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नौजवान को नयी दिशा : अग्निपथ फिर क्यों है लथपथ

इस से देश की नौजवानी में सेहत, अनुशासन और देशप्रेम की नयी रवानी आ सकती है पर बेचैन नौजवान की फिकर है कि पचीस तीस साल की रसीली सैलरी और फिर आजीवन पेंशन के सहारे टिकी सामाजिक सुरक्षा का क्या होगा. देश के विपक्षी राजनीतिक दल मुंह फुलाये बैठे हैं कि स्कीम लाने से पहले उनसे बात क्यों नहीं की और मोदी सरकार मुसलमान, किसान के बाद अब नौजवान के सुलगते सवालों के कटघरे में है.

 अग्निपथ फिर क्यों है लथपथ
अग्निपथ फिर क्यों है लथपथ

देश में नौजवानों के लिये पेश की गयी अग्निपथ योजना का पथ आक्रोश, आगजनी और हिंसा से लथपथ है. प्रथमदृष्टया जबकि योजना में कुछ व्यावहारिक खामियां हो सकती हैं और वो दूर भी की जा सकती हैं, दूर की भी जा रही हैं पर योजना के उद्देश्य में कोई खोट तो  नजर नहीं आ रहा. इस से देश की नौजवानी में सेहत, अनुशासन और देशप्रेम की नयी रवानी आ सकती है पर बेचैन नौजवान की फिकर है कि पचीस तीस साल की रसीली सैलरी और फिर आजीवन पेंशन के सहारे टिकी सामाजिक सुरक्षा का क्या होगा. देश के विपक्षी राजनीतिक दल मुंह फुलाये बैठे हैं कि स्कीम लाने से पहले उनसे बात क्यों नहीं की और मोदी सरकार मुसलमान, किसान के बाद अब नौजवान के सुलगते सवालों के कटघरे में है.

अस्सी के दशक में देश के सरकारी इंटर कालेजों में एनसीसी और पीएसडी हुआ करती थी. सामान्य पढ़ाई के साथ छात्रों को कदमताल, कसरत और शरीरिक दक्षता बढ़ाने वाले खेलों के माध्यम से नेशनल कैडेट कोर और प्रांतीय सेवा दल में प्रशिक्षण दिया जाता था. इससे युवा न केवल सेहतमंद रहता था बल्कि सेना की भरती में उन्हें प्राथमिकता भी दी जाती थी. उस से एक लेवल उपर की है अग्निपथ योजना वो इसलिये कि एनसीसी या पीएसडी में केवल एक अदद सर्टिफिकेट मिलता था पर यहां रेगुलर पढ़ाई के साथ पेड ट्रेनिंग की पेशकश है. बेशक आज के दौर में बीस पचीस लाख रुपये की रकम पूरे जीवन के लिये मूंगफली के दानों के बराबर है पर साढ़े 17 से 23 साल तक की उम्र के युवक के लिये भविष्य संवारने के लिये कम भी नहीं. अभी तो उसे कॅरियर बनाने के लिये होने वाली तमाम प्रवेश परीक्षाओं, प्राइवेट कोचिंग या रेल बस भाड़े के लिये मां बाप पर ही निर्भर रहना पड़ता है.

ऐसा भी नहीं है कि यह दुनिया की अनोखी योजना है. दुनिया के 30 देशों में निर्धारित आयु के युवक या युवती को अनिवार्य फौजी प्रशिक्षण से गुजरना होता है. कई देशों में प्रशिक्षण न लेने वालों के लिये सजा का प्रावधान है. इजरायल, यूक्रेन, स्वीडन, सीरिया, सिंगापुर, मोरक्को चीन, बरमूडा, रूस, ब्राजील, साइप्रस, ग्रीस, ईरान, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, मेक्सिको, सिंगापुर, स्विटजरलैंड, थाईलैंड, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और नार्वे में कुछ महीनों से लेकर कुछ साल तक सेना में काम करना ही पड़ता है. उसके बाद वो अपनी पसंद के क्षेत्र में जीवनयापन के लिये स्वतंत्र होते हैं. ऐसी अग्निपथ योजना को सबसे पहले इंग्लैंड ने द्वितीय विश्व युद्ध में प्रयोग किया था जिसमें वायु सेना में युवकों को दो साल में 200 घंटे विमान उड़ान अनिवार्य था. उस समय यह योजना काफी कामयाब भी रही थी.

