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पैंतरेबाज प्रधानमंत्री ओली : अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे

नेपाल की राजनीति के नटवरलाल खडग प्रसाद शर्मा ओली सत्ता के लिए साम दाम दंड भेद के माहिर खिलाड़ी हैं. सर्कस के ट्रेपीज कलाकार की तरह सत्ता पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए वो कभी चीन तो कभी पाकिस्तान के झूलों पर पेंग लेने की कला को साध चुके हैं. चाहे सदियों से रागात्मक सम्बन्ध वाले भारत की कीमत पर ही क्यों न हो. पर जब इस बार उनके लाल बंगले के भीतर से ही उन्हें करारी चुनौती मिली है तो शत्रुता के खांचे में रख चुके भारत से भी मदद की गुहार लगाने में उन्हें कोई शर्म नहीं आएगी. देखना है आगे आने वाले दिनों में नेपाल की राजनीति का ऊँट किस करवट बैठता है.

अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे
अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे

कभी हिन्दुओं की श्रद्धा, रक्षा और सम्मान के विश्व में केंद्र रहे नेपाल को लाल अजदहे ने कुछ सालों से ऐसा डस लिया है कि भारत का परम मित्र देश आज भारत का शत्रु बन कर आँखें दिखा रहा है. मंगोल रेस का अपनापा और कुबेर का खजाना दिखा कर उत्तरी पडोसी लाल चीन ने नेपाल को ऐसा जकड लिया है कि वहां की जनता आज दो पाटों के बीच पिस रही है. भारत के खिलाफ विष वमन करने वाला और कोई नहीं एक अवसरवादी कम्युनिस्ट पंडित ओली है जो अब सत्ता डांवाडोल होते देख भारत से मदद के लिए फड़फड़ा रहा है.

पहले से हाल बेहाल नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली सोमवार को संसद में विश्वास मत हासिल न कर पाने के कारण आखिरकार किनारे लगा ही दिए गए. चीन के वैचारिक सहायक माने जाने वाले घनघोर वामपंथी ओली को झटका देने वाले पुष्प कमल दहल प्रचंड भी वामपंथी ही हैं और कमुनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (माओइष्ट सेण्टर ) के लीडर हैं. ओली भले ही चीन के चमचे रहे हों पर प्रचंड के समर्थन वापस लेने के बाद उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए हाल में भारत से मदद हासिल करने के कई प्रयास किये थे.

उनकी कोशिश थी कि कम्युनिस्ट पार्टी के अनगिनत घटक फिर एक हो जायें. जब ऐसी मार्क्सवादी एकजुटता नहीं हुयी तो उन्होंने बीते दिसम्बर में निर्वाचित संसद ही भंग कर डाली थी. राष्ट्रपति श्रीमती विद्यादेवी भंडारी ने उनका परामर्श भी स्वीकार कर लिया था. पर नेपाल सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री के सुझाव को अवैध तथा राष्ट्रपति के अध्यादेश के संविधान—विरोधी करार दिया. इसी कारण ओली को विशवास मत हासिल करने की कवायद करनी पड़ी और सदन के फ्लोर पर वो कुल २७५ सदस्यों में से ८० का समर्थन ही जुटा कर प्रधानमंत्री पड़ से बेदखल हो गए हो गए. अब राष्ट्रपति ने राजनीतिक दलों को तीन के अन्दर बहुमत की सरकार बनाने का न्यौता दिया है. हालांकि ओली के लिए, ऐसी परिस्थिति में उम्मीद की एक बारीक सी किरण अब भी बाकी है. अगर विरोधी राजनीतिक दल तीन दिन में गठबंधन करके बहुमत की सरकार बनाने में नाकाम रहते हैं तो संसद में सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया होने के नाते वो दुबारा सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं.

विरोधी दल नेपाल कांग्रेस ( माओइष्ट ) के नेता गणेश शाह ने मांग की है कि ओली को अब प्रधानमंत्री पड़ से त्यागपत्र दे देना चाहिए. सी पी एन माओइष्ट नेपाली कांग्रेस और ओली के खिलाफ वोट देने वाले अन्य दलों के साथ मिल कर शीघ्रातिशीघ्र गठबंधन सरकार बनाने का प्रयास करेंगे लेकिन अगर ऐसा न हो सका तो राष्ट्रपति संविधान के आर्टिकल ७६(३) के तहत सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त कर सकती हैं. अभी स्पीकर अग्नि सपकोटा के अनुसार संसद के अन्दर का गणित ये है कि ओली को विश्वास मत हासिल करने के लिए १३६ वोट की जरूरत है. सोमवार को ओली के खिलाफ १२४ मत पड़े थे और १५ सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया था.

