टीका-मास्क को अनिवार्य मानें
वेरिएंट अपने 30 से ज्यादा म्यूटेशन्स के साथ कितना घातक हो सकता है,इसपर कौन सी दवा असरदार है या टीके कितने प्रभावशाली हैं, ये सभी अभी प्रयोगशालाओं में जांच हो रहा है। लेकिन यह तथ्य साफ़ है कि विश्व के पास उपलब्ध टीके, मास्क के प्रयोग और सामाजिक दूरी के नियमों का पालन ही एक मात्र सहारा है। लिहाजा भारत जैसे देश में जहां मुफ़्त टीके पूरी दुनिया में उपलब्ध हैं, लोगों को ना तो टीके लगवाने में कोताही करनी चाहिए और न ही वे मास्क और सामाजिक नियमों के प्रति लापरवाही करना ठीक है। समाज के एक छोटे वर्ग की लापरवाही पूरे देश के लिए ऐसा संकट बन सकते हैं जिससे उबरना असम्भव हो जायेगा। ऐसे लापरवाही के खिलाफ समाज के प्रतिनिधि समूह और चैतन्य लोगों को एक बार फिर दबाव बनाना होगा। जहां एक ओर समाज को आर्थिक, उत्पादन और सेवा संबंधी गतिविधियों को यथावत जारी रखना होगा, वहीं यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके बीच कोई व्यक्ति लापरवाही न कर सके। शादी-ब्याह, उद्योग,पर्यटन, कृषि आवागमन सभी के बहाल होने की पूर्व -शर्त है इस संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकना। खासकर भारत जैसे देश में जहां उत्तरप्रदेश-बिहार जैसे कई राज्यों में आबादी का घनत्व यूरोप के एक देशों से सौ है। फिर भयंकर आर्थिक-संकट और इससे उपजी बेरोजगारी के ताजा आंकड़ों के अनुसार देश अभी कुछ-कुछ बाहर निकल रहा है। ऐसे में देश अब कोई लापरवाही नहीं झेल पायेगा।