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संविधान दिवस : संविधान को हम कितना जानते हैं

आज हमारे लिए बहुत गौरव की बात है। आज के ही दिन 71 साल पहले 1949 को भारत के लोगों ने यह तय किया था कि अब हमारा देश संविधान के हिसाब से चलेगा और हमारा अपना संविधान होगा, किसी आसमानी, धार्मिक या किताबी बातों के आधार पर नहीं। पर क्या ये देश पूरी तरह से संविधान की भावनाओं अनुरूप चल रहा है? अगर किसी साधारण व्यक्ति को भगवत गीता दी जाए तो वो क्या करेगा? वो शायद उस किताब को देखेगा और माथे से लगाएगा पर उसी व्यक्ति को अगर संविधान की किताब दे तो वो क्या करेगा? उसकी प्रतिक्रिया कैसी होगी ? ज़ाहिर सी बात है वो आश्चर्य से कहेगा ये किताब क्यों दे रहे हैं ? मैं इसका क्या करूँगा ? दरअसल एक राष्ट्र के रूप में हम अपने संविधान को शासन की गीता बनाने से चूक गए हैं। देश के सबसे कमजोर आदमी के जीवन में संविधान का असर पंहुचा ही नहीं।

संविधान को हम कितना जानते हैं
संविधान को हम कितना जानते हैं

हम अदालत में गीता की कसम लेकर सच बोलते हैं, पर संविधान को लेकर देश के लोगों में आज तक वो भावना जन्म ही नहीं ले सकी। हमसब देश के नागरिक आज तक खुद को ये समझा ही नहीं पाए के संविधान देश की सबसे पवित्र पुस्तक है, सबसे पवित्र ग्रंथ है। हम सब में से शायद ही कोई होगा जिसे गीता का सार याद न हो - "कर्म कीजिये और फल की चिंता मत कीजिये" | पर हम में से शायद ही कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें संविधान का सार याद होगा जो ये था कि ''स्वतंत्रता, समानता और न्याय ही हमारे जीवन का आधार है" | संविधान के हर पन्ने पर भारत के सभ्यता और संस्कृति की झलक दिखती है। पर धीरे -धीरे राजनैतिक स्वार्थ के लिए संविधान की मूल भावना को पीछे छोड़ दिया गया। आज हम इतना पीछे जा चुके हैं कि रंगों का बंटवारा हो चुका है। हरा रंग मुसलमान का हो गया है, भगवा रंग हिन्दुओं का। भोजन बंट चुका है बिरयानी मुसलमान की होगयी है और खिचड़ी हिन्दुओं की। देश के लोग बंटते चले जा रहे हैं और आज भी देश में एकता की कमी महसूस होती है। देश में संविधान के बारे में जानकारी बहुत कम है क्योंकि हमारे देश के नेता संविधान के बारे में बात नहीं करते और हमें कभी जागरूक नहीं करते। इसका अपवाद 2010 में मिलता है संविधान को अपनाने के 60 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में गुजरात के सुरेंद्रनगर में संविधान गौरव यात्रा की शुरुआत की गयी थी। तब पधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। संविधान की एक बड़ी कॉपी हाथों में ले कर पुरे शहर में ये यात्रा निकली गयी थी।
संविधान के नीति निदेशक तत्व में ये लिखा है कि राज्यों को समान आचार संहिता का विकास करना चाहिए। पर आज तक ऐसा नहीं हुआ। 2019 तक देश में तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं को कष्ट देता रहा। ये संविधान के खिलाफ था पर तुष्टिकरण में संविधान की भावनाओं से खिलवाड़ चलता रहा। तुष्टिकरण की वजह से ये सब होता रहा। 1947 में धर्म के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ और भारत एक धर्म निरपेक्ष देश बना। आजादी मिलने के बाद हम आर्थिक रूप से एक गरीब देश थे और आज 73 वर्षों के बाद भी देश में लगभग 9 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। देश में सच्चे अर्थो में समानता नहीं आयी। देश के अलग -अलग राज्य जाति और धर्म के आधार पर अपनी जनताओं से भेद-भाव करते ही हैं। देश में सबको अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन जब मीडिया इस अधिकार का प्रयोग करता है तो कुछ राज्य सरकारें उन्हें जेल में डाल देती हैं।
संविधान एक ईमानदार देश की कल्पना करता है पर देश में करप्शन एक आदत बन चुकी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि "न खाऊंगा न खाने दूंगा" | ऊपरी स्तर पर करप्शन को रोक लिया गया, अब हमारे देश में स्कैम नहीं होते लेकिन निचले स्तर पर भ्र्ष्टाचार अभी भी मौजूद हैं। हाल ही में एक सर्वे आया है जिसमे भारत को एशिया का सबसे भ्र्ष्ट देश बताया गया है। हमसब को बाबा साहब अम्बेडकर की एक बात याद रखनी चाहिए, उन्होंने कहा था संविधान कितना भी अच्छा हो अगर उसका इस्तेमाल करने वाले लोग बुरे होंगे तो संविधान भी बुरा ही साबित होगा और संविधान कितना भी बुरा क्यों न हो अगर इसका इस्तेमाल करने वाले लोग अच्छे होंगे तो संविधान अच्छा ही सिद्ध होगा।


Published: 26-11-2021

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