हिन्दुओं की घर वापसी की राह खुली
कश्मीर फाइल्स एक ऐसी फिल्म साबित हुई है जिसने न केवल ठहरी डल झील में एक कंकड़ फेंक कर इतनी लहरें पैदा कर दीं हैं कि सियासी सूरमा नफा नुकसान गुनते गिनते हलाकान हुए जा रहे हैं. बल्कि उन देश भर में दरबदर कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की राह भी खोल दी है. घर वापसी की हलचल है तो जान के खतरे भी सर उठाने लगे हैं.
आखिर कश्मीर फाइल्स एक फिल्म ही तो थी जिसमें भ्रष्ट नेता, निकम्मे प्रशासन, लाचार व्यवस्थाएं, लगामधारी चौथे खंभे और बेबस अवाम की गलबहिंयां को उजागर किया गया था. हां यह पटकथा काल्पनिक नहीं वास्तविक थी जिससे देश के सभी लोग वाकिफ थे ही नहीं. जब देखा तो अवाम की समझ में भी आया और कि आखिर क्यों कश्मीरी पंडितों को अपनी बात देश के बहुसंख्यक होते हुए भी प्रभावी ढंग से रख पाने में तीन दशक से भी ज्यादा समय तम्बुुओं में बिताना पड़ गया. फिल्म ने डंके की चोट पर कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को लोकल से ग्लोबल तो कर ही दिया उनकी घर वापसी के संकल्प को सिद्धि के पास ले आयी. अब फिल्म को लेकर सियासी गुबार उठता है तो उठा करे. अगर ये फाइल सियासी एजेंडा बन भी गयी तो क्या हुआ कड़वा सच तो है. फिल्म साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ती नहीं तीस साल पहले जो गलती हुई थी उसे सुधार कर सौहार्द्र बनाने का मैसेज देती है.
उस पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल में जम्मू में बाकायदा ये साफ कर दिया कि विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं की वापसी के संकल्प की पूर्ति का समय निकट है. उन्होंने यह भी कहा कि अबके ऐसेे बसना है कि आपस में घुल मिल कर रहना है और अगर कोई बुरी नीयत से आये तो उसे अत्यंत कटुफल चखना पड़े यह सुनिश्चित भी करना है. नव संवत्सर पर कश्मीर के पावन पर्व नवरेह महोत्सव 2022 के अतंर्गत संघ प्रमुख देश विदेश में बसे कश्मीरियों को ऑनलाइन संबोधित कर रहे थे. उन्होेंने कहा कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में कश्मीरी हिंदुओं की वापसी का मार्ग प्रशस्त हो गया है. मोहन भागवत ने कहा है कि अब हमें कुछ शौर्य पराक्रम करना पड़ेगा. जीवन में सभी प्रकार की परिस्थितियां आती हैं. हम अपने धैर्य और साहस के माध्यम से ही उन परिस्थितियों को पार कर सकते हैं. हम आज भी अपने घर में विस्थापित होने का दंश झेल रहे हैं. आखिरकार इसका उपाय क्या है? पहला उपाय यह है कि हमें इस स्थिति को पार कर विजय पाने का संकल्प लेना है. हमें कश्मीर में बसना है भले ही दुनिया में भर में हम फैले हैं.
सर संघचालक ने इजरायल के उदाहरण को सामने रखते हुए कहा कि वे लोग भी बिखर गये थे. उन्होंने भी 1800 वर्ष तक अपने संकल्प को जागृत रखा. तमाम बाधाओं को पार करके आज इजरायल दुनिया में एक अग्रणी राष्ट्र हैं. इसी तरह कश्मीरी हिंदुओं को भी अगले साल कश्मीर में नवरेह मनाने के संकल्प को पूरा करने की दिशा में जुट जाना चाहिये. संकल्प को पूरा करने तक सतत प्रयत्न करना पड़ता है. आपस में खूब घुल मिल कर रहना है मगर पूरे अधिकार के साथ रहना है.
आरएसएस चीफ अगर आज ये बात कह रहे हैं तो बेशक कश्मीर फाइल्स ने एक उत्प्रेरक का काम किया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कह चुके हैं कि सच सामने आना चाहिये. कश्मीर फाइल्स ने कड़वे सच को सामने रखा है. यह भी सच है कि कश्मीर पर पहले भी बनी और फिल्मों के मुकाबले कश्मीर फाइल्स ने सफलता के नये मानदंड स्थापित कर दिये हैं. जो लोग भी कश्मीर फाइल्स को वैमनस्य फैलाने वाली फिल्म बता रहे हैं उन्हें एक तो यह जानना चाहिये कि यह फिल्म संयुक्त अरब अमीरात में भी रिलीज हो रही है. इससे पहले भी दुनिया भर में नरसंहारों या फिर समुदाय विशेष के उत्पीड़न पर दर्जनों फिल्में बनीं हैं. यह देखना दयनीय है और उतना ही लज्जाजनक भी जब कश्मीरी हिंदुओं के दर्द को समझने के लिए ऐसा माहौल बनाया जाये जिससे उनकी घर वापसी संभव हो सके. इसके बजाय सस्ती राजनीति की जा रही है और दोषारोपण किया जा रहा है. यह समझा जाना चाहिये कि घाटी से लाखों हिंदुओं का पलायन एक ऐसी त्रासदी है जिसे भूला नहीं जा सकता. ऐसे समय में उन दोषियों को दंडित करने से ही काम नहीं चलेगा बल्कि कश्मीरी हिंदुओं की घर वापसी के ठोस प्रयास करने होंगे. इस पहल के शुरू होते ही कश्मीर के कई जिलों में हिन्दू अपने घरों को लौट रहे हैं, मरम्मत रंग रोगन के बाद वहां बसने के सपने देख रहे हैं. तो उन तत्वों के पेट में मरोड़ शुरू गयी है जो कश्मीर में अमन चैन के दुश्मन हैं या इनकी वजह से हिन्दुओं को अपना घर छोड़ना था. उन तत्वों ने घाटी के हिन्दुओं को बोली और गोली से डराना शुरू कर दिया है. पर इस बार हवा कुछ बदली सी है.
जहां तक कश्मीर फाइल्स फिल्म का सवाल है कोई इसकी विषय वस्तु से सहमत हो या न हो, उसे पटकथा या निर्देशन में कोई खोट नजर आ रहा हो. वोट की खातिर सियासी दल अपनी पिच पर खेल रहे हों. पर इसमें कोई शक नहीं कि अनुपम खेर, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, मिथुन चक्रवर्ती, अतुल श्रीवास्तव, पुनीत इस्सर, चिन्मय मांडलेकर, भाषा शुम्बली, प्रकाश बेलवाडी और अमान इकबाल ने अपने अभिनय से दर्शकों को चौंकाया, हिलाया और रुलाया है. खासकर जवानी में बूढ़े के रोल से सारांश फिल्म से अपने अभिनय के जौहर दिखाते आ रहे अनुपम खेर ने एक बार फिर बूढ़े के रोल को जीवंत कर दिया और जेएनयू में अपनी मेडन स्पीच से दर्शन कुमार ने अभिनय के जिन रंगों के दर्शन कराये उनमें बेबसी, आक्रोश और जागृति के रंग खिल कर उभरे। बेमिसाल अभिनय के गुलदस्ते से सजी इस फिल्म ने लोगों के दिलों को छुआ है और कोई भी फिल्म तभी सफल होती है जब वो दिल को छुए.