इसके अलावा ओली के माधव नेपाल और झालानाथ खनाल के नेतृत्व में विरोधी गुट के ३८ सदस्यों ने मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लिया था. मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के ६१ और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (माओ इष्ट सेण्टर ) के ४९ सदस्यों ने ओली के खिलाफ मतदान किया. जनता समाजबादी पार्टी के पास ३२ वोट हैं लेकिन वो विभाजित हैं. इसमें से महंत ठाकुर गुट निष्पक्ष रहा जबकि उपेन्द्र यादव गुट ने ओली के खिलाफ वोट किया. ज्ञात हो कि नेपाल इसी उठापटक के चलते २० दिसंबर कोअनिश्चितता के भंवर में डूब गया था जब राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर संसद को भंग करके नए चुनाव का एलान कर दिया था.

इधर ओली भी पचासी प्रतिशत हिन्दू आबादी वाले नेपाल में नये जनाधार की खोज में धर्मप्राण बन गये हैं. राजनीति का कमाल ये है कि ओली से भी घोर माओवादी पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड अब मोदी के उपासक दिख रहे हैं. वे ओली के कट्टर दुश्मन हैं. इस बीच भारत—समर्थक नेपाली कांग्रेस के नेता प्रकाश मान सिंह सरकार बनाने का दावा पेश कर रहे हैं लेकिन वे ओली की भांति सियासी बाजीगरी में माहिर नहीं हैं। ओली नट हैं, बल्कि नटवरलाल हैं.

ओली के हाल ही के करतबों को याद कर लें तो माजरा ज्यादा स्पष्ट हो जायेगा। नेपाली कांग्रेस के पुरोधा और भारतीय समाजवादी नेताओं के दशकों से मित्र रहे महामहिम राजदूत दीपकुमार उपाध्याय को प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली ने टेलीफोन पर बर्खास्त कर दिया था. उन पर अभियोग लगाया था कि नेपाल के ये राजदूत मोदी सरकार से मिल कर ओली सरकार को पलट देने की साजिश रच रहे थे. इस खबर से उत्पन्न निहितार्थ को भारतीय अख़बारों ने नहीं छापा.

वह यह था की नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड और उनकी माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी, जो शुरू से चीन की समर्थक रही, ने मोदी सरकार की मदद से नेपाल के कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री को गिरा देने की साजिश रची थी. नरेन्द्र मोदी और प्रचंड विचारधारा से दो ध्रुवों की दूरी पर हैं, उनमें कभी सामीप्य और सामंजस्य हो ही नहीं सकता. ओली और प्रचंड चीन के झंडाबरदार हैं, और अभी तक इस हिमालयी राष्ट्र में भारतीय हितों का अपार नुकसान करते रहे. मोदी के कथित नए समर्थक प्रचंड प्रधानमंत्री बनते ही पहले बीजिंग की यात्रा पर चले गए थे. जबकि परंपरा ये रही की नेपाल का हर प्रधानमंत्री अपनी प्रथम विदेश यात्रा भारत से शुरू करता है.

उल्लेखनीय है कि नेपाल विश्व का इकलौता हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था और भारत और नेपाल के रिश्ते रोटी-बेटी के हुआ करते थे. पर बलिहारी हो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की जिन्होंने अपनी अर्धांगिनी की खातिर इस हिमालयी राष्ट्र से संबंधों को निम्नतम स्तर तक पहुंचा दिया. काठमांडू का पशुपतिनाथ मंदिर केवल हिन्दुओं को ही प्रवेश देता है, अतः सोनिया गांधी को मंदिर में प्रवेश करने नहीं दिया गया. तिलमिला कर राजीव गाँधी ने नेपाल को तेल, खाद्य पदार्थ और अन्य आवश्यक सामग्री भेजने पर पाबन्दी लगा दी. परिणाम स्वरुप भारत का पारंपरिक मित्र और हिन्दू राष्ट्र भारत का घोर शत्रु हो गया. ये राहत की बात है कि इस मनोमालिन्य के बाद भी २ करोड़ से ऊपर नेपाली भारत में चैन और अमन से रहते हैं और नेपाल के तराई क्षेत्र में भारत के लोग दूध में शकर की तरह अपने नेपाली बांधवों के साथ जीवन यापन कर रहे हैं.

