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Social Media Addiction : आभासी इश्क़ के खतरे जानिये

लोगों को बोलने की आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का इस्तेमाल अनुशासित हो कर करना चाहिए। खास तौर से सोशल मीडिया में पोस्ट करते समय इसका ध्यान जरूर रखना चाहिए। आलोचना निष्पक्ष और रचनात्मक होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की आड़ में दूसरों की आस्था को आहत नहीं करना चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल संविधान के तहत तर्कसंगत तरीके से करना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं है कि सोशल मीडिया बेलगाम है, इसमें फेक न्यूज़ का बोलबाला है, जबकि उसकी तुलना में अखबार अब भी सूचनाओं के सबसे प्रामाणिक स्रोत हैं। एक अच्छी बात यह है कि सभी प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान लगातार फेक न्यूज़ को बेनकाब कर रहे हैं, ताकि लोग उनके झांसे में न आएं, फिर भी , शरारती तत्व बाज नहीं आ रहे हैं।

आभासी इश्क़ के खतरे जानिये
आभासी इश्क़ के खतरे जानिये

हो सकता है आप उन भाग्यशाली लोगों में से हों, जो अनियंत्रित सोशल मीडिया के शिकार होने से अब तक बचे रहे हों, लेकिन जैसी परिस्थिति है , उसमे किसी के लिए भी फेक न्यूज़ से बच पाना मुश्किल लगता है.हाल में देश के प्रधान नयायधीश एनवी रमन्ना ने जो कहा, उसमे शायद ही कोई असहमत होगा। उन्होंने कहा कि देश में वेब पोर्टलों और यूट्यब चैनलों पर किसी का नियंत्रण नहीं है। वे कुछ भी प्रकाशित कर सकते है। उनकी संख्या भी बढ़ती जा रही है। कोई भी शख्श यूट्यूब चैनल शुरू कर सकता है और उस पर फर्जी खबरे प्रसारित कर सकता है। उनका कहना था कि अख़बारों और टेलीविजन के लिए एक नियामक तंत्र है, लेकिन वेब मीडिया का एक वर्ग कुछ भी दिखाता है। कुछ वेब पोर्टल और यूट्यूब चैनल अपनी सामग्री से जनता को गुमराह कर रहे हैं, जिससे देश में तनाव पैदा हो रहा है। वे किसी भी बात को सांप्रदायिक रंग दे देते हैं। वे न्यायधीशों, संस्थानों और जिसे भी वो ना पसंद करते हैं, उनके खिलाफ अपशब्द लिखते हैं।
कोरोना महामारी के दौरान हम सब ने अनुभव किया है कि सोशल मीडिया पर महामारी को ले कर फेक वीडियो और खबरें बड़ी संख्या में चल रही थीं। कुछ समय पहले तक रोजाना अनगिनत फेक खबरें और वीडिओ आ रहे थे, जिनमें किसी कथित जाने-माने डॉक्टर के हवाले से कोरोना की दावा किया जा रहा था, तो कभी वैक्सीन के बारे में भ्रामक सूचना फैलायी जाती थी। ऐसी खबरे भी चली कि एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की बनायी ड्राप से 10 मिनट में संक्रमण से रहत मिल जाती है और ऑक्सीजन का स्तर सामान्य हो जाता है।
शायद आपने भी एक ऑडियो न्यूज़ सुना होगा जिसमे दूरसंचार विभाग का एक कथित अधिकारी अपने रिश्तेदार से ये कह रहा होता है कि कोरोना की दूसरी लहार 5जी ट्रायल का नतीजा थी। कहा गया है कि वैसे तो ये गुप्त बातचीत है, जिसे किसी तरह रिकॉर्ड कर लिया गया है। और जनहित में इसे सोशल मीडिया के माध्यम से आप तक पहुंचाया जा रहा है। इसका नतीजा यह हुआ कि लोगों ने कई टॉवरों में आग लगा दी। जूही चावला को 20 लाख का जुरमाना भी भरना पड़ा था।
फेक न्यूज़ की समस्या इसलिए भी बढ़ती जा रही है कि इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। चुनावी मौसम में तो इनकी बाढ़ आ जाती है। वेबसाइट स्टेटिस्टा के अनुसार, 2020 तक भारत में लगभग 70 करोड़ लोग कंप्यूटर और मोबाइल के जरिये इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे। ऐसा अनुमान है कि 2025 तक यह संख्या बढ़ कर 97.4 करोड़ तक पहुंच जाएगी। चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोग भारत में हैं। जाहिर है कि भारत इंटरनेट का बहुत बड़ा बाज़ार है। हमारे देश में व्हाट्सप्प के 53 करोड़, फेसबुक के 40 करोड़ से अधिक और ट्विटर के 1 करोड़ से अधिक उपयोगकर्त्ता हैं। केंद्र सरकार ने हाल ही में इंटरनेट मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म (ओवर द टॉप) के लिए गाइड लाइन जारी कर दी है। अब नेटफ्लिक्स और अमेज़ॉन जैसे प्लेटफॉर्म हो के ट्विटर या फेसबुक, व्हाट्सप्प जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, सबके लिए सख्त नियम बना दिए गए हैं। अब देखना ये है कि ये नियम कितने प्रभावी साबित होते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि मौजूदा दर में फेक न्यूज़ सबसे बड़ी चुनौती है। सच्ची खबर को लोगों तक पहुंचने में वक़्त लगता है पर गलत न्यूज़ जंगल के आग के तरह फ़ैल जाती है, और समाज में भ्रम और तनाव भी पैदा करती है।


Published: 20-10-2021

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