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ऋषिकेश में फूलदेई का त्यौहार : बड़ी धूमधाम से मनाया गया

उत्तराखंड की देवभूमि ऋषिकेश में जहां देश के तमाम त्यौहारों को सामूहिक रूप से मनाने की परम्परा रही है वहीं लोक संस्कृति के पर्वों को भी लोगों ने लुप्त नही होने दिया है. खासतौर पर ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले पहाड़ मूल के लोग इन पर्वों को संजोने के लिए शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं. इसकी झलक फूलदेई पर्व के दौरान देखने को मिली.

बड़ी धूमधाम से मनाया गया
बड़ी धूमधाम से मनाया गया

उत्तराखंड की देवभूमि ऋषिकेश में जहां देश के तमाम त्यौहारों को सामूहिक रूप से मनाने की परम्परा रही है वहीं लोक संस्कृति के पर्वों को भी लोगों ने लुप्त नही होने दिया है. खासतौर पर ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले पहाड़ मूल के लोग इन पर्वों को संजोने के लिए शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं. इसकी झलक फूलदेई पर्व के दौरान देखने को मिली.

सोमवार को उत्तराखंड के सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों के साथ बाल पर्व फूलदेई बेहद उत्साह के साथ मनाया गया. इस अवसर पर हरिचंद स्कूल की अध्यापिकाओं के साथ छात्राओं ने शहर में फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार… जैसे लोक गीत गाते हुए शहर में भ्रमण कर रैली निकाली. रैली के द्वारा शहरवासियों और उत्तराखंड की लोक संस्कृति फूलदेई से रूबरू कराया.

फूलदेई हर वर्ष चैत्र मास की संक्रांति को मनाया जाता है. यह चैत्र मास का प्रथम दिन माना जाता है. हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है. यह त्यौहार नववर्ष के स्वागत के लिए ही मनाया जाता है. इस वक्त उत्तराखंड के पहाडों में अनेक प्रकार के सुंदर फूल खिलते हैं. पूरे पहाड़ रंग बिरंगे फूलो से सज जाते हैं और बसंत के इस मौसम में खुमानी, पलम, आडू, बुरांश और भी बहुत सारे फूल खिलकर अपनी खुशबू से चारों तरफ के वातावरण को खूबसूरत बना देते हैं. जहां पहाड़ बुरांश के सुर्ख लाल चटक फूलों से सजे रहते है वही घर आँगन में लगे खुमानी, आडू के पेडों में सफेद व हल्के बैगनी रंग के फूल खिले रहते हैं. राजा हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज की लक्ष्मी बाई दल द्वारा ऋषिकेश में मनाया फूलदेई पर्वत के दौरान नगर में जुलूस निकालकर जन जागरण अभियान भी चलाया.

चैत्र मास की संक्रांति के दिन या चेत्र माह के प्रथम दिन छोटे-छोटे बच्चे जंगलों या खेतों से फूल तोड़ कर लाते हैं और उन फूलों को एक टोकरी में या थाली में सजा कर सबसे पहले अपने देवी देवताओं को अर्पित करते हैं. उसके बाद वे पूरे गांव में घूम -घूम कर गांव की हर देहली( दरवाजे) पर जाते हैं और उन फूलों से दरवाजे देहली पूजन करते हैं. यानि दरवाज़ों में उन सुंदर रंग बिरंगे फूलों को बिखेर देते हैं. साथ ही साथ एक सुंदर सा लोक गीत भी गाते हैं.

“फूलदेई…. छम्मा देई

देंणी द्वार… भर भकार

फूलदेई…. छम्मा देई ”

उसके बाद घर के मालिक द्वारा इन बच्चों को चावल, गुड़, भेंट या अन्य उपहार दिए जाते हैं जिससे ये छोटे-छोटे बच्चे बहुत प्रसन्न होते हैं. इसी तरह गांव के हर दरवाज़े का पूजन कर उपहार पाते हैं. यह प्रकृति और इंसानों के बीच मधुर संबंध को दर्शाता है. जहाँ प्रकृति बिना कुछ कहे इंसान को अनेक उपहारों से नवाज देती है. और बदले में प्रकृति का धन्यवाद उसी के दिए हुए इन प्राकृतिक रंग बिरंगे फूलों को देहली में सजाकर किया जाता है.

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष एवं आम आदमी पार्टी के विधानसभा प्रत्याशी रहे डॉ राजे सिंह नेगी ने भी हरिपुर कला स्थित अपने आवास पर बच्चों के साथ प्रकृति का आभार प्रकट करने वाला लोक पर्व फूलदेई मनाया. उन्होंने बताया उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा है. कुमाऊं और गढ़वाल के ज्यादातर इलाकों में आठ दिन तक यह त्योहार मनाया जाता है. वहीं, कुछ इलाकों में एक माह तक भी यह पर्व मनाने की परंपरा है.


Published: 17-03-2022

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