बच्चे और उनका मन क्या चाहता है
बच्चे जब स्कूल से आया करते थे तो अपनी हर बात बताया करते थे। और हम हर बात सुन कर मुस्कुराया करते थे, क्योंकि हमें हर बात अच्छी लगती थी। फिर जब वो थोड़े से बड़े हुए तो उन्होंने आकर एक दिन कहा- 'आज हमने स्कूल भागकर पिक्चर देखी' | उस दिन पहली बार आपसे सजा मिली थी जोर से। वो तो सच बोल रहे थे, रोज सच बोलते थे। उस दिन भी तो आकर सच ही बोलै था। लेकिन उस दिन उनको प्यार से जवाब नहीं मिला। उस दिन उनको ये सुनने मिला कि आप गलत हो। थोड़े दिनों के बाद उन्होंने एक और बात बताई कि आज हम यहाँ गए ये करे। उस दिन उनको और जोर से जवाक दिया था कि आप गलत हो। दो तीन बार उन्होंने सुन लिया न कि आप गलत हो..... आप गलत हो..... फिर तो उन्होंने बताना ही बंद कर दिया।
पहले वो हमारे आस पास गोल गोल घूमते थे आज ये सोचे, आज ये करे, आज ये हुआ, वो हुआ, यहाँ गए। आज हम उनके गोल-गोल घूमते हैं। पूछते हैं कि किधर गए थे? किससे मिले थे? किससे बात की थी ? क्या खाये थे? पहले हम नहीं पूछते थे वो फिर भी बताते थे। आज हम पूछते रहते हैं, वो फिर भी सारी बातें नहीं बताते। कहते हैं बाहर जाओ, दरवाजा बंद कर दो, मुझे थोड़ी देर अकेले रहना है। रिश्ता वही है। दोनों लोग अभी भी वही है। पहले हर एक बात एक दूसरे से बताते थे। आज छुपाने क्यों लग गए? फ़ोन में पासवर्ड्स होगये। लैपटॉप में पासवर्ड हो गए। पासवर्ड कैसे आ गया बीच में? हम तो एक दूसरे को अपनी हर बात बताया करते थे, लेकिन तब तक बताया करते थे जब तक सामने वाले से स्वीकार्यता मिलती थी। हर एक आत्मा को एक ही चीज़ चाहिए रिश्ते में स्वीकार्यता। लेकिन जिस दिन हमने उनको कहा आप गलत हो। पहली बार रिजेक्शन। दूसरी बार हमने फिर उन्हें कहा कि आप गलत हो, फिर रिजेक्शन। उसके बाद उन्होंने बताना ही बंद कर दिया। हमने सोचा, उन्होंने ऐसा करना ही बंद कर दिया होगा। हमने कहा कि हमने डांट लगायी, तो उन्होंने करना बंद कर दिया। और उन्होंने कहा कि, डांट के कारण उन्होंने बताना बंद कर दिया। दोनों बातों में बहुत फर्क है। आज अगर अपने बच्चों को कहें के तुम अपने जीवन की हर बात मुझे बता सकते हो। और मैं गारंटी देता/देती हूँ कि जब आप अपनी बात बताओगे मेरे तरफ से स्वीकार्यता मिलेगी और सहयोग भी। गुस्सा और रिजेक्शन नहीं मिलेगा। कोई भी बच्चा अपने मम्मी पापा से झूठ बोलना नहीं चाहता। आज का समय वो नहीं है कि बच्चे हमसे अपनी बात छुपाएं। वो समय घर का फ़ोन बजता था और हम सतर्क हो जाते थे। जाकर उठाते थे फ़ोन कि फ़ोन किसका है मेरे बच्चे के लिए। अब तो उनके पास भी फ़ोन है और फ़ोन में पासवर्ड भी। हमें नहीं पता चल सकता के किसका फ़ोन आया किससे क्या बात हुई। अब कौन सा तरीका हम इस्तेमाल करेंगे अपने बच्चों को सँभालने या बचाने के लिए।
इसका सिर्फ एक ही तरीका है। वो खुद अपनी हर बात आकर आपसे बताएं और दूजा कोई तरीका नहीं। आप अपने बच्चों की रक्षा-सुरक्षा कर सकें तो वो खुद आकर आपसे अपनी हर बात बताएँगे। आपको चाहिए कि वो अपनी हर बात आकर खुद कहें। आप सिर्फ निश्चय करें के आप सुनने को तैयार हैं।