जे लोग पूछ रहे हैं कि चार साल बाद अग्निवीर क्या करेंगे. तो जान लीजिये कि चार साल के अनुशासित और कुशल जीवन के बाद 24 साल का युवा अन्य की तुलना में नौकरी पाने के लिये एक बेहतर विकल्प होगा. चार में से एक व्यक्ति को पक्की नौकरी का चांस क्या कम है. कितने 21 से 24 साल के युवाओं के पास 12 लाख की जमा पूंजी और 7-8 लाख की बचत होती है. कई राज्य सरकारों और बड़ी कंपनियों ने स्किल्ड और डिसिप्लिन्ड अग्निवीरों को अपने यहां नौकरी का भरोसा दिलाया है. चार साल में अग्निवीरों के लिये शुरू होगी ग्रेजुएशन डिग्री कोर्स जिसे देश और विदेश में मान्यता मिलेगी और दिल पर हाथ रख कर कहिये आप में से कितने युवा 24 साल की उम्र में सेटल हो जाते हैं.

दरअसल देश में सालों से सेना भरती के लिये भी कोचिंग सेंटरों का जो जबर्दस्त नेटवर्क फैला हुआ है जहां से सेना, अर्द्धसैनिक बलों, पुलिस, प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसियों में भरती का द्वार खोला जाता है। दर्द ये है कि एक एक लाख लेकर युवाओं को योद्धा बनाने की ट्रेनिंग देने वाले कोचिंग सेंटरों को इस योजना से हो सकने वाली आर्थिक चोट ने उन्हें जरूर बेकल किया होगा. देश भर के आधा दर्जन राज्यों में हुई ताजा आगजनी और हिंसा में यह एक बड़ा कारण नजर आ रहा है जिन्होंने न केवल भ्रम फैलाया बल्कि हिंसा के लिये उकसाया.

कोरोना काल में दो साल से तैयारी कर रहे युवाओं की आयुसीमा का सवाल जायज था और उस पर मोदी सरकार ने संशोधन किया भी. ये सवाल उठाया जा सकता है और उठाया जाना चाहिये था कि जो युवक दो साल भरती से वंचित होकर आयुबाधित हो गये. पर क्या इसके लिये व्यापक हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़ करना जरूरी था. ऐसा करने वाले सेना में भरती के आकांक्षी क्या अब पहचान लिये जाने के बाद सेना में भरती के लायक रह गये. क्या उन्होंने अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी नहीं मार ली. सरकारी और निजी वाहनों, रेलों और अन्य संपत्तियों को बड़े पैमाने नुकसानए पथराव, मारपीट के साथ पुलिस पर हमले अराजकता के सिवाय और कुछ नहीं. बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा हिमाचलप्रदेश के अलावा तेलंगाना तक जैसी हिंसा का मुजाहिरा युवा आबादी के हिसाब से मुट्ठी भर युवाओं ने किया है उस हिंसा की जितनी भी निंदा की जाये कम है.

