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कद्दावर कांग्रेसियों के दम पर : भाजपा ने खिलाया कमल

आज देश  में दो राष्ट्रीय दल हैं. एक कांग्रेस और दूसरी भारतीय जनता पार्टी. भाजपा पूरे देश को कांग्रेसी हुकूमत से मुक्त कराने का संकल्प ले चुकी है. दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी खोई हुई सियासी विरासत को हासिल करने को लगातार कोशिश कर रही है. एक दौर होता था, जब कांग्रेसी नेतृत्व जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रख देता था वह नेता बन जाता था. जो कांग्रेस में शामिल हो जाता वह पाक-साफ हो जाता था. आज वाही हैसियत भाजपा की है

भाजपा ने खिलाया कमल
भाजपा ने खिलाया कमल

आज देश  में दो राष्ट्रीय दल हैं. एक कांग्रेस और दूसरी भारतीय जनता पार्टी. भाजपा पूरे देश को कांग्रेसी हुकूमत से मुक्त कराने का संकल्प ले चुकी है. दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी खोई हुई सियासी विरासत को हासिल करने को लगातार कोशिश कर रही है. एक दौर होता था, जब कांग्रेसी नेतृत्व जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रख देता था वह नेता बन जाता था. जो कांग्रेस में शामिल हो जाता वह पाक-साफ हो जाता था.

सभी नेता गांधी-नेहरू के करीबी बनने को उतावले रहते थे. देश की सियासत भी नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी के इ्रर्द-गिर्द घुमा करती थी. आज स्थिति ठीक उलट हो चुकी है. साल 1985 तक जिस मजबूती के साथ कांग्रेस ने मुल्क पर हुकूमत किया आज उसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी है. भाजपा में मोदी-योगी और अमित शाह का खास बनने को हर भाजपा नेता बेताब है. साथ ही भाजपा के ऊपर एक सुप्रीम पावर है. वह है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ. संघ का आशीर्वाद भी एक जरूरी कड़ी बन चुकी है. अतीत और वर्तमान की सियासी तस्वीर एक समान देखने को मिलती है. कभी कांग्रेस तो आज भाजपा जिसके सर पर हाथ रख देती है वह नेता बन जाता है. आज भाजपा मुकद्दर का सिंकदर बन चुकी है. कोई भी दागी नेता यदि भाजपा का हो जाये तो वह भी पाक साफ बन जाता है. जैसे गंगा नदी में स्नान करने से सारे पाप, दोष नष्ट हो जाते है ठीक उसी तरह भाजपा एक पवित्र गंगा नदी सरीखी हो गयी है.

हम यहां गहराई के साथ कह सकते है कि कांग्रेसियों के दम पर पूर्वोत्तर में भाजपा अपना कमल खिलाने मे कामयाब हुई. नजीर के तौर पर पूर्वोत्तर के पांच राज्यों का अध्ययन करें तो यह सही साबित होता है कि कांग्रेस से जुदा होकर भगवा खेमे में शामिल होने के बाद उन कांग्रेसियो की किस्मत चमकी, जिनकी चमक कांग्रेस में रहकर फीकी हो रही थी. पूर्वोत्तर के राज्यों में एक राज्य त्रिपुरा है. बिप्लव कुमार देव यहां कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं में शुमार थे. विधान सभा चुनाव के पहले बिप्लव देव और कांग्रेस के बीच मतभेद अंकुरित हुआ. वे कांग्रेस छोड़कर भगवाधारी बन गये. इसी प्रकार माणिक साहा ने भी कांग्रेसी संस्कृति में सियासी ककहरा सीखा. इनको भी कांग्रेसी बैनर तले मजबूत पहचान मिली. बिप्लव देव के बाद साहा को त्रिपुरा का सीएम बनने का गौरव हासिल हुआ.

इन दोनेां नेताओं को कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा की ओर से सीएम पद का तोहफा मिला. माणिक साहा पांचवे ऐसे सीएम है जो मूलतः कांग्रेसी हैं. साहा ने 2016 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था. चार साल में ही उनकी किस्मत के द्वार खुल गये. पहले पार्टी संगठन की कमान फिर सरकार की बागडोर उनके हाथ आ गयी. उत्तर- पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा की सियासी जड़े मजबूत करने में हिमंता बिस्वा सरमा का बड़ा योगदान माना जाता है. आज वे असम राज्य के मुख्यमंत्री है. भाजपाई बनने के पहले वे कांग्रेसी थे. असम में सर्वानंद सोनोवाल को पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाने में श्री सरमा की बड़ी भूमिका थी. सर्वानंद सोनोवाल के केन्द्र में मंत्री बनने के बाद हिमंता बिस्वा को भाजपा ने सीएम पद की जिम्मेदारी सौंपी. वे साल 2015 में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए थे. उन्होने असम में 2016 विधान सभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में असम सहित पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा को बड़ी कामयाबी दिलायी जिसका फल उन्हे 10 मई 2021 में मिला. इसके पहले भाजपा ने इन्हे नार्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिव अलाायंस का संयोजक बनाया था. 

इसी प्रकार मणिपुर की सियासत में करीब एक दशक तक कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे एन वीरेन सिंह ने भी 2016 में कांग्रेस छोड़ दी. 2017 में गैर कांग्रेसी सरकार में भाजपा की मदद से वे सीएम बने. 2022 का विधान सभा चुनाव भाजपा ने एन बीरेन सिंह की अगुवाई में लड़ा और राज्य की 60 में से 32 सीटे जीतकर सरकार बनायी. अरुणाचल प्रदेश सीएम पेमा खांडू ने कांग्रेस को छोड़ा. भाजपा ने उन्हे पार्टी संगठन की जिम्मेदारी सौपी. इसके पहले खांडू की अगुवाई में 2016 में कांग्रेस की यहां सरकार बनी थी. 2016 में वे सीएम नही रहे उनकी अगुवाई में उनके 33 समर्थक विधायक हाथ का साथ छोड़ भगवा रंग में रंग गये. 2019 के विधान सभा चुनाव में भाजपा यहाँ की 60 में से 41 सीट जीती. नागालैंड में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नेफियू रियो जो कि राज्य के पहले ऐसे सीएम थे जो लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं. यहां के पूर्व सीएम एससी जमीर से मतभेद के चले उन्होने कांग्रेस छोड़ी थी. उनकी नागा पीपुल्स फ्रंट का भाजपा से गठबंधन हुआ और डेमोक्रेटिव अलायंस आफ नागालैंड बना. 2003 में इनकी सरकार बनी. इस चुनाव में 19 साल बाद जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया. 2008 के चुनाव में गठबंधन जीता और वही सीएम बने. 2018 में उनकी पार्टी टूट गयी. रियो नेशनल डेमोक्रेटिव प्रोग्रेसिव पार्टी में शामिल हुए. इस पार्टी का 2018 में फिर भाजपा से गठबंधन हुआ. चुनाव के बाद रियो फिर भाजपा के सहयोग से सीएम बने.


Published: 20-06-2022

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