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दलित या ब्राह्मण चेहरे पर दांव : कौन संभालेगा यूपी बीजेपी संगठन की कमान

उत्तर प्रदेश में भाजपा को प्रदेश अध्यक्ष की तलाश है. नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन में दांव-पेच का कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन प्रयोगवादी का यह नया उदाहरण जरूर है कि बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए अब संगठन से ऊपर समीकरण हैं. देखा जाए तो सरकार में संगठन का वजन घटता जा रहा है. लेकिन कयासों के दौर जारी हैं और इसी बीच बीते 36 घंटों में यूपी के दोनों डिप्टी सीएम यानी केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की है. इनकी मुलाकात के बाद से ही कई कयास लगाए जा रहे हैं.

कौन संभालेगा यूपी बीजेपी संगठन की कमान
कौन संभालेगा यूपी बीजेपी संगठन की कमान

भारतीय जनता पार्टी यानी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी में उत्तर प्रदेश अध्यक्ष के पद को लेकर घमासान मचा हुआ है. नए प्रदेश अध्यक्ष का नाम शीर्ष स्तर पर तय है. निचले स्तर पर नामों को लेकर कयासबाजी का दौर तेज हो गया है. नये प्रदेश अध्यक्ष के नामों को लेकर सबसे अधिक चर्चा में पिछड़ी जाति के नेताओं के नाम हैं. इसके बाद दलित और ब्राह्मण समाज से भी एक दो नाम इस रेस में दौड़ाये जा रहे हैं. लेकिन इतना तो तय है कि यूपी संगठन की कमान अब नए हाथों में सौंपी जाएगी. माना जा रहा है कि पार्टी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के सफल फार्मूले पर भरोसा जताते हुए फिर से ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है. सामने कई चेहरे हैं भी, लेकिन पार्टी के अचंभित करने वाले प्रयोग किसी भी दावे या अटकलों पर पलभर में विराम लगा देते हैं.

बीजेपी ने संगठन में जो अहम बदलाव किया है उसके बाद अब बेसब्री से इंतजार पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष का हो रहा है. ऐसी संभावना है कि अध्यक्ष के तौर पर पार्टी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव की ही तरह किसी ब्राह्मण नेता को यह जिम्मेदारी सौंप सकती है क्योंकि संगठन महामंत्री के तौर पर ओबीसी बिरादरी से आने वाले धर्मपाल को जिम्मेदारी दी गई है. वहीं विधान परिषद में भी नेता सदन केशव प्रसाद मौर्य को बनाया गया है जो कि ओबीसी बिरादरी से आते हैं. ऐसे में चाय की चुस्की बेस्वाद हो गई, किसी ओबीसी नेता के प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की अटकलों पर पूर्णतः विराम लग गया. अब चर्चा के केंद्र बिंदु में ब्राह्मण या दलित नेता का नाम घूम रहा है.

चर्चा इस बात को लेकर है कि बीजेपी किसी दलित चेहरे को उत्तर प्रदेश में पार्टी की कमान सौंप सकती है. इसके पीछे तमाम तर्क भी जीवित हो उठे हैं कि संगठन में ओबीसी को जिम्मेदारी दी गई है, ब्राह्मण नेता के तौर पर बृजेश पाठक उपमुख्यमंत्री हैं जबकि विधान परिषद में ओबीसी समाज से आये केशव प्रसाद मौर्य को जिम्मेदारी दी गई है. ऐसे में अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने जो रणनीति तैयार की है उसमें केवल दलित बिरादरी ही ऐसी है जिस पर बीजेपी बड़ा दांव लगा सकती है. हालांकि पार्टी के नेता कह रहे हैं कि बीजेपी जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर नियुक्ति नहीं करती है बल्कि पार्टी के ही किसी कार्यकर्ता को ही यह जिम्मेदारी दी जाएगी.

आपको बता दें कि स्वतंत्रदेव सिंह के अध्यक्ष के पद से इस्तीफे के बाद पार्टी में नए प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ तेज हो गई है. इस दौड़ में ब्राह्मण नेताओं में पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा, कन्नौज के सांसद एवं प्रदेश महामंत्री सुब्रत पाठक, अलीगढ़ के सांसद सतीश गौतम, नोएडा के सांसद डॉ. महेश शर्मा और प्रदेश उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक प्रमुख दावेदार हैं. सूत्रों के मुताबिक सरकार का झुकाव पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा और पूर्व मंत्री श्रीकांत शर्मा के पक्ष में है. कहा जा रहा है पार्टी के एक राष्ट्रीय महामंत्री श्रीकांत शर्मा की पैरवी कर रहे हैं.

लेकिन चर्चा यह भी है कि पार्टी एवं संघ नेतृत्व यदि किसी दलित को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहता है तो फिर अमित शाह की पहली पसंद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री भानु प्रताप वर्मा हो सकते हैं. उधर योगी आदित्यनाथ के खेमे में यह चर्चा जोरों पर है कि जाटव बिरादरी के राज्य मंत्री और पूर्व वरिष्ठ अधिकारी असीम अरुण उनकी अध्यक्ष पद के लिए पहली पंसद हैं क्योंकि वर्ष 2022 के विधान सभा चुनाव में भाजपा को दलित बिरादरी का पहली बार बड़ी संख्या में वोट मिला था जिसे वे 2024 के लोक सभा चुनाव में भुना सकते हैं. हालांकि चर्चा इस बात की है कि बीजेपी एक या दो दिन में उत्तर प्रदेश में नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा कर सकती है और पार्टी की तरफ से जो नाम घोषित किया जाएगा उसमें भी संदेश कहीं न कहीं 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर छिपा होगा.

