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षड्यंत्र और बदले की आग में राह : भटक चुका अंबेडकर विश्वविद्यालय

डॉक्टर बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू षड्यंत्रों, जातिवादी राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के कुत्सित हथकंडों, बदले की भावना से किए जा रहे विश्वविद्यालयीन निर्णयों का शिकार बन गया है.

भटक चुका अंबेडकर विश्वविद्यालय
भटक चुका अंबेडकर विश्वविद्यालय

डॉक्टर बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू षड्यंत्रों, जातिवादी राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के कुत्सित हथकंडों, बदले की भावना से किए जा रहे विश्वविद्यालयीन निर्णयों का शिकार बन गया है. पहले कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला को हटाने का षड्यंत्र रचा गया. एक वर्ष से ज्यादा पुरानी और ऐसी ही एक शिकायत जो जिला अदालत से निरस्त की गई, को आधार बनाकर उच्च शिक्षा विभाग के द्वारा जांच कराई गई. यह जांच विश्वविद्यालय के अधिनियम की धारा 41 की उपेक्षा करके की गई, फिर दबाव डालकर रिपोर्ट जल्दीबाजी में तैयार कराई गई. उच्च शिक्षा विभाग की अनुशंसा पर कुलपति आशा शुक्ला को धारा 44 लगाकर 28 जनवरी को देर शाम हटाया गया, जबकि उन्होंने इसी दिन कुलाधिपति को अपना सुबह त्यागपत्र सौंप दिया था. धारा 44 या धारा 52 सामान्यतः विश्वविद्यालय में असाधारण स्थिति पैदा हो जाने के बाद प्रयोग किए जाने वाला अधिकार है. इसका सामान्य स्थिति में कुलपति के त्यागपत्र के बाद भी इसका प्रयोग किया जाना अनेक प्रकार के संदेह को जन्म देता है. साथ ही, विश्वविद्यालय की स्वायत्तता और कुलाधिपति के अधिकारों को चुनौती देने वाला भी है. इस प्रयोग ने विश्वविद्यालय के कुलाधिपति की गरिमा को भी प्रभावित किया है.

धारा 44 के अंतर्गत मध्यप्रदेश शासन ने राजनीतिक दबाव में आकर उसी व्यक्ति डा. दिनेश शर्मा को कुलपति पदस्थ किया जिसको तत्कालीन कुलपति शुक्ला ने और कुलसचिव अजय वर्मा ने प्रमाणित झूठे मेडिकल सर्टिफ़िकेट देने के बारे में कार्यवाही करने को प्रमुख सचिव, उच्च शिक्षा को लिखा था जिसकी जांच अभी तक लंबित है और इस जांच का दायित्व मधयप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग ने इन्हीं के कॉलेज के प्राचार्य और अतिरिक्त संचालक शिक्षा डॉक्टर सुरेश सिलावट को 27 th jan’22 को सौंपी है, और बिना जाँच के होलकर विज्ञान महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शर्मा को यू जीसी नियमो के विरुद्ध कुलपति आनन फ़ानन में बना दिया. मज़े की बात तो ये है कि कुलसचिव अजय वर्मा इस समय लोकायुक्त जाँच के घेरे में हैं, उन पर गम्भीर आर्थिक अनियमितता के आरोप हैं, इस की जाँच डी एस पी यादव लोकायुक्त कर रहे हैं. इस नियुक्ति से विश्वविद्यालय में बदले की भावना से कार्यवाईयों का सिलसिला शुरू हो गया जिसमें परामर्शियों को हटाने के मौखिक निर्देश दिए गए, 9 मानद शोधपीठों को बंद कर दिया गया और अनेक लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी कर ली गई. यहां तक की केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा स्थापित शोधपीठों के आचार्यों को वेतन ना देने और वेतन में कटौती के आदेश दिए गए. आनन-फानन में इन शोधपीठो की एक मूल्यांकन समिति का गठन भी कर दिया गया जिसके अध्यक्ष डा. सुरेश सिलावट ही हैं.

हिंदू विरोधी विवादास्पद छवि रही है
अंबेडकर विश्वविद्यालय पूर्व में केंद्र सरकार का राष्ट्रीय संस्थान था जिसे 2016 में मध्यप्रदेश शासन ने राज्य विश्वविद्यालय के रूप में अधिनियमित किया. विश्वविद्यालय बनने से पूर्व संस्थान में और विश्वविद्यालय बनने के बाद यहां पर जातिगत विद्वेष, हिंदू विरोधी राजनीति चरम पर थी और गंभीर आर्थिक अनियमितताएं जांच में पाई गई थी और संबंधितों को हटाया गया था. विश्वविद्यालय में अराजक वातावरण था जो सरकार के लिए गंभीर चुनौती थी. छात्रों के आंदोलन चल रहे थे और सैकड़ों विद्यार्थियों को पीएचडी के लिए पंजीकृत कर लिया गया था जबकि विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार शोध कराने के लिए पात्र शोध निर्देशकों का पूरी तरह अभाव था. इन शोध छात्रों को दूसरे विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित करके एक रास्ता निकाला गया था. अभी भी इनमें से अनेक विद्यार्थी तीन-चार वर्षों से शोध निर्देशक के लिए प्रतीक्षारत हैं.

