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लखनऊ विश्वविद्यालय में बरसे : साहित्य के चटख रंग

कथा रंग फाउंडेशन ने सांस्कृतिकी की मेजबानी में तत्वावधान में शनिवार को लखनऊ विश्विद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग में कालजयी कथाकार प्रेमचंद जी की जयंती की पूर्व संध्या पर उनकी कहानी बूढी काकी और कौशल और हरिशंकर परसाई जी का व्यंग्य प्रेमचंद के फटे जूते का वाचन करके अपनी तीन वर्ष की कथा वाचन यात्रा में एक और नया आयाम जोड़ दिया जिसका मूल उद्देश्य सार्थक साहित्य से युवा पीढ़ी को जोड़ना रहा है.

साहित्य के चटख रंग
साहित्य के चटख रंग

कथा रंग फाउंडेशन ने सांस्कृतिकी की मेजबानी में तत्वावधान में शनिवार को लखनऊ विश्विद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग में कालजयी कथाकार प्रेमचंद जी की जयंती की पूर्व संध्या पर उनकी कहानी बूढी काकी और कौशल और हरिशंकर परसाई जी का व्यंग्य प्रेमचंद के फटे जूते का वाचन करके अपनी तीन वर्ष की कथा वाचन यात्रा में एक और नया आयाम जोड़ दिया जिसका मूल उद्देश्य सार्थक साहित्य से युवा पीढ़ी को जोड़ना रहा. इन दोनों ही संस्थाओं का उद्देश्य युवा पीढी का प्राचीन और अर्वाचीन हिंदी साहित्य से अवगत कराना तो रहा ही है उनमे सही उच्चारण वाली हिंदी और उसकी भगिनी क्षेत्रीय बोलियों के प्रति अनुराग पैदा करना भी है. नाटकीय वाचन के माध्यम से साहित्यकारों के शिल्प को युवा पीढ़ी के सामने इस तरह से सामने पेश करना आज के टेलीविजन, सोशल मीडिया के विषाक्त विस्फोट के दौर में एक ताज़ी हवा के झोंके जैसा है. 

मुख्य अतिथि कला संकाय अधिष्ठाता प्रोफ़ेसर प्रेम सुमन शर्मा की उपस्थिति में लखनऊ विश्वविद्यालय में हुए अपनी तरह के इस पहले आयोजन का रंग सावन की फुहारों के बीच शिक्षकों और छात्रों पर ऐसा चढ़ा कि उन्होंने आगे से प्रत्येक माह ऐसे आयोजन करने का निर्णय ले लिया है. कथा रंग की संस्थापक अध्यक्ष नूतन वशिष्ठ और सत्यानन्द वर्मा, पुनीता अवस्थी, अनुपमा शरद और जीतेन्द्र मिश्र ने इन कहानियों का वाचन किया. कथाओं का वाचन इतना प्रभावी रहा कि एक ओर जहाँ  दर्शक छात्र, छात्राओं की आँखें भर आयीं तो दूसरी ओर उन्हें खूब गुदगुदाया भी.

इस आयोजन के वास्तुकार और सांस्कृतिकी संस्था के मुखिया दर्शन शास्त्र विभाग के शिक्षक डा. राकेश चन्द्र ने कहा यह कहना गलत होगा कि आज की युवा पीढ़ी की रुचि ऐसे कार्यक्रमों से दूर जा रही है क्योंकि आज के आयोजन में उनकी उपस्थिति और सक्रिय सहभागिता तो कुछ और ही कहती है. नाटकीय वाचन के दौरान उनके चेहरों पर आये खुशी और गम के भावों से लगा कि हम जिन्दा हैं और अच्छे प्रयास के ग्राहक भी हैं. कथाकार प्रेमचंद के बारे में उन्होंने कहा कि उनका लेखन कल भी प्रासंगिक था आज भी है. दर्शन शास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर प्रशांत भी इस अवसर पर उपस्थित रहे.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के छात्र अनमोल मिश्र ने झुलस रही है अगन में दुनिया इसे बुझाओ गले लगाओ कविता का पाठ किया और वाहवाही बटोरी.  कुछ आस लिए कुछ प्यास लिए अनजान सी राह पे आये हैं सुमधुर गीत प्रस्तुत करने वाले काव्योम संस्था के समन्वयक कौन्तेय जय ने धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम का कुशल सञ्चालन द्वारिका नाथ पाण्डेय ने किया और फेसबुक लाइव पर इसे कैद किया ओम प्रताप ने.  

 


Published: 31-07-2022

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