महिलाओं को ३० प्रतिशत आरक्षण मिले
उत्तराखंड क्रांति दल की कार्यकारी जिलाध्यक्ष दूध किरण रावत कश्यप एडवोकेट ने हाईकोर्ट के फैसले उत्तराखंड की महिलाओ को 30%आरक्षण पर रोक पर आपत्ति जताते हुए कहा कि हम उत्तराखंड राज्य के मूल निवासी हैं तथा उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थिति से भलीभाँति परिचित है. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड की महिलाओ के 30%आरक्षण वाला शासनादेश किसी भी प्रकार से संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 तथा 21 का उल्लंघन नहीं करता क्योंकि संविधान में आरक्षण का प्रावधान जन्मजात निवास स्थान नहीं अपितु निम्न वर्गों पिछड़े वर्गों अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों की सामाजिकता या आर्थिक स्थिति में सुधार लाने हेतु है.
उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के अनुसार ही यहां पर महिलाओ के लिए 30%आरक्षण किया गया. श्रीमती कश्यप ने कहा कि क्योंकि उत्तराखंड का अधिकांश भाग पहाड़ी होने के कारण यहां की महिलाओं को बहुत ही विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ता हैं. पहाड़ी महिलाओं को घास काटने के लिए छ घंटे पुलिस थानों में बैठा दिया जाता हैं. तो इससे ज्यादा महिलाओं की दयनीय स्थिति और आर्थिक रूप से पिछड़ा होना और क्या हो सकता है. उत्तराखंड राज्य में ऐसी महिलाओं के लिए क्या आरक्षण की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए और भारत संविधान लिंग भेद के आधार पर भेदभाव को निषेध करता है. वाबजूद इसके महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करता है तो क्या उत्तराखंड सरकार यहां की क्षेत्रीय महिलाओं की स्थिति को देखते हुए आरक्षण का प्रावधान नहीं कर सकतीं हैं. कि न्यायालय की उत्तराखंड राज्य तथा अन्य मैदानी राज्यो की महिलाओं की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए पुनः अपने फैसले पर विचार करना चाहिए ।