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बसपा छोड़ किसी को भी सुखद संदेश नहीं दे रहे विप चुनाव परिणाम

<p><strong>राजेश श्रीवास्तव &nbsp;</strong>राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावों को अगर लिटमस टेस्ट मानें तो यह साफ हो गया है कि सभी दलों के विधायकों का रुझान सबसे ज्यादा बहुजन समाज पार्टी की ओर ही है। बसपा के एक सदस्य को छोड़ दें तो उसके किसी भी विधायक

बसपा छोड़ किसी को भी सुखद संदेश नहीं दे रहे विप चुनाव परिणाम
बसपा छोड़ किसी को भी सुखद संदेश नहीं दे रहे विप चुनाव परिणाम

राजेश श्रीवास्तव  राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावों को अगर लिटमस टेस्ट मानें तो यह साफ हो गया है कि सभी दलों के विधायकों का रुझान सबसे ज्यादा बहुजन समाज पार्टी की ओर ही है। बसपा के एक सदस्य को छोड़ दें तो उसके किसी भी विधायक ने क्रास वोटिंग नहीं की जिन राजेशपति ने की उन्हें बसपा ने पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था। जबकि अन्य सभी दलों में क्रास वोटिंग जमकर हुई। यहां तक कि समाजवादी पार्टी के सत्तारूढ़ होने के बावजूद विधायकों का उससे मोहभंग हो रहा है, जो आगामी विधानसभा चुनावों के लिए सही संदेश नहीं दे रहा है। दोनों चुनावों ने सत्ता का दावा कर रही भारतीय जनता पार्टी को भी कड़ा संदेश दिया है। उसकी बाजीगरी का जितना दावा किया जा रहा था । परिणाम आने के बाद सब भोथरा साबित हुआ। विधान परिषद में उसके दयाशंकर हारे तो राज्यसभा में उसकी समर्थित प्रत्याशी प्रीती महापात्रा को भी हार का स्वाद चखना पड़ा। उत्तर प्रदेश में चौथे पायदान पर खड़ी कांग्रेस के लिए यह संदेश है कि अगर वह अकेले दम पर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हुंकार भरेगी तो उसे बहुत सफलता नहीं मिलेगी। उसके प्रत्याशी कपिल सिब्बल यूपी के रास्ते राज्यसभा जरूर पहुंच गये हैं लेकिन उसकी कलई भी खुल गयी है। उसके सदस्यों ने भी क्रास वोटिंग की। 

दरअसल ये चुनाव ऐसे समय हुए हैं जब इसके ठीक बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वह प्रत्याशी जिनको दल बदलना है उनकी अंतरात्मा रातों-रात जाग गयी, ऐसा नहीं है वह पहले से ही प्रयासरत थे। यह बात और है कि उन्हें अब खुलकर सामने आना पड़ा क्योंकि उन्हें अपने नये दल को भी अपनी निष्ठा साबित करनी थी। सपा के रामपाल की बात छोड़ दें तो चार अन्य लोगों ने भी क्रास वोटिंग की। हरदोई के श्याम प्रकाश, मुजफ्फरनगर के नवाजिश आलम, गुड्डू पंडित और मुकेश शर्मा ने अपने दल से खुलकर बगावत की। इन चुनावों में सबसे अच्छी परफारमेंस बहुजन समाज पार्टी की दिखी। विधानपरिषद चुनावों में उसकी क्षमता 76 वोटों की थी लेकिन उसने 91 वोट हासिल कर लिये। वहीं राज्यसभा में उसको क्षमता से अधिक वोट मिले। उसने न केवल विधानपरिषद के अपने सभी उम्मीदवारों को सदन पहुंचाया बल्कि राज्यसभा में भी उसके दोनों उम्मीदवार विजयी रहे। सत्तारूढ़ सपा ने भी अपने सातों प्रत्याशियों को जितवा लिया। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के एक प्रत्याशी राज्यसभा पहुंचे ।
अगर बसपा को छोड़ दें तो इन परिणामों से सभी राजनीतिक दलों को केवल यही संदेश मिलता है कि मिशन-2०17 सभी के लिए चिंता का विषय है। अगर अभी यह हाल है तो आने वाले दिनों में तो खतरे की घंटी की आवाज बुलंद ही होनी है। अगर इन्हें लिटमस टेस्ट मानें तो सबसे ज्यादा खतरा सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को ही मंडरा रहा है। हालांकि वह अपने सभी प्रत्याशियों को जिताकर खुश है। सबसे सुखद संदेश बहुजन समाज पार्टी को ही मिल रहा है। भाजपा को अपनी रणनीति पर विचार करना होगा कि कहां चूक हुई तो कांग्रेस को एकला चलो की रणनीति पर भी फिर से विचार करना होगा। परिणामों ने सभी को अलग-अलग संदेश दिया है। अब इन संदेश से सबक लेना या न लेना राजनीतिक दलों का काम है।

 


Published: 06-12-2016

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