Media4Citizen Logo
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल
www.media4citizen.com

अम्बेडकर विश्वविद्यालय रिसर्च गाइड घोटाला : क्लास ३ कर्मचारी करा रहे शोध

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम और यूजीसी के द्वारा जारी की गई शोध निर्देशकों की नियुक्ति के दिशा निर्देश की उपेक्षा करके अंबेडकर विश्वविद्यालय, महू ने क्लास 3 कर्मचारियों तक को शोध निर्देशक बनाकर उनसे पीएचडी करवा दी जिनकी जांच की जाना चाहिए. अम्बेडकर विश्वविद्यालय, महू एक ओर लम्बे समय से रीसर्च गाइड की समस्या से जूझ रहा है तो दूसरी ओर फ़र्ज़ी शोध गाइड का मामला सुर्ख़ियों में आ गया है.  

क्लास ३ कर्मचारी करा रहे शोध
क्लास ३ कर्मचारी करा रहे शोध

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम और यूजीसी के द्वारा जारी की गई शोध निर्देशकों की नियुक्ति के दिशा निर्देश की उपेक्षा करके अंबेडकर विश्वविद्यालय, महू ने क्लास 3 कर्मचारियों तक को शोध निर्देशक बनाकर उनसे पीएचडी करवा दी जिनकी जांच की जाना चाहिए. अम्बेडकर विश्वविद्यालय, महू एक ओर लम्बे समय से रीसर्च गाइड की समस्या से जूझ रहा है तो दूसरी ओर फ़र्ज़ी शोध गाइड का मामला सुर्ख़ियों में आ गया है.  

विह्सिल ब्लोअर धर्मेन्द्र शुक्ला ने इस संबंध में लोक सूचना में जानकारी माँगी है जिसे लोक सूचना अधिकारी कुलसचिव दवाए बैठे हैं. एक अन्य शिकायत लोकेंद्र सिंह थनवार द्वारा राजभवन, राज्य शासन और कुलपति को की गयी है कि क्लास 3 कर्मचारी पी सी बंसल को कैसे रिसर्च गाइड बना दिया गया है और यह भी पूछा गया है जब बंसल के स्वयं एमए में 55 प्रतिशत मार्क्स नहीं है तो उन्होंने कैसे पीएचडी ली है. इसी प्रकार एक अन्य क्लास 3 कर्मचारी दीपक कारभारी भी कई वर्षों से शोध गाइड बने हुए हैं जब कि यूजीसी के नियमानुसार सिर्फ़ शिक्षक ही आवश्यक अनुभव को प्राप्त करने के बाद शोध निदेशक बन सकते हैं, किन्तु यहाँ तो मामला ही उल्टा है और यूजीसी अधिनियम तथा राज्य शासन को धता बताकर ये दोनों क्लास 3 कर्मचारीअब तक लगभग दस वर्षों से शोध गाइड बने हुए हैं.

इनके निर्देशन में जितने भी विद्यार्थियों ने पीएचडी की है उन सबकी पीएचडी निरस्त होने की संभावना बन गई है और इन के विरुद्ध यूजीसी द्वारा कार्रवाई की जाना तय माना जा रहा है. हद तो ये हैं कि शिकायत होने के बावजूद राजभवन और राज्य शासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी और उन्होंने इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की है. जबकि यह राज्य शासन डॉक्टर बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय अधिनियम के भी विपरीत है.

इसी तरीक़े का एक और फर्जीवाड़ा डॉक्टर डी के वर्मा से जुड़ा है. इनके बारे में भी लोकसूचना में जानकारी लोकसूचना अधिकारी कुलसचिव नहीं दे रहे हैं. इस बारे मैं भी शिकायत की गई है कि वर्मा इन्वायरमेंटल साइंस के शिक्षक हैं और उनकी नियुक्ति निदेशालय के अंतर्गत एसोसिएट प्रोफेसर पद पर की गई थी फिर वर्मा कैसे समाजशास्त्र और सामाजिक विज्ञान विषय में शोध निदेशक बने बैठे हैं. ये यूजीसी नियमों के विरुद्ध है. कई दशकों से समाजशास्त्र और समाज विज्ञान विषय में पीएचडी करवा रहे हैं. इनके द्वारा करवाई जा रही पीएचडी भी यूजीसी नियमों और शोध नैतिकता क़े विरुद्ध है. ऐसी ही एक और शिकायत शोध निदेशक आर डी मौर्य के बारे में की गयी है जिन्होंने कभी स्वयं पीएचडी नहीं की लेकिन अनगिनत पीएचडी करवा दीं. आख़िर मौर्य कैसे यूजीसी नियमों के विरुद्ध प्रोफेसर भी बन गए और शोध निर्देशक भी बन गये. मौर्य ने लगभग पच्चीस पीएचडी करवाई हैं जो नियम विरुद्ध है.

शोध गाइड का यह फर्जीवाड़ा बहुतों की मिलीभगत का नतीजा है जिस पर सीबीआई जाँच की जानी चाहिए कि आख़िर ये सब कब से विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं. हद तो ये हैं कि शोध निर्देशकों की उपलब्धता के बिना पूर्व कुलपति कुरील द्वारा प्रवेश दिए गए 255 शोधार्थियों को शोध निदेशक उपलब्ध कराने का प्रकरण अभी पूरी तरह सुलझा नहीं है. लगभग 11 शोधार्थी हाई कोर्ट की शरण में हैं और जिन्हें शोध गाइड उपलब्ध कराने की राज्य शासन ने तैयारी कर ली है क्योंकि उच्च न्यायालय में प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा, कुलपति और कुलसचिव को उपस्थित होने के लिए कहा है. ऐसी स्थिति में शेष सभी शोधार्थियों ने भी अपनी दावेदारी प्रस्तुत की है जिनका स्थानान्तरण अन्य विश्वविद्यालयों में किया जा चुका है किन्तु वो उन विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं हैं और कुछ तो गये ही नही.

सुनने यह भी आ रहा है कि अस्थाई शिक्षकों, विजिटिंग फैकल्टी और परामर्शियों को शोध गाइड बनाया जा रहा है. एक ओर फ़र्ज़ी गाइड, दूसरी ओर नये गाइड देने का मामला, सीबीआई जाँच से मामला साफ़ होगा नही तो चहेतों को बचाने का खेल चलता रहेगा और छात्र गुमराह होते रहेंगे.


Published: 18-02-2022

Media4Citizen Logo     www.media4citizen.com
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल