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बिहार को महाराष्ट्र बनने से : बचा ले गये नितीश कुमार

जेडीयू और भाजपा के बीच जिस प्रकार से तनाव और शीतयुद्ध का दौर चल रहा था. उससे यह साफ हो चुका था कि इन दोनों के बीच के सियासी रिश्ते अब अधिक टिकाऊ नहीं रहे हैं जिसकी परिणति बीते मंगलवार को सतह पर आ गयी. नितीश कुमार ने भाजपा से तलाक लेकर अपनी सल्तनत के साथ ही अपने संगठन को भी महफूज रखने में कामयाब रहे.

बचा ले गये नितीश कुमार
बचा ले गये नितीश कुमार

बिहार की सियासत में भाजपा का दांव उसे ही दांव दे गया. आरसीपी सिंह के जरिए भाजपा द्वारा जो पांसा खेला गया था, उस पांसे से निकलने वाले नतीजे को समय रहते नितीश कुमार पहचान गये जिसकी वजह से नितीश बिहार को महाराष्ट्र बनने से बचा ले गये. जेडीयू और भाजपा के बीच जिस प्रकार से तनाव और शीतयुद्ध का दौर चल रहा था. उससे यह साफ हो चुका था कि इन दोनों के बीच के सियासी रिश्ते अब अधिक टिकाऊ नहीं रहे हैं जिसकी परिणति बीते मंगलवार को सतह पर आ गयी. नितीश कुमार ने भाजपा से तलाक लेकर अपनी सल्तनत के साथ ही अपने संगठन को भी महफूज रखने में कामयाब रहे. दूसरी तरफ भाजपा को इस प्रकार के घटनाक्रम की उम्मीद नहीं थी. जिस प्रकार से नितीश ने भाजपा की रणनीति को नाकाम कर दिया. नितीश के दांव से भाजपा अवाक रह गयी.

यूपी और बिहार की सियासत की भौगोलिक पर्यावरण तकरीबन मिलती जुलती है. यहां की सियासी हवा में जातीय समीकरण घुला हुआ है. यादव-मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाता राजत्ख्त के हुक्मरान को तय करने में प्रभावी भूमिका निभाते है। बिहार राज्य की सियासत का आंकलन करे तो राजद के वोट बैंक का प्रमुख आधार मुस्लिम और यादव बिरादरी है। जबकि नीतीष कुमार गैर यादव पिछड़ो जातियों और महा दलितों को अपने पाले में बनाये रखा है। नीतीष के यही 10 फीसदी वोट षेयर जिधर हो जाते है जीत उसी वरण कर लेती है। जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस का महा गठबंधन भाजपा के सियासी ताने-बाने के बीच सबसे बड़ी बाधक रही है। दूसरी मर्तवा नीतीष कुमार राजद के साथ साझीदार बनने को मजबूर हुए है। राजद से मिलकर उन्होने अपने सियासी अस्तित्व को महफूज तो रखा ही साथ ही राष्ट्रीय सियासत में भी हलचल पैदा कर दी है। हिन्दी भाषी राज्यो में अब एक बार पुनः जातिगत जन गणना, जनसंख्या नियंत्रण, एनआरसी, समान नागरिक संहिता जैसे विषय नये सिरे से मुखर हो सकते है।

विधान सभा चुनाव 2020 से ही भाजपा जेडीयू की घेराबंदी कर रही थी। इसकी पहली कड़ी में लोजपा के चिराग पासवान के जरिए जेडीयू को कमजोर करने की रणनीति अख्तियार की थी. चिराग पासवान भाजपा के पक्ष और जेडीयू के खिलाफ थे. जबकि जेडीयू और भाजपा गठबंधन धर्म के तहत चुनाव लड़ रहे थे. दूसरी घटना आरसीपी सिंह से जुड़ी है. आरसीपी सिंह को भाजपा के सहयोग से पीएम मोदी ने अपने केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया. मंत्री बनाने के लिए जेडीयू को विश्वास में लेना भी जरूरी नही समझा. यही नहीं जेडीयू ने राज्यसभा के चुनाव में आरसीपी सिेंह का टिकट काट दिया. श्री सिंह ने पार्टी में सेंधमारी करने की भरपूर कोशिश की लेकिन नाकाम रहे. बीते चुनाव में भाजपा ने 77 सीटे जीतने के बाद भी सीएम की कुर्सी नितीश की ओर खिसका दी थी क्योकि भाजपा के पास नितीश से मुकाबले के लिए कोई मजबूत चेहरा नही था जो चुनौती दे सकता और फिर भाजपा ने वादा भी किया था कि राजग के मुख्यमंत्री नितीश ही होंगे.
नाराजगी की वजह
नितीश कुमार लगातार बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग करते आ रहे थे. उनकी इस मांग को केन्द्र सरकार अनसुनी करती रही. नितीश कुमार जातिगत जनगणना के पक्षधर थे. इसके अलावा अग्निपथ योजना से वे इत्तेफाक नहीं रखते थे. इसके अलावा जब बिहार विधानसभा के जलसे के लिए आमंत्रण पत्र छपवाया गया उस आंमत्रण पत्र से नितीश कुमार का नाम गायब था. यही नहीं नितीश का आरोप था कि उन्हें सरकार चलाने की आजादी नही है. सहयोगी दल यानी कि भाजपा के विधायक और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तक उनकी नीतियों की आलोचना कर रहे हैं. जो गठबंधन धर्म के खिलाफ है. विधान सभा अध्यक्ष भी भाजपा कोटे से थे जो सरकार की नीतियों और कार्यवाही संचालन में अवरोध पैदा करते रहे जिसकी वजह से नितीश कुमार असहज हो रहे थे. 2014 का लोकसभा चुनाव चुनावी दहलीज पर खड़ा दस्तक दे रहा था.

