कितने पराक्रमी साबित होंगे भूपेन्द्र
यूपी भाजपा को जाट बिरादरी से अपनी नाव शान से खेने के लिए एक नया मल्लाह मिल गया है. अपने नये मल्लाह की खोज में भाजपा को पांच महीने का वक्त लग गया. इन पांच महीनों में भाजपा ने अपने कमजोर इलाके से सूबे का मुखिया चुनने का फैसला लिया. पश्चिमी यू पी के जाटलैंड की जड़ मजबूत करने की गरज से भाजपा को यह फैसला लेना पड़ा. जाटलैंड से तालुक रखने वाले भूपेन्द्र सिंह चौधरी की यूपी भाजपा अध्यक्ष पद की जा चुकी है. सोमवार को उन्होने अपना पद भार भी ग्रहण कर लिया.
पश्चिमी यूपी सियासी तौर पर भाजपा की कमजोर कड़ी मानी जाती रही है. उस कमजोरी को दुरुस्त करने के लिए पार्टी नेतृत्व द्वारा इस मर्तबा जाटलैंड को मौका दिया गया है. सूबे के सियासी रंगमंच पर अब भूपेन्द्र चौधरी को अपने सियासी कौशल को प्रदर्षित करने का अवसर मिला है. अपने सियासी पौरुष के बलबूते उनके ऊपर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती और दबाव भी रहेगा. पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन से उपजे माहौल को एक बार फिर संतुलित करके उसकी दिशा को भाजपा की ओर मोड़ने की चुनौती होगी. कहा तो यहां तक जाता है कि विधान सभा चुनाव 2022 के ठीक पहले किसान आंदोलन ने भाजपा की चूल हिला कर रख दी थी लेकिन चौधरी ने उस आंदोलन की धार को कुंद करने में बड़ी भूमिका निभायी थी जिसका इनाम उन्हे उनकी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के रूप में मिला है. यह भी कहा जा सकता है कि भूपेन्द्र चौधरी ने पार्टी के भीतर करीब दस दावेदारों के चक्रव्यूह को तोड़कर यह मुकाम हासिल किया है. ब्राह्मण समुदाय से दिनेष शर्मा, योगेन्द्र उपाध्याय, सांसद सतीश गौतम, सुब्रत पाठक, श्रीकांत शर्मा और विजय बहादुर पाठक, पिछड़े तबके से केशव प्रसाद मौर्य, दलित वर्ग से भानु प्रताप वर्मा, रामशंकर कठेरिया और विद्या सागर सोनकर को पीछे छोड़ दिया.
साल 2004 से अब तक चार बार लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं. इन चारों चुनावों में यूपी भाजपा अध्यक्ष पद पर ब्राहमण समुदाय के पास ही रहा है. इसी कड़ी में साल 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा का बोलबाला रहा है. भाजपा अपने सियासी सफर में सबसे अधिक ऊंचाई पर पहुंची. यह दौर भाजपा के चरमोत्कर्ष का समय रहा है. मुल्क में साल 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं. इस लिहाज से भी भाजपा अपनी कमजोर कड़ी को मजबूत करने के लिए पूरा दमखम लगा रही है. भूपेन्द्र चौधरी की ताजपोशी उसी का एक हिस्सा है. इस ताजपोशी में जाटलैंड फतेह करने का मंत्र छिपा हुआ है.
जाटों के बीच सपा-रालोद गठबंधन के बढ़ते प्रभाव को रोकने और गठबंधन को कमजोर करने के लिए भी भाजपा ने चौधरी पर दांव खेला है. पश्चिमी यूपी की करीब डेढ़ दर्जन लोकसभा सीट जाट बाहुल्य हैं. इन पर जीत दर्ज करने की रणनीति के तहत समूचे पश्चिमी यूपी की सियासत को भाजपा अपनी मुट्ठी में करने की रणनीति पर काम कर रही है. इसके अलावा भी एक ऐसी चुनौती भाजपा के नये सूबेदार भूपेन्द्र सिंह चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सैनी के सामने मुंह फैलाये खड़ी है. श्री चौधरी मुरादाबाद और धर्मपाल बिजनौर जिले से आते हैं. इन दोनों के जिलो की लोकसभा सीटे सपा और बसपा के कब्जे में है. पार्टी के इन दोनों ओहदेदारों के सामने मुरादाबाद और बिजनौर की लोकसभा सीट को सपा-बसपा के चंगुल से मुक्त कराने का भारी जिम्मा है. जबकि भूपेन्द्र चौधरी दो मर्तबा चुनाव में शिकस्त खा चुके हैं. पश्चिमी यूपी के सहारनपुर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, बिजनौर अमरोहा, बरेली और रामपुर जिलों की लोकसभा सीटें सबसे बड़ी चुनौती मानी जा रही हैं. अब उन्हे अपनी सार्थकता साबित करना होगा.
पश्चिमी यूपी की अपेक्षा पूर्वाचंल में भाजपा की सियासी दशा बेहतर है. पूर्वाचंल में वाराणसी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गोरखपुर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सियासी कर्मभूमि है. वहीँ सूबे के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, सहयोगी दल अपना दल एस की अनुप्रिया पटेल, निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद जैसे कई अन्य चेहरे हैं जो पूर्वाचंल की सियासी वायु की प्रतिकूल दिशा को अपनी अनुकूल दिशा की ओर मोड़ने में समर्थ माने जाते हैं.