कुलपति शुक्ला को हटाने का षड्यंत्र
कुलपति शुक्ला की नियुक्ति मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के कार्यकाल में विधि सम्मत प्रक्रिया से 5 वर्ष के लिए की गई थी. महिला मुद्दों, जेंडर संबंधी विमर्श और साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय पहचान बना चुकी प्रोफेसर शुक्ला बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल में महिला अध्ययन विभाग की विभागाध्यक्ष थी. उनके बारे में यह कहा गया कि पूर्व राज्यपाल ने गलती से उन्हें कुलपति बनाया था जिसे वर्तमान कुलाधिपति सुधारने के लिए बाध्य किए जा रहे थे और अंततः उन्हें उच्च शिक्षा मंत्री की अनुशंसा पर मध्यप्रदेश शासन ने धारा 44 लगाकर अपदस्थ कर दिया गया जबकि विश्वविद्यालय में ना कोई हड़ताल हो रही थी ना ही कोई असाधारण स्थिति थी. वरन, कोरोना के बाद भी 100 से अधिक वेबीनार सेमिनार विशेष व्याख्यान एवं अन्य कार्यक्रमों का सीमित संसाधनों में आयोजन कर अंबेडकर विश्वविद्यालय ने एक कीर्तिमान स्थापित कर लिया था.

दरअसल, सूत्रों के अनुसार राजनीति की शुरुआत के पीछे विश्वविद्यालय में होने वाली 100 से अधिक नियुक्तियों का प्रलोभन हैं, जिसकी फाइल राज्य शासन स्तर पर लंबित है जिसकी शासी निकाय से स्वीकृति हो चुकी है. राजनीतिक और अनेक संगठन के लोग अपने लोगों की नियुक्तियां कराना चाहते थे, भ्रष्टाचार के लिए दबाव भी बना रहे थे. कुछ शक्तियां स्थाई रूप से विश्वविद्यालय में कब्जा करना चाहती हैं. यह सब अपनी मर्जी के कुलपति के बिना संभव नहीं था.

मानद शोध पीठ बंद किए
पर्यावरण, सतत विकास, जलवायु परिवर्तन, शांति और सद्भाव, जैन और बौद्ध दर्शन शोधपीठ और सांस्कृतिक मुद्दों को लेकर स्थापित की गई नौ मानद शोधपीठ को डा. शर्मा ने कुलपति बनने के 1 हफ्ते के अंदर ही एक ही ऑर्डर से बंद करा दिया. यह तर्क दिया गया कि विश्वविद्यालय के पास आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है जबकि यह सभी मानद शोध पीठ के आचार्य राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय रूप से ख्यात हैं और अवैतनिक रूप से अपनी सेवाएं दे रहे थे. विगत 6 महीनों में सभी मानद पीठों ने 26 से अधिक वेबीनार, सेमीनार किए, कुछ शोध परियोजनाएं भी चल रहीं थीं तथा प्रत्येक पीठ में एक पुस्तक लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया था. जैन विरासत पीठ ने एक जन भागीदारी से राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया था और सर्टिफिकेट कोर्स प्रारंभ करने के लिए शिक्षा परिषद (बीओएस) में प्रस्ताव भी पारित कर लिया था. बदले की भावना से ग्रस्त नए कुलपति के इस एक निर्णय से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा है जिसका प्रभाव विश्वविद्यालय की मानकीकरण पर तो पड़ना निश्चित है और भविष्य के विश्वविद्यालयों को अनैतिक रूप से सहयोग ना करने वाले लोगों का मनोबल भी गिरेगा. इसी क्रम में अनेक परामर्शयों ने ऐसी स्थितियां और मीडिया में आई खबरों को देखकर विश्वविद्यालय से अपनी सेवाएं समाप्त करने का आग्रह किया और कुछ ने त्याग पत्र दे दिया. कुछ परामर्शी को यह कहकर हटा दिया गया है कि उनकी सेवाओं में वृद्धि नहीं की गई है.

