राजधानी लखनऊ का समकालीन साहित्य और कला जगत अमृतलाल नागर के जिक्र के बिना अधूरा ही कहा जायेगा. सार्थक और मनोरंजक साहित्य के सृजनहार अमृतलाल नागर की याद उनके जाने के बाद भी इसलिए आती है कि वो जितने अच्छे लेखक थे उतने ही अच्छे और लच्छेदार बैठकबाज़ थे. लखनऊ के चौक मोहल्ले का उनका आवास उनकी मित्र और शिष्य मंडली की बैठकी से गुलज़ार रहा करता था. हिंदी दैनिक स्वतंत्र भारत में अस्सी के दशक में अमृतलाल नागर का एक साक्षात्कार छापा था जिसका शीर्षक था बड़े दरवाजे वाला. नागर जी वाकई ऐसी शख्सियत दिलो दिमाग पर छोड़ गए कि अपने दौर के कला प्रेमियों के लिए उनका दिल और दरवाज़ा हमेशा खुला रहा.
संचित स्मृति न्यास और कथा रंग फाऊंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में श्री अमृत लाल नागर की पुण्यतिथि पर उनसे जुड़ी बातें और रचनाएँ विषय पर एक ऑनलाइन संगोष्ठी आयोजित की गई. इस अवसर पर स्मृति न्यास की मुखिया दीक्षा नागर ने मेहमानों का आभार प्रकट किया और कथा रंग की अध्यक्ष श्रीमती नूतन वशिष्ठ ने नागर जी के संस्मरण साझा किये. डा आरती पांड्या ने अपने पिता, नागर जी के बारे में बताया कि वे एक सरल हृदय व्यक्ति थे. धर्म के बारे में वे कहते थे कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है. कथा रंग की उपाध्यक्ष पुनीता अवस्थी ने अमृतलाल नागर जी की कहानी एक पत्ता जो जासूस नहीं था, सुनाई. यह कहानी 1983 में पराग पत्रिका में प्रकाशित हुई थी. पूजा विमल ने एक कविता के माध्यम से उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित की.
नागर जी के परिवार की सदस्य विधि नागर ने उनके अनेक संस्मरण बताए. नागर जी के बहुचर्चित उपन्यास नाच्यो बहुत गोपाल में सहयोग करने वाले और आज एक स्थापित कवि, व्यंग्यकार राजेन्द्र वर्मा ने उस दौरान बाबूजी के साथ बिताये पलों को साझा किया. उन्होंने बताया कि अमृतलाल नागर जी के पुत्र शरद नागर के परिचय से बाबूजी से भेंट हुई. उनके सानिध्य में उनका स्नेह प्राप्त किया और सीखा. साथ ही यह सीख भी पाई कि जीवन से नोट्स इकठ्ठा करते रहो लेकिन पांच तक कुछ मत लिखना.
संचित न्यास की कोषाध्यक्ष मेहरू जाफर ने भी नागर जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि थिएटर के कारण जब वो बच्ची हीं थीं तब उन जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व से उनका सामना हुआ. लखनऊ में भारतेंदु नाट्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष अमृतलाल नागर के कृतित्व से परिचय तो बाद में हुआ. उनकी सोच सकारात्मक थी. आत्मविश्लेषण में उन्होंने अपने नयन नक्श और काम को ठीक ठाक पाया. नागरजी की भांजी विधि नागर ने बताया कि मामाजी ब्बच्चों के बीच बच्चा बन जाया करते थे.
कार्यक्रम का संचालन कथा रंग की सचिव अनुपमा शरद ने किया और हाजी कुल्फी वाला शीर्षक किस्सागोई से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया. इस अवसर पर कथा रंग परिवार के सभी सदस्य उपस्थित रहे.