T-20 वर्ल्डकप में 30 अक्टूबर को इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया के बीच मुकाबला हुआ. क्रिकेट के शौकीन यह तय मान रहे थे कि मुकाबला बहुत रोमांचक और कांटे का होगा लेकिन मुकाबला पूरी तरह एकतरफा रहा. इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया को बुरी तरह पराजित किया. ऑस्ट्रेलिया की यह हार उतनी ही शर्मनाक थी, जितनी शर्मनाक हार भारत को पाकिस्तान से मिली थी. उल्लेखनीय है कि भारत-पाक मुकाबले की ही तरह इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट मैच के दौरान दोनों देशों के समर्थकों के बीच जबरदस्त तनाव और उत्तेजना का वातावरण रहता है. क्रिकेट को लेकर दोनों देशों के बीच इस जबरदस्त तनातनी का इतिहास लगभग 140 साल पुराना है.
1882 में खेले गए टेस्ट मैच में इंग्लैंड की धरती पर ऑस्ट्रेलिया को मिली पहली जीत से इंग्लैंड के समर्थक इतना आगबबूला हो गए थे कि उन्होंने स्टम्प्स और गिल्लियां जला डाले थे. इस टेस्ट मैच में इंग्लैंड की पराजय का समाचार दूसरे दिन लंदन के प्रमुख अखबार स्पोर्टिंग टाइम्स में पहले पन्ने पर इस शीर्षक के साथ छपा था,"इंग्लैंड में क्रिकेट की मौत हो चुकी है." तब से अबतक के 140 वर्ष लंबे कालखंड के दौरान इस तनातनी में कोई कमी कभी नहीं आयी. पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रेमी इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं. क्रिकेट मैच में एक दूसरे पर जीत का जश्न भी जीतने वाले देश में जमकर मनाया जाता है, विशेषकर इंग्लैंड में लेकिन 30 अक्टूबर को ऑस्ट्रेलिया की हार के बाद भी इंग्लैंड में जश्न तो मनाया गया लेकिन वहां के प्रधानमंत्री या मंत्री या किसी पूर्व खिलाड़ी ने कोई उलूलजुलूल बयानबाजी नहीं की. इंग्लैंड का कोई खिलाड़ी मैदान पर ही बाइबिल पढ़ने में नहीं जुट गया. किसी शिक्षित सभ्य समाज और पंचर छाप समाज में यही अंतर होता है. यह अंतर बहुत बड़ा होता है तथा आदमी और जानवर के अंतर को परिभाषित करता है.
दूसरा अंतर भी समझिए. इस मैच में ऑस्ट्रेलिया की शर्मनाक पराजय के बावजूद उस पर मैच फिक्सिंग/सट्टेबाजी का कोई आरोप नहीं लगा. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. क्रिकेट के मैदान में एक दूसरे की कट्टर शत्रु की पहचान वाली दोनों टीमों के कई मुकाबले एकतरफा रहे हैं लेकिन वह सभी मैच फिक्सिंग/सट्टेबाजी के आरोपों के घेरे में कभी नहीं आए. ऐसा इसलिए है क्योंकि दोनों ही देशों के क्रिकेट प्रेमियों को अपने क्रिकेट खिलाड़ियों पर पूर्ण विश्वास है कि यह खिलाड़ी राष्ट्रीय सम्मान स्वाभिमान का सौदा नहीं करेंगे. उल्लेखनीय है कि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के ऐसे खिलाड़ियों की सूची बहुत लंबी है जो अपनी बदमिजाजी, उजड्डता, बदतमीजी, नशेबाजी, के लिए कुख्यात रहे हैं. कई तरह के विवादों में उलझते रहे हैं. इसके बावजूद उनके देश में उनकी यह साख रही है कि वो राष्ट्रीय सम्मान स्वाभिमान का सौदा नहीं कर सकते. उनके प्रति उनके देश में यह धारणा राष्ट्रीय हितों से संबंधित मुद्दों पर उनके आचरण के कारण बनी है. जबकि पाकिस्तान के साथ भारतीय क्रिकेट टीम की पराजय पर सबसे पहले मैच फिक्सिंग/सट्टेबाजी का ही संदेह होता है. ऐसा क्यों होता है ? आखिर क्या कारण है कि भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को अपने क्रिकेट खिलाड़ियों पर उसी तरह विश्वास नहीं है, जिस तरह इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट प्रेमियों को अपने देश के खिलाड़ियों पर है ? इस सवाल के जवाब के लिए भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी और कर्ताधर्ता अपने गिरेबान में झांकना चाहिए.