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अनंत ऊर्जा : रिश्ते और हमारी आत्मा की ऊर्जा

रिश्ते का मतलब दो आत्माओं के बीच ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है। हम रिश्तों में इन शिकायतों में न उलझें कि किसने हमारे लिए क्या किया। हम बस अपनी सोच पर ध्यान दें।

 रिश्ते और हमारी आत्मा की ऊर्जा
रिश्ते और हमारी आत्मा की ऊर्जा

हम सभी के जीवन में हमारे रिश्ते बहुत महत्वपूर्ण हैं। रिलेशनशिप यानी ऊर्जा का आदान-प्रदान। हमारे रिश्तों में, परिवार के साथ, दोस्तों के साथ, हमारी काम की जगह पर, सहकर्मियों के साथ, हम जो सोचते हैं, अनुभव करते हैं, बोलते हैं, जो व्यवहार करते हैं, वो हमारा स्पंदन है। सामने वाला जो सोचता है, महसूस करता है, व्यवहार करता है, वह उनका स्पंदन है जो हम तक पहुँचता है। यह जो ऊर्जा का आदान-प्रदान है, इसे ही रिश्ता कहते हैं। रिश्ता सिर्फ वो नहीं है, जो किसी लेबल के जरिये होता है। यानी सिर्फ माता-पिता का बच्चों से, दोस्त-दोस्त का, पति-पत्नी का, पड़ोसी का पड़ोसी से रिश्ता ही रिश्ता नहीं है। . रिश्ता दो आत्माओं के बीच आत्माओं का आदान-प्रदान है। फिर वो दो आत्माएं अलग -अलग भूमिकाएं निभा रही हैं। जैसे पिता की, दोस्त की।
हम अक्सर सोचते हैं कि रिश्ता वो है जो बाहर दिखता है। मतलब एक-दूसरे से हम कैसे बात करते हैं, कैसे व्यवहार करते हैं, एक दूसरे के लिए क्या -क्या करते हैं। कितनी बार हम खुद को ये कहते हुए सुनते हैं कि आपने इस रिश्ते के लिए क्या किया। यह कितना महत्वपूर्ण कथन है। सामने वाला कहेगा मैंने इस रिश्ते में ये किया ..... वो किया ...... | मैंने न दिन देखा, न रात। मैंने अपनी क्षमता से ज्यादा इनके लिए किया। मैंने अपने बारे में नहीं सोचा, सिर्फ इनके बारे में सोचा। हमारा फोकस यह हो जाता है कि हमने एक -दूसरे के लिए क्या किया। लेकिन इससे ज्यादा जरुरी ये है कि हमने एक-दूसरे के लिए क्या या कैसा सोचा। रिश्ता सिर्फ वो नहीं है, जो हम उनके लिए कर रहे हैं। रिश्ता वो है जो हम उनके लिए सोच रहे हैं।
रिश्ते जब सिर्फ 'क्या किया' से बनते हैं, तो बहुत मजबूत नहीं होते। क्योंकि हम सारा दिन जो कर रहे हैं, रिश्तों के लिए हीं तो कर रहे हैं। चाहे घर के रिश्तों के लिए, चाहे ऑफिस के लिए। और इतना करने के बाद, इतनी मेहनत के बाद, अपना पूरा जीवन उस रिश्ते में लगा देने के बाद ये महसूस करते हैं कि ये रिश्ता उतना मजबूत नहीं है। छोटी-सी बात से रिश्ता हिलने लगता है। 'ये छोटी-छोटी बातों में नाराज क्यों हो जाते हैं" ? "इनके लिए मैंने इतना कुछ किया, वो इनको याद ही नहीं रहता और छोटी छोटी बातों को पकड़ कर बैठ जाते हैं" | "कल तुमने ऐसा नहीं किया" | "किया" शब्द पर इतना ज्यादा ध्यान है कि हमें लगता है इतना करने के बावजूद भी रिश्ता मजबूत नहीं है। इसलिए आज थोड़ा सा बदलाव करते है। रिश्ता पहले आत्मा के साथ होता है। किसी भी एक रिश्ते को ढूंढे, जिसमे आपको लगता है कि दो लोगों के बीच जो सामंजस्य, ऊर्जा का खूबसूरत बहाव होना चाहिए, वो नहीं है। हम कोशिश बहुत कर रहे हैं, लेकिन कोई ग़लतफ़हमी, कोई नाराजगी, कोई दुःख, कोई अधूरी उम्मीद है। ये क्या है उसको जांचना है। तो उस रिश्ते में जा कर, उस व्यक्ति के लिए, मन के पास आइये। जैसे माता-पिता और बच्चों के बीच एक खूबसूरत रिश्ता होता है- निःस्वार्थ भाव का।


Published: 15-11-2021

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