हस्तकला संग ‘लखनवी बावर्ची खाने’
हर साल की तरह इस साल भी गत 4 से 8 मार्च तक पांच दिवसीय सनककदा फेस्टिवल का आयोजन राजधानी के कैसरबाग स्थित सफेद बारादरी में किया गया. महिन्द्रा सनककदा फेस्टिवल मायने फूली अवध कल्चर, हेरिटेज वाॅक, कार टूअर, फ़िल्म, किस्सागोई, गीत - संगीत, नाना प्रकार के ज़ायके और बहुत कुछ. फेस्टिवल एक ओर जहां अवध कल्चर से जन-जन को रुबरु कराता है, वहीं देश के अलग-अलग राज्यों से आये कलाकारों और वहां की कला, संस्कृति, हस्तकला, शिल्पकला व पहनावे इत्यादि को देखने, जानने, समझने और तरह तरह की आकर्षक वस्तुओं को खरीदने का सुअवसर भी देता है.
यही वजह है कि विगत 14 सालों से महिन्द्रा सनककदा फेस्टिवल को लेकर लखनऊ और आसपास के लोग बेहद उत्साहित रहते हैं और सभी बेसर्बी से इस फेस्टिवल की प्रतीक्षा करते हैं. इस साल भी आगुन्तकों को फेस्टिवल बहुत भाया, खास कर उसकी थीम ‘‘लखनवी बावर्ची खाने’’. विगत पांच दिनों तक चलने वाले पुश्तैनी घरानों से पके मशहूर अवधी खानों की खुशबू ने संपूर्ण फेस्टिवल को महका दिया. फेस्टिवल में आकर आगुन्तकों ने विविध जायकों का लुफ्त तो उठाया ही, साथ ही लखनऊ के बाज़ार, फुटपाथ, तीज, त्योहारों, शादियों व खुन्चों पर मिलने वाले जायकों का भी आनंद उठाया.
वहीं वेज, नाॅनवेज़ और 43 प्रकार के मीठे व्यंजनों को बय़ां करती ‘‘लखनऊ के बावर्ची खाने’’ नामक पुस्तक का भी विमोचन हुआ. विशेषज्ञों की खास टीम द्वारा सैर सपाटा और कार टूअर कराया गया, इसमें शामिल लोगों ने राजधानी की पुरानी अमृतलाल नागर की हवेली, खूनखून की कोठी, आदिल अहमद का मकान, अज़ीम अली कोठी, लामार्टिनियर व फरदबख्श कोठी, बेग़म अख्तर की मज़ार, ओएल हाउस, व रेजीडेंसी, प्रमुख हस्तियों के मकान, आम के बागिचों से लदे मलिहाबाद के माल क़स्बे की पुरानी कोठी की भी सैर की और इन इमारतों के पीछे उसके इतिहास को भी जाना.
चौक, अमीनाबाद और हजरतगंज जैसे लोकप्रिय बाज़ारों में गये. सुबह-शाम यहां के मशहूर चाट, कबाब, कुल्फी, बिरयानी, स्वादिष्ट मिष्ठान व टुंडे आदि लज़ीज जायकों का स्वाद चखा. फेस्टिवल में हस्तकला और शिल्पकला बाज़ार ने सभी आयु वर्ग के लोगों को आकर्षित किया. सूंफ, लम्बाडी, कांथा, चिकनकारी, आरीजरदोजी, कढाईयां, कोलकाता, असम, छत्तीसगढ़, राजस्थान व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की जामदानी, भुलोडी, चंदेरी, महेश्वरी, टसर, इक्कत, साउथ काॅटन व खादी के ड्रेस मटेरियल, सूट, दुपट्टे, जैकेट व साड़ियों आदि को सभी ने खूब पसंद किया और अन्तिम दिन तक खरीदारी की. लौह निर्मित विविध प्रकार के होम डेकोरेटेट हैगिंग हस्तशिल्प की तारीफ और खरीदारी करने में युवक व युवतियां भी पीछे नहीं रहे. राजस्थान के कोल्हापुरी, पेंट किये हुए शू और हरियाणी मोज़री की भी खूब बिक्री हुई. चांदी के ईयररिंग्स, पेपर ज्वेलरी, चूड़ि़यां, कडे़ व मोतियों के जेवर, हार, गोल्ड प्लेटेड व आक्सीडाईजड ज्वेलरी ने भी युवतियों और महिलाओं को खरीदारी करने के लिए विवश किया.
हरदोई जिले की ग्रामीण महिलाओं द्वारा सफेद बोरियों से तैयार कलच, हैंगिग बैग्स, टेबिल मैट्स, डलिया, बांस निर्मित विविध टोकरियों को भी सभी ने खूब पसंद किया. लखनऊ की रिवायती लहरिया, ड्राईंग, बिहार की मधुबनी, पेपर मैशी, चाॅक चलाने और कढ़ाई वर्क आदि की वर्कशाप में प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया. देवदत्त पटनायक, प्रदीप कपूर, समन हबीब, नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला, अलमास अब्दुल्लाह जैसे लोकप्रिय जानकारों द्वारा लखनवी किस्सों और कहानियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. बैंतबाजी और मोहिनीअट्टम ने भी फेस्टिवल में चार चांद लगा दिये.
2023 में फिर होगी मुलाकात, होगी एक नई थीम, साथ ही रुबरु होंगे कला, संस्कृति, हस्तशिल्प और बहुत कुछ, इसी वायदे के साथ समापन हुआ पांच दिवसीय बहुरंगी सनककदा फेस्टिवल का.
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