथ यात्रा को रोक दिया था. नतीजन केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चा की वीपी सिंह सरकार गिर गयी थी क्योंकि भाजपा वी पी सिंह सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी.

आडवाणी की इस रथ यात्रा का फायदा भाजपा को मिला था. साल 1997 में आडवाणी ने देश की आजादी के पचास साल पूरे होने पर स्वर्ण जयंती रथ यात्रा निकाली थी. उनकी यह रथ यात्रा अधिक चर्चित नही हो पायी थी लेकिन उन्हे देश के कोने कोने में घूमने का मौका जरूर मिला था. साल 1998 में भाजपा को केन्द्र की सत्ता मिल जाती है. मौजूदा भाजपा की अगुवाई वाली राजग सरकार की उपलब्धियों को को प्रसारित करने के लिए 2004 में उप प्रधानमंत्री रहते हुए आडवाणी ने भारत उदय यात्रा निकाली थी. इसी साल लोकसभा के चुनाव होने थे. इस यात्रा का भाजपा को कोई फायदा नहीं मिला. राजग को शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आडवाणी ने आतंकी घटनाओं की बढ़ती वारदात सीमाओं पर बढ़ते खतरे के प्रति जन जागरण करने के लिए 2006 में अपनी यात्रा को भारत सुरक्षा यात्रा का नाम दिया था. इसी प्रकार साल 2009 में आडवाणी देष के भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर जनादेश यात्रा के साथ 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ा. इस यात्रा और चुनाव में अडवानी ने मंहगाई,भ्रष्टाचार, कालाधन, को मुद्दा बनाया था. इसके बावजूद भी राजग सरकार नही बना सकी. 2004 और 2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार सत्तासीन हुई थी.

सियासी यात्राओं के मामले में भाजपा बेजोड़ रही है. सबसे अधिक यात्रा भाजपा की ओर से लालकृष्ण आडवाणी के नाम दर्ज हैं. भाजपा की ओर से 1991 में मुरली मनोहर जोशी ने पाक आतंकियों को सबक सिखाने के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक एकता यात्रा निकाली थी. उन्होने कश्मीर के लालचौक पर तिरंगा फहराया था. जोशी की इस यात्रा में नरेन्द्र मोदी भी साथ थे. 2011 में भाजपा युवा मोर्चा ने तिरंगा यात्रा निकाली थी. यह यात्रा कश्मीर लाल चौक जानी थी. जम्मू कश्मीर के तत्कालीन सीएम उमर अब्दुला ने इस यात्रा का रोक दिया था. भाजपा ने यूपी विधान सभा चुनाव के पहले साल 2021 में जन विश्वास यात्राओं के जरिए जनता का भरोसा जीतने में कामयाब रही है.

ऐसी यात्राओं की विरोधी रही कांग्रेस आज उसी यात्रा को अंगीकार करने को विवश हो चुकी है. आज सवाल यह उठ रहा है कि क्या राहुल गांधी की यह पद यात्रा उन्हे और कांग्रेस को सियासी धरातल पर पुर्नस्थापित करने में कामयाब होगी. क्या कांग्रेस अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को बहाल कर सकेगी. जैसा विदित है कि कांग्रेस सत्ता में रहते हुए अहंकार स्वरूप खुद को जनता से जोड़ नही सकी. जनता और कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़ती गयी. इस बढ़ती दूरी ने कांग्रेस को रसातल में पहुंच दिया. यूपी विधान सभा चुनाव के नतीजों के बाद कोंगेस को अहसास हुआ कि अब सीधे जनता से जुड़ाव के बगैर कांग्रेस का भला होने वाला नहीं रहा. सियासी यात्राओं के नजरिए से देखे तो भाजपा से अधिक किसी दल ने यात्रा नही की है. लोकदल बंटवारे के बाद लोकदल ब के नेता मुलायम सिंह ने जनता पार्टी और कम्युनिस्टो के साथ क्रांतिकारी मोर्चा बनाया था. इसके बाद उन्होने क्रांति रथ यात्रा के जरिए जनता के बीच गये थे. इसी प्रकार सपा मुखिया भी साइकिल यात्राओं का आयोजन कर चुकी है.


Published: 10-09-2022

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