उपेक्षा दलितों या खटिक की
यूपी की योगी सरकार में क्या सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है ? जिस प्रकार योगी के राज्य मंत्री दिनेश खटिक ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने का स्वांग रचा और एक अन्य दलित वजीर रामकेश निषाद ने अफसरों की कार्य प्रणाली को लेकर अपनी नारातगी जाहिर की उस से तो यही लगता है. यह बात और है कि योगी आदित्यनाथ ने इस चिंगारी पर काबू पा लिया पर सोचने की बात ये है कि जब सरकार के ओहदेदारों में बेचैनी है तो विधायक किस मनः स्थिति से गुजर रहे होंगे इसका थोडा सा अंदाज़ा तो लगाया ही जा सकता है.
इन दोनों वजीरों ने सरकार पर दलित विरोधी होने का इल्जाम लगाने के साथ ही एक मंत्री दिनेश खटिक ने तो राज्यपाल और पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह तक को अपना इस्तीफा भेज दिया. यह कोई साधारण बात नही हो सकती है. इस्तीफे के पीछे श्री खटिक का स्वार्थ छिपा था या उन्हे दलितों की वास्तविक चिंता उन्हे चिन्तित कर रही थी ? उनका इस्तीफा अपेक्षाओं पर अधिक केन्दित माना जा सकता है. हालांकि दिनेश खटिक सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात करने के बाद मंत्रिमंडल में बने रहने को रजामंद हो गये हैं. सीएम योगी ने दोनों दलित वजीरो को भरोसा दिलाया है कि भविष्य में उन्हे गिला का कोई मौका नही मिलेगा.
खटिक और योगी की भेंट के बाद एक बात साफ हो चुकी है कि अब काबीना वजीरों के साथ जुड़े राज्य मंत्रियों के बीच कामकाज का बंटवारा जल्दी हो जायेगा. सीएम योगी ने दंत-नख हीन राज्य मंत्रियों के दांत और नाखून उगाने का इंतजाम करने का भरोसा दिलाया है. दूसरी तरफ योगी के एक अन्य वजीर संजय निषाद ने सपा-बसपा और कांग्रेसी मानसिकता से तृप्त होने का अफसरों पर आरोप लगाकर सरकार की खामियों पर पर्दा डालने की भरपूर कोशिश की है. यहां एक सवाल सर उठाता है कि क्या सरकार अपने पहले पांच साल के कार्यकाल में ऐसे अफसरों की पहचान करने में नाकाम रही है. यदि ऐसा है तो सरकार की यह सबसे बड़ी नाकामी मानी जा सकती है.
जो सरकार की दूरदर्शिता जैसी शक्ति को कमजोर साबित करती है. ऐसे अफसर जो किसी विरोधी राजनीतिक दल से प्रभावित होकर सरकार के महत्वपूर्ण एवं जिम्मेदार पदों पर आसीन हैं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है. सरकार के स्टेट वजीर अपने विभागों के कामकाज को लेकर काफी आहत थे. आरोपों के मुताबिक अफसरों द्वारा ऐसे वजीरों की उपेक्षा काफी चिंताजनक ही नही अपितु लज्जाजनक है. भारतीय संसदीय परंपरा में वजीरों की उपेक्षा शिकायतें कोई नई परंपरा नही है. इसके पहले भी कई मर्तबा विभिन्न सरकारों में ऐसे अफसरो द्वारा मंत्रियों के आदेशों और उनकी उपेक्षा की शिकायतें आती रहीं हैं. एक सवाल फिर उठता है इसके लिए कौन जिम्मेदार है. यह भी एक चिन्तन का विषय है. इसे हलके में लेकर टाला नहीं जा सकता है.
योगी के वजीरों की नाराजगी की एक वजह यह भी मानी जाती है कि उन्हे काम करने की आजादी नहीं है जिसकी वजह से वे मंत्री पद पर आरूढ़ जरुर हैं लेकिन अपने मन मुताबिक फैसले लेने के मामले में उन पर अघोषित रुप से पाबंदी है. जो ऐसे वजीरों को चुभती आ रही है. योगी के बागी वजीर दिनेश खटिक ने दलितो की उपेक्षा करने नौकरशाही द्वारा उन्हे तवज्जोह नहीं देने, विभागीय मामलों में तरजीह न मिलने जैसे तमाम आरोप लिखित तौर पर अपने इस्तीफे में लगाये थे. बड़े नाटकीय घटनाचक्र के बाद बागी मंत्री दिनेश खटिक और विभाग के काबीना मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह की मौजूदगी में सीएम योगी आदित्यनाथ से करीब एक घंटे तक बातचीत के बाद श्री खटिक अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए रजामंद हो गए. एक नजरिए से देखा जाये तो ऐसा लगता है कि श्री खटिक दलितों को लेकर कम अपने प्रभाव को लेकर अधिक चिन्तित और फिक्रमंद थे जिसकी वजह से सरकार पर दबाब बनाने की गरज से उन्होने एक नियोजित योजना गढ़ी होगी जिसमें वे कामयाब माने जा सकते हैं. यदि उन्हे दलितों की वास्तव में चिंता थी तो उन्हे मंत्री पद से इस्तीफे के बाद दोबारा इस्तीफा वापस लेना समझ से परे प्रतीत होता है. बगैर मंत्री पद के वे पार्टी संगठन में रहकर समर्पित तौर पर अपनी सेवाऐ दे सकते थे।