2013 में ही भाजपा ने नरेन्द्र मोदी का नाम बतौर पीएम पद के तौर पर पेश कर दिया. भाजपा का यह फैसला नितीश कुमार को नागवार गुजरा था. उन्होने एक झटके में करीब 17 बरस पुरानी दोस्ती तोड़ दी थी. राजद के सहयोग से जेडीयू की सरकार महफूज रही. साल 2014 में लोकसभा के चुनाव में नितीश ने कम्युनिस्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. उन्हे अपेक्षित कामयाबी नही मिली. उन्होंने  सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. साथ ही अपने एक मंत्री जीतनराम मांझी को सीएम बनाया. भाजपा ने मांझी सरकार पर बहुमत साबित करने का दबाव बनाया. राजद के सहयोग से मांझी ने सदन में अपना बहुमत साबित कर दिया. बिहार में जहां भाजपा चेहराविहीन थी, वहीं भाजपा अपने वोट बैंक के विस्तार की रणनीति पर काम आरम्भ कर चुकी थी. बिहार में भाजपा के पास सिर्फ अगड़ी जातियों के मतदाता ही हुआ करते थे. इस कालखंड में भाजपा ने दलितों और गैर यादव पिछड़ी जातियों में प्रवेश किया. यह बिरादरी जेडीयू का वोट बैंक था. भाजपा की यह पहल भी नितीश को चुभ रही थी.

पहली बार राजद के सहयोग से बने थे सीएम
साल 2015 का वक्त था. विधान सभा के चुनाव हुए. जेडीयू, राजद, कांग्रेस, सपा, सजपा और नेशनल लोकदल ने मिलकर महागठबंधन बनाया. सीटों के बंटवारे से नाखुश सपा उस महागठबंधन से अलग हो गयी थी. महागठबंधन को बिहार की जनता ने सर आंखों पर बैठाकर भारी बहुमत दिया. नितीश कुमार की अगुवाई वाले महागठबंधन को 178 सीटे मिलीं. नितीश ने पांचवी मर्तवा राज्य के सीएम के रुप में शपथ ली. राजद के तेजस्वी यादव नितीश के डिप्टी सीएम बने थे. इस महागठबंधन ने अल्पायु में ही दम तोड़ दिया. नितीश के डिप्टी तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. नितीश चाहते थे कि तेजस्वी इस्तीफा दे. दूसरी तरफ राजद तेजस्वी के इस्तीफे पर तैयार नहीं थी. 26 जुलाई 2017 को नितीश ने खुद इस्तीफा दे दिया. अगले ही दिन नितीश और भाजपा के बीच दोस्ती का रंग चटक हो चुका था. 27 जुलाई 2017 को नितीश भाजपा के सहयोग से छठवी बार सीएम बने.

नितीश का एनडीए से जुड़ाव
साल 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान जनता दल दो खेमो में बंट चुकी थी. एचडी देवगोडा जनता दल सेक्युलर बना चुके थे. शरद यादव के धड़े ने चुनाव में एनडीए को समर्थन दिया था. 30 अक्टूवर 2003 मे लोक जनशक्ति पार्टी और समता पार्टी का जेडीयू में विलय हो गया. चुनाव आयोग ने समता पार्टी के विलय की अर्जी रद्द कर दी थी. साल 2005 के विधान सभा चुनाव के पहले जेडीयू एनडीए मे शामिल हो चुकी थी. जेडीयू पहली मर्तवा भाजपा के साथ मिलकर विधान सभा का चुनाव लड़ी. इस चुनाव में किसी भी दल को 122 के आंकड़े का बहुमत नहीं मिला. राजद को 75, जेडीयू को 53, भाजपा को 37 और कांग्रेस को 10 सीट मिली थी. बहुमत के अभाव में यहां अक्टूवर नवम्बर में दूसरी बार चुनाव कराया गया. इस चुनाव में जेडीयू और भाजपा ने मिलकर सरकार बनायी. जेडीयू को 88, भाजपा को 55, राजद को 54, लोजपा को 10 और कांग्रेस को महज 9 सीटें मिली थीं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को बड़ी कामयाबी मिली. जब 40 संसदीय सीटों में एन डी ए ने 39 सीटें जीतीं. इनमें भाजपा को 17, जेडीयू को 16, एलजेपी के खाते में 6 सीटें आयी थीं.


Published: 11-08-2022

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