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मेहनत में कोई कसर नहीं : पर बसपा का मेम्बरसाजी अभियान ठंडा

बसपा के सदस्यता अभियान की जो तस्वीर उभरी है वह काफी चिन्ताजनक है. तय लक्ष्य की अपेक्षा पार्टी को एक तिहाई सदस्य बनाने में पसीना छूटने लगा है जबकि लोकसभा का चुनाव धीरे-धीरे दस्तक देने लगा है.

पर बसपा का मेम्बरसाजी अभियान ठंडा
पर बसपा का मेम्बरसाजी अभियान ठंडा

यूपी विधान सभा चुनाव में शिकस्त खाने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने के साथ ही पार्टी कोष को दुरुस्त करने को सदस्यता अभियान चला रही हैं. बसपा के सदस्यता अभियान चलाने का एलान 29 मई 2022 को किया गया था. इसकी शुरुआत एक जून से हुई थी. पार्टी मुखिया मायावती सदस्यता अभियान की समीक्षा 3 अगस्त को करेंगी. बसपा के इस सदस्यता अभियान के तहत पार्टी पदाधिकारियो को प्रत्येक विधान सभा में 75 हजार सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया गया था. बिडम्बना यह है कि पार्टी पदाधिकारियों को सदस्य बनाने में काफी मुश्किलें आ रही हैं. संगठन के लोगों को बड़ी दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है.

सदस्यता अभियान के तहत सबसे महंगा सदस्यता शुल्क भी बसपा के रास्ते की रुकावट बन रहा है. सबसे महंगी सदस्यता का शुल्क बसपा का 200 रुपए है. तो सबसे सस्ता सदस्यता शुल्क कांग्रेस का महज पांच रुपए है. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी का सदस्य बनने के लिए बीस रुपए तो भाजपा और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का सदस्य बनने के लिए दस रुपए अदा करना पड़ता है.

साल 2012 से लगातार बसपा के सियासी सितारे गर्दिश के दौर से गुजर रहे हैं. यूपी के बीते विधान सभा चुनाव 2022 में बसपा मात्र एक सीट पर सिमट गयी. इससे साफ जाहिर होता है कि उसके वोट बेंक में काफी गिरावट आयी है. जबकि लोकसभा का चुनाव धीरे-धीरे दस्तक देने लगा है. सभी सियासी दल जनता के बीच अपनी पैठ को मजबूत करने की गरज से सदस्यता अभियान को बैसाखी बना रहे हैं. भाजपा प्रत्येक दरवाजे पर दस्तक देने की मुहिम में लगी है. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी सदस्यता अभियान के जरिए अपनी सियासी जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए पसीना बहा रही है. बसपा के सदस्यता अभियान की जो तस्वीर उभरी है वह काफी चिन्ताजनक है. तय लक्ष्य की अपेक्षा पार्टी को एक तिहाई सदस्य बनाने में पसीना छूटने लगा है. कोई सदस्य बनने को राजी ही नही हो रहा है. दूसरी तरफ सूबे की प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने अपनी सभी कमेटियों को भंग कर पूरी ताकत सदस्यता अभियान में लगा दिया है.

बसपा के आंकड़ों पर गौर करे तो लखनऊ जिले की 9 विधान सीटो में 75 हजार प्रत्येक विधान सभा के मुकाबले महज एक लाख ही सदस्य पूरे जिले में बना पायी है. यही हाल गाजियाबाद की पांच विधान सभाओं में महज 50 हजार, बरेली जिले की 9 विधान सभाओं में 25-25 हजार ही सदस्य बने हैं जो बसपा की जमीनी हकीकत को बयां करते है. पहले बसपा सिर्फ पार्टी पदाधिकारियो से ही शुल्क वसूल करती थी लेकिन इस बार उसने आम सदस्य से भी शुल्क ले कर पर्ची काटने की व्यवस्था लागू कर दी है. सदस्यता अभियान के जरिए बसपा सर्व समाज के लोगों को पार्टी से जोड़ने पर अधिक जोर दे रही है. साथ ही बिखरते अपने समाज के लोगों को एकजुट करने के लिए पार्टी पदाधिकारियों को खास हिदायत दी गयी है. फिलहाल जो सूरतेहाल है वह बसपा संगठन और बसपा सुप्रीमो मायावती की उम्मीदों पर पानी फेरते दिखाई दे रहे है.

 


Published: 02-09-2022

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