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आनंद का बही खाता : खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि क्या आप उम्मीद से बेहतर कर रहे हैं

मनोवैज्ञानिक सोनजा ल्युबोमिर्स्की की रिसर्च 'द हाऊ ऑफ़ हैप्पीनेस' में यह बताया गया है कि खुश रहने की ताकत हमें कहां से मिलती है। इसमें 50% जिम्मेदारी जींस की होती है। यानी खुश रहना हमारे खून में होता है। परिवार की परंपरा हमें खुश रहना सिखाती है। 40% हिस्सेदारी आपकी समझ, उम्मीद, जोखिम की होती है। 10 % हिस्सेदारी परिस्थितियों की होती है, जो हमारे बस में नहीं होती।

 खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि क्या आप उम्मीद से बेहतर कर रहे हैं
खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि क्या आप उम्मीद से बेहतर कर रहे हैं

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन ने आनंद का तैयार किया है। उम्मीद+जोखिम+फैसला =ख़ुशी। रिसर्च कहती है कि ख़ुशी का संबंध उमीदों से है। ख़ुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप कितना अच्छा काम कऱ रहे हैं, कितना हासिल कर रहे हैं, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि आपने जो उम्मीद की थी वो पूरी हुई के नहीं। उम्मीदें जोखिम लेने से पूरी होती हैं और जोखिम आपके फैसलों पर निर्भर है। इसलिए खुश रहना है तो अपनी उम्मीदों, जोखिम और फैसलों को मैनेज कीजिये। ख़ुशी को अपने काम का लक्ष्य नहीं, टूल बनाइये। 18 हजार से अधिक लोगों ने एमआरआई स्कैन और मस्तिष्क में ख़ुशी के हार्मोन डोपामाइन घटते-बढ़ते स्तर के शोध से यह नतीजा निकाला है। इसे ऐसे समझते हैं -

उम्मीद- आपको हिम्मत देती है
जीवन में हर आपको हर पल कोई न कोई निर्णय लेना होता है। निर्णय के लिए आपके पास कुछ विकल्प होते हैं। ये विकल्प सुरक्षित या जोखिम भरे होते हैं। जब हमारी उम्मीद बड़ी होती है, अपेक्षाएं अधिक होती हैं तो हम हिम्मत करते हैं, अधिक जोखिम भरे विकल्प चुनते हैं। जब उम्मीदें कमजोर होती हैं तो सुरक्षित विकल्प चुनते हैं।

जोखिम- हमें प्रेरणा देता है
ख़ुशी की तलाश प्रेरित करती है। ख़ुशी अस्थायी होती है। बदलती, बढ़ती-घटती रहती है। उदाहरण के लिए अगर किसी का प्रमोशन हुआ है तो वो इंसान हर समय इस बात की ख़ुशी नहीं मना पायेगा। कुछ समय बाद ही लगेगा की इससे जुड़े जोखिम भी हैं, जिम्मेदारियां भी हैं। ख़ुशी का ऐसे आना -जाना मस्तिष्क को नई परिस्थितियों और चुनौतियों के लिए तैयार करता है।

फैसले- हमें लक्ष्य देते हैं
उम्मीद में जोखिम मिलकर हम फैसले करते हैं। फैसले सही साबित होते हैं, अपेक्षा के अनुरूप या फिर बेहतर परिणाम देते हैं तो ख़ुशी मिलती है। इसलिए उम्मीदों और अपेक्षाओं को मैनेज करना जरुरी है। फैसले लेते समय अपने लक्ष्य ऊँचे रखें, प्रयास 100 फीसद करें। उम्मीदें ऐसी रखें जो पूरी हो सकती हों। आखिर में जब उम्मीदों से बेहतर परिणाम मिलेंगे तब हम गहरायी से उस ख़ुशी को महसूस कर पाएंगे। अपेक्षा से बेहतर परिणाम मस्तिष्क को उम्मीदें मैनेज करना सिखाता है। यानी हम भविष्य में और बेहतर विकल्प चुनने, बेहतर जोखिम और निर्णय लेने के लिए ट्रेंड होते जाते हैं।


Published: 04-11-2021

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