अब तनिक इस ओली महाशय के बारे में जान लें. आखिर इस शर्मा ‘ओली’की हिन्दू—विरोधी साजिश क्या है ? कौन हैं यह ? वस्तुत: इन्हें इस्लामिक स्टेट ऑफ़ ईराक एण्ड सीरिया का मृत आतंकी, स्वघोषित आलमी खलीफा अबू बकर अल बगदादी का ही फोटोकॉपी माना जाता है. नक्सली चारु मजूमदार का प्रेरित शिष्य, यह ओली नेपाल-बंगाल सीमा पर, कभी अपनी जन अदालत बनाकर भूस्वामियों का सर कलम करता था. वर्गशत्रु की हत्या को नक्सली धर्म कहता था और मार्क्स को आज का भगवान लेकिन ऐसा किसान-पुत्र शीघ्र ही अकूत धन और जमीन हथियाने लगा. धन बल से सत्ता हथियाना उसका लक्ष्य हो गया.

इनके आपराधिक और वैचारिक भटकाव से ग्रसित नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी भी कई टुकड़ों में विभाजित हो गई. उनके सरगना रहे पुष्प कमल दहल ''प्रचण्ड'', विष्णु प्रसाद पाउडेल, माधव कुमार नेपाल, वामदेव गौतम, रामबहादुर थापा, झालानाथ खनल आदि. इन लाल सितारों की राजनीतिक गंभीरता का अंदाजा यह जानकर लग जाता है कि भारत के विरुद्ध विष-वमन तथा चीन के प्रति चारण योग्यता में इनमें कौन कितना तेज है ? पण्डित ओली इस वक्त अव्वल नम्बर पर हैं. उनका निष्कर्ष, उनका सुविचारित निदान है कि भारत से नेपाल में आया कोरोना ज्यादा भयंकर है बनिस्बत चीन से फैले वायरस के. धन्य है ये स्वार्थी अतिवादी.

इन्हीं प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि सुता क्षेत्र नेपाल का है. जबकि गोरखपुर से लगा यह इलाका बिहार के पश्चिमी चंपारण जनपद का भूभाग है. जनकजामाता राम को ओली नेपाल का बता चुके हैं. पण्डित ओली की एक और ख्याति है. उनके नाम से रंग बिरंगे एनजीओ पलते हैं. सारा धन (देसी व विदेसी) इन्हीं के मार्फ़त जमाखर्च होता है. पिछले भूकम्प के समय बटोरी गयी 40 लाख डालर की राशि अभी तक राहत में खर्च नहीं हुई. तो किसके जेब में खो गयी ये एक प्रश्न है ? विचारधारा से कम्युनिस्ट ओली लेनिनवादी नहीं हैं, वे स्तालिनवादी हैं. कट्टर हैं. शायद ही कोई अपराध उनसे नहीं हुआ हो.

इन्हीं नक्सली प्रधान मंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा उर्फ़ ओली ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को खुश करने के लिए ऐसी बेला पर जब दो एशियाई महाशक्तियां (लोकतान्त्रिक भारत तथा कम्युनिस्ट चीन) बौद्ध (पूर्वी) लद्दाख में बीजिंग द्वारा प्रायोजित मुठभेड़ में आमने सामने थे, तो नेपाल ने एक नया मानचित्र प्रकाशित कर डाला. इसमें उत्तराखण्ड के धारचूला क्षेत्र वाले लिपुलेख मार्ग को अपना भूभाग दर्शा दिया. उसकी नीयत यही है कि दुनिया को दिखायें कि भारत एक विस्तारवादी राष्ट्र है जो दोनों पड़ोसियों से एक साथ उलझ गया है.

एक खतरा आसन्न है. आतंकवाद के कारखाने पाकिस्तान और हिन्दू नेपाल की पनपती यारी से. इस्लामाबाद के साये में भारत-नेपाल सीमा पर मस्जिदों का बेतहाशा निर्माण हो गया है. चीन के साथ मिलकर, पाकिस्तान से नाता बनाकर पण्डित ओली भारत-विरोधी त्रिगुट रच रहे हैं. नेपाल की भारत समर्थक जनता समाधान तलाशने पर विवश है.

 


Published: 11-05-2021

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