आइये हुजूर
मजूर दिवस पर
मिल के मजूर को
खेत के मजूर को
सड़क के मजूर को
कलम के मजूर को
किताब के मजूर को
याद तो कर ही लें
जो न घर के न घाट के
स्वप्न ठाट बाट के
बस भीड़ हैं भाड़ हैं
अब तो केवल हाड हैं
भीड़ जिसके सिर पर
किसी भी रंग की टोपी
इन्कलाब बोल दे
भाड़ जिसे लोकतंत्र की आग में
झोंककर
राजनीति की रोटियां सेंक ले
हाड का कोई
अमोघ अस्त्र सोच लें
आखें कुछ नमकर
आइये हुजूर
ऐसी में बैठकर
आग में झुलस रहे
मजूर का
नमन तो कर ही लें