सत्ता से बाहर विपक्षी राजनीतिक दलों को चरने के लिए हरी हरी मिल गयी. उन का कलेजा तो बल्लियों उछल रहा है कि भाजपा ने करीब 45 करोड़ नौजवानों की बेरोजगारी का मुद्दा चांदी की थाली में सजा कर उसके सामने पेश कर दिया है. विपक्ष मगन है इतना कि उसका आकलन है कि पहले सीएए के सवाल पर चुप्पी साध कर मोदी सरकार ने मुसलमानों के उन के करीब ला दिया. फिर किसान आंदोलन पर मोदी सरकार के रोल बैक ने विपक्ष की बांछें खिला दीं थीं. अब अहा क्या कहने अग्निपथ योजना देश के बेरोजगार नौजवानों का वोट विपक्ष की झोली में डलवा देगी. सो कुछ क्षेत्रीय दल चुप्पी ओढ़ कर खामोश हो गये हैं तो कांग्रेस के जन्मजात मुखिया राहुल गांधी कह रहे हैं कि मोदी सरकार को किसान कानूनों की तरह अग्निपथ योजना पर भी रोल बैक करना ही होगा. दरअसल राजनीतिक विपक्षी दलों को तो बस चौबीस हाथ आया ही दिख रहा है.

पर देश के युवाओं और आम जनता के साथ विपक्षी दलों को यह सोचना चाहिये कि टेक्नोलाजी की बयार में टिकने के लिये सेना का आधुनिकीकरण जरूरी हो गया है क्योंकि युद्ध के डायनामिक्स बदल चुकी है. लड़ाई के सीधे मोर्चे पर अब फौजी कम दूर नियंत्रित तकनीक का जलवा कायम हो चुका है. अब सैनिकों का तकनीकी और हर तरीके से दक्ष होना जरूरी है. मिसाइल, ड्रोन अब नये ज़माने के  हथियार हैं और उनके करिश्मे जगजाहिर हैं. इसके लिये नये उपकरण चाहिये और उन्हें चलाने वाला नया खून चाहिये. भारत विकास की ओर अग्रसर देश तो है पर अमीर देशों में शुमार नहीं है। सेना को आधुनिक उपकरणों से लैस करने के लिये धन चाहिये वो रक्षा बजट में गैर या कम जरूरी खर्चों में कटौती करके ही जुटाया जा सकता है.

यह भी समझना जरूरी है कि सैनिक बनना आम सरकारी नौकरी नहीं है. जो युवा सैनिक बनने की आकांक्षा रखते है वो देश के लिये जान पर खेल जाने का जज्बा रखते हैं. जो युवा अग्निपथ योजना के विरोध में सड़क पर उतर कर आगजनी और हिंसा पर उतारू हो गये थे ऐसा लगता है कि वो सेना में भरती को आम नौकरी ही समझ रहे थे. ऐसे युवको से अनुशासित रहने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है. अनुशासन और संयम सैनिक का गहना है. युवाओं को ये कड़वा सच समझना होगा आज के हाईटेक जमाने में सरकार सबको नौकरी नहीं दे सकती। खासकर सेना में तो ऐसे उत्पाती तत्वों को कतई नहीं दे सकती, प्राथमिकता तो उन्हीं को देगी जो शौर्य और पराक्रम के साथ अनुशासन का महत्व समझते हों.

युद्ध न ही हो अच्छा है पर दुनिया उसे सलाम करती है जो ताकतवर हो. भारत के संदर्भ में चीन और पाकिस्तान अपनी विस्तारवाद और आतंकवाद की नीतियों के लिये सरदर्द है ही. चीन बहुत तेजी से अपनी सेना को नये जमाने के युद्ध के लिये तैयार कर रहा है और पाकिस्तान आतंक की नर्सरी उपलब्ध करा रहा है. ऐसे में भारत को भी सेना के आधुनिकीकरण के रास्ते का अनुसरण करना ही होगा. इस में अग्निपथ योजना मदद ही करेगी. इस से देश में अनुशासित और देश सेवा के लिये कटिबद्ध युवाओं का बैंक होगा. ये उन चारित्रिक गुणों से लैस होंगे जो राष्ट्र निर्माण के लिये चाहिये.

(लेखक राजनितिक विश्लेषक और वरिष्ठ स्तंभकार हैं)


Published: 20-06-2022

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