केंद्र व राज्य सरकार की शोध पीठ भी प्रभावित हुई
केंद्र और राज्य सरकार की शोध पीठ पर नियुक्त प्रोफेसर एवं अन्य स्टाफ को यह कह दिया गया है कि विश्वविद्यालय आपका वेतन नहीं दे पाएगा जब तक कि सरकार अनुदान नहीं देती है. विदित हो कि सरकार नियमित अनुदान दे रही हैं. जबकि पूर्व से ही इनकी वेतन कटौती हो रही थी जिसके कारण और अनिश्चितता बन गई, जब इसका विरोध सामने आया तो आनन-फानन में एक समिति का गठन कर दिया गया जिसका अध्यक्ष होलकर कॉलेज के प्राचार्य उन्हीं डॉ सुरेश सिलावट को बनाया गया जिन पर विश्वविद्यालय में हस्तक्षेप करने के अनेक आरोप है. उनकी अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसमें अन्य सदस्य डॉ शोभा जैन (विश्वविद्यालय से नहीं), डॉक्टर डीके वर्मा प्रोफेसर, श्रीमती नीलम नैनामा वित्त नियंत्रक और सुश्री संध्या मालवीय हैं. मालवीय को इस समिति का सचिव बनाया गया. अध्यक्ष डॉक्टर सुरेश सिलावट को बनाया जाना संदेह को पैदा करता है. इसी प्रकार डॉ शोभा जैन विश्वविद्यालय की पदाधिकारी नहीं हैं. यदि केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा स्थापित पीठों का मूल्यांकन होना है तो उनकी नियामक संस्थाओं के प्रतिनिधि भी ऐसी किसी मूल्यांकन समिति में होना चाहिए. महाविद्यालय के प्रोफेसर और शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक का इस समिति में होना विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को लेकर भी प्रश्न खड़ा करेगा. यह भी संदेह पैदा करेगा कि इन शोध पीठों पर भ्रष्टाचार का आरोप है इसीलिए आंतरिक मूल्यांकन ना करके बाहर के लोगों को इसका अध्यक्ष व सदस्य बनाया गया है और शोध पीठ के किसी भी आचार्य को इसका सदस्य नहीं बनाया गया.

आउट सोर्स एजेंसी बदलने का दबाव
ऐसा कहा जा रहा है कि राजनीतिक दबाव में विश्वविद्यालय के कार्यों को एक विशिष्ट एवं राजनीतिक दबदबा रखने वाली एजेंसी से कार्य कराने की तैयारियां चल रही हैं. इस संबंध में एक बैठक भी हो चुकी है जिसे अभी कार्य कर रहे अस्थाई कर्मियों ने चेतावनी के रूप में लिया है. यह भय और हड़ताल की स्थिति निर्मित करेगा. आउटसोर्स कर्मचारियों को चुन चुन कर हटाने का दवाब बना दिया गया है जिनकी शिकायत मुख्यमंत्री तक पहुच गयी है.

वेबीनारों की श्रंखला बंद हुई

नए कुलपति के आने के बाद वह भी देखने में आया है कि विश्वविद्यालय के विभिन्न स्कूल और चेयर के द्वारा संचालित वेबीनार अचानक बंद करवा दिए गए. जबकि प्रति सप्ताह चार से पांच बेबीनार नियमित रूप से हुआ करते थे, जिन की खबरें प्राथमिकता से समाचार पत्रों में दिखाई देती थीं. बंद हुए वेबीनारों में भारतीय शिक्षण मंडल के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के 50 कार्यक्रम और आजादी के अमृत महोत्सव पर हेरीटेज सोसायटी के साथ इतिहास संबंधी 75 वेबीनार शामिल हैं. साथ ही 9 मानद पीठों से प्रतिमाह होने 4-5 वेबीनार भी अब बंद हो गए.

नेक की तैयारियों को धक्का
इस विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद विश्वविद्यालय का पहला नेक का एसेसमेंट होना था, जिसकी एसएसआर तैयार करने का काम विगत दो वर्षों से युद्ध स्तर पर चल रहा था. सभी स्कूलों के प्रमुख इसकी तैयारियों में लगे थे जिसका कार्य प्रोफेसर डीके वर्मा के नेतृत्व में हो रहा था. ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि इस कार्य को जबरदस्त धक्का लगेगा, जबकि एसएसआर फरवरी और मार्च में जमा की जाने थी. स्रोत बता रहे हैं कि इन नई परिस्थितियों में यह एक साल से पूर्व संभव नहीं है और यदि शीघ्र ही नियमित कुलपति की नियुक्ति नहीं की गई तो यह दो साल पीछे भी जा सकता है.

अब नही होंगे प्रकाशन

विश्वविद्यालय में 25 पुस्तकों, 7 शोध पत्रिकाएं और 100 से अधिक वेबीनारों की रिपोर्टस का प्रकाशन अब नहीं हो सकेगा. पुराने प्रकाशनों के भुगतान भी अब ख़तरे में आ गये हैं.


Published: 16-02-2022

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