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बायोमास से बिजली : पायलट प्रोजेक्ट पर काम होगा

चीड़ के वृक्षों, कृषि-उद्योग तथा वन्य क्षेत्रों के क्रियाकलापों के अंतर्गत बड़ी मात्रा में बायोमास सामग्री उत्पन्न होती है. लगभग 500 मिलियन टन कृषि तथा कृषि-उद्योग अवशिष्ट हर साल पैदा किया जाता है जो कि ताप ऊर्जा के रूप में यह मात्रा तकरीबन 175 मिलियन टन तेल के बराबर है. इन सामग्रियों के बायोमास से पैदा होने वाली बिजली की संभावित मात्रा 100000 मेगावाट तक पहुँच सकती है.

 पायलट प्रोजेक्ट पर काम होगा
पायलट प्रोजेक्ट पर काम होगा

भारतीय वैज्ञानिक और नीति आयोग के वरिष्ठ सदस्य विजय कुमार सारस्वत ने कहा कि चीड़ के वृक्षों, कृषि-उद्योग तथा वन्य क्षेत्रों के क्रियाकलापों के अंतर्गत बड़ी मात्रा में बायोमास सामग्री उत्पन्न होती है. लगभग 500 मिलियन टन कृषि तथा कृषि-उद्योग अवशिष्ट हर साल पैदा किया जाता है जो कि ताप ऊर्जा के रूप में यह मात्रा तकरीबन 175 मिलियन टन तेल के बराबर है. इन सामग्रियों के बायोमास से पैदा होने वाली बिजली की संभावित मात्रा 100000 मेगावाट तक पहुँच सकती है इसलिये इसके पायलट प्रोजेक्ट पर शीघ्र ही योजना बनायी जायेगी.

ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन में भारतीय वैज्ञानिक विजय कुमार सारस्वत सपरिवार परमार्थ निकेतन पहुंचे. उन्होंने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर आशीर्वाद लिया तथा माँ गंगा जी की आरती में सहभाग किया. इस अवसर पर भारतीय वैज्ञानिक कर्नल कासी, भारतीय वैज्ञानिक श्री भारद्वाज और अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिक भी उपस्थित थे. माँ गंगा के पावन तट पर स्वामी जी ने पुष्प हार और रूद्राक्ष को पौधे से श्री सारस्वत जी और अन्य सभी वरिष्ठ वैज्ञानिकों का अभिनन्दन किया तथा सभी ने मिलकर विश्व ग्लोब का जलाभिषेक कर जल संरक्षण का संकल्प कराया.

श्री सारस्वत ने पूर्व में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के महानिदेशक और भारतीय रक्षा मंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य किया था और वर्तमान में नीति आयोग के वरिष्ठ सदस्य हैं. उन्होंने स्वामी जी से चर्चा के दौरान परमार्थ निकेतन में लगाये गये बायोडाइजेस्टर टाॅयलेट के प्रथम सिविल माॅडल के विषय में जिक्र करते हुये कहा कि जब सियाचिन में कार्यरत हमारे सैनिकों के लिये बायोडाइजेस्टर बनाया जा रहा था उसका प्रथम सिविल माडॅल परमार्थ निकेतन में लगाया गया था.

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य पहाड़ी राज्य है और इसकी समस्यायें भी पहाड़ की तरह हैं. अतः यहां पर रहने वालों की पीड़ा हम सभी के लिये प्रेरणा बनें. यहां के उत्पादों से स्थानीय लोगों को रोजगार प्राप्त हो. स्वामी जी ने कहा कि चीड़ के वृक्षों में से ऊर्जा का निर्माण कर उत्तराखंड की पलायन की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है तथा इससे वनाग्नि की समस्याओं का भी समाधान प्राप्त होगा. उत्तराखंड में गर्मी के लगभग छह महीनों में फारेस्ट फायर की 1,000 से अधिक घटनाएं होती है जिससे भारी नुकसान होता है, इसका भी समाधान मिलेगा. साथ ही चीड़ के पत्ते और परोल को एकत्र करने से स्थानीय लोगों को स्थायी रोजगार प्राप्त होगा.

 


Published: 29-05-2022

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