गौरतलब है कि योगी सरकार-2.0 के गठन में ही 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव की तैयारी की झलक भी नजर आ रही थी. क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को खूब ख्याल रखा गया. पिछड़ों और अनुसूचित वर्ग को मंत्रिपरिषद में तवज्जो मिली तो ब्राह्मण समाज से आठ मंत्री बनाकर सरकार ने उस अफवाह को भी पूरी तरह बेदम कर दिया था कि भाजपा सरकार में इस वर्ग की अनदेखी की गई. बहरहाल, अब बारी संगठन की है लेकिन संगठन में ही कई तरह की अटकलें हैं.

कयासों के बीच सबसे अधिक चर्चा में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का नाम है. इनके प्रदेश अध्यक्ष रहते ही 2017 में भाजपा सालों बाद प्रदेश की सत्ता में पूर्ण बहुमत से आई थी. पार्टी का मानना है कि उनकी कार्य़शैली और संगठन के प्रति समर्पण के चलते ही वह सर्वमान्य नेता हैं. लिहाजा, पार्टी इनके अनुभवों का लाभ 2024 में लेना चाहेगी. हालांकि विधान परिषद में नेता सदन की जिम्मेदारी दिए जाने के बाद अब इनके नाम को लेकर संशय भी जताया जा रहा है.

वहीं दूसरी ओर बीजेपी के शलाका पुरुष और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह की विरासत को पार्टी में अलग पहचान गढ़ने के लिए कल्याण सिंह के समर्थकों ने भाजपा में अब तेजी से लामबंदी शुरु कर दी है. उनके समर्थकों ने वाकायदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा व आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व को भी अपनी दिल की भावना से अवगत करा दिया है.

आपको ज्ञात होगा कि उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय जनसंघ को पिछड़ी जातियों तक पहुंचाया था. गौरतलब है कि इसके पहले भारतीय जनसंघ को केवल ब्राह्मण, ठाकुर, कायस्थ की ही पार्टी माना जाता था लेकिन लोधी राजपूत के कदृावर नेता कल्याण सिंह ने प्रदेश भर निरंतर प्रवास करके पार्टी को पिछड़ी जातियों के बीच ले जाकर गहरी पैठ बनाई. वे राज्य में लोधी राजपूत के सिरमौर नेता बने.

अब जब बीजेपी में पिछड़े या किसी दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की चर्चा सुर्खियां बनती जा रही हैं. तब ऐसे में पिछले चार पांच दिनों से कल्याण सिंह के समर्थकों ने स्वर्गीय कल्याण सिंह की विरासत को मजबूत करने के लिए कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी तथा संघ के शीर्ष नेतृत्व से बात की है.

प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए एक और नाम उछाला गया है. एक लोधी राजपूत बिरादरी के नेता और केन्द्रीय राज्य मंत्री बी एल वर्मा और दलित जाटव पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी तथा एडीजी के पद से वीआरएस लेकर सेवानिवृत्त हुए वर्तमान में योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल समाज कल्याण विभाग के स्वतंत्र प्रभार मंत्री असीम अरुण जाटव हैं जो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार हैं. ऐसा बताया जा रहा है उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी आशीर्वाद प्राप्त है. उधर बीएल वर्मा की दावेदारी भी काफी मजबूत है क्योंकि उन्हें केंद्रीय मंत्री अमित शाह की पसंद बताया जा रहा है.

गौरतलब है कि बीजेपी ने कुछ समय पहले संगठन में फेरबदल करते हुए नए महामंत्री की नियुक्ति कर दी थी. अब पार्टी में चाहें कार्यकर्ता हों या पदाधिकारी सबको नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा का इंतजार है. पार्टी ने ओबीसी समाज से आने वाले धर्मपाल सैनी को संगठन का महामंत्री बनाया है. उसके बाद से इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए किसी ब्राह्मण नेता या फिर किसी दलित चेहरे पर दांव लगा सकती है.

इसके इतर कुछ लोगों का तर्क है कि डा. दिनेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा सहित डा. महेंद्र सिंह और सिद्धार्थनाथ सिंह ने संगठन में काफी काम किया है. उनके अनुभव का प्रयोग पार्टी राष्ट्रीय संगठन में पद देकर लोकसभा चुनाव में कर सकती है. वहीं, पिछड़ों के सबसे बड़े वोटबैंक को साधने के लिए पिछड़ा वर्ग से किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का प्रयोग कर सकती है. पिछड़े वर्ग में केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा और पंचायतीराज मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी की दावेदारी है. दलित वर्ग में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं इटावा के सांसद रामशंकर कठेरिया भी इस दौड़ में हैं. सूत्रों के मुताबिक पार्टी के एक पूर्व राष्ट्रीय पदाधिकारी एवं आरएसएस प्रचारक उनकी पैरवी कर रहे हैं. चूंकि, अप्रत्याशित तरीके से कई वरिष्ठ मंत्रियों को नई जिम्मेदारी देने के लिए मंत्रिपरिषद से मुक्त रखने का प्रयोग बीजेपी कर चुकी है, इसलिए किसी नए प्रयोग की संभावना से भी कोई इनकार नहीं कर पा रहा है.


Published: 19-08-2022

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