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बलिदानियों के खून के दलाल : शर्मनाक कहानी

नेहरू खानदान से अपनी रिश्तेदारी के कारण दिल्ली के लुटियनिया मीडिया दरबार का बेताज बादशाह रहा है करण थापर। आरएसएस और सावरकर को अंग्रेज परस्त सिद्ध करने के अभियान का सबसे बड़ा झंडाबरदार भी है.

शर्मनाक कहानी
शर्मनाक कहानी

आज उन बलिदानियों को याद करने का दिन है और उन बलिदानियों के खून की दलाली करने वाले दलालों को भी नहीं भूलने की कसम खाने का भी दिन है.

13 अप्रैल 1919 को भारतीय इतिहास का सबसे जघन्य नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुआ था। लेकिन पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर माइकेल ओ डॉयर ने जलियांवाला बाग नरसंहार के मुख्य अपराधी हत्यारे रिनॉल्ड डॉयर द्वारा सैकड़ों निहत्थे भारतीयों को गोलियों से भूनकर मौत के घाट उतार देने की राक्षसी कार्रवाई का खुलकर समर्थन किया था और उसके खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उस हत्यारे का खुलकर बचाव किया था।

पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर माइकेल ओ डॉयर के इस कुकर्म के लिए 1920 में लाहौर के लाला दीवान बहादुर कुंजबिहारी थापर के नेतृत्व में तत्कालीन पंजाब के 3 अन्य व्यापारियों (उमर हयात खान, चौधरी गज्जन सिंह और राय बहादुर लाल चंद) ने अपने पास से 1.75 लाख रूपये इक्ट्ठा कर के सर माइकेल ओ डॉयर को प्रदान कर उसे सम्मानित और पुरस्कृत किया था। उल्लेख जरूरी है कि उस समय स्वर्ण का मूल्य लगभग 18.50 रुपये प्रति दस ग्राम था। अर्थात उस समय 1.75 लाख रुपए में लगभग 95 किलो सोना खरीदा जा सकता था। आज एक किलो सोने की कीमत लगभग 48 लाख रूपए प्रति किलोग्राम है। अतः आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि 1920 में दीवान कुंजबिहारी थापर के नेतृत्व में तत्कालीन पंजाब के 3 अन्य व्यापारियों ने माइकेल ओ डॉयर को उसके भारत विरोधी कुकर्म के लिए कितनी बड़ी रकम देकर पुरस्कृत और सम्मानित किया था। इसके जवाब में ब्रिटिश हुक्मरानों ने 1920 में ही दीवान बहादुर लाला कुंज बिहारी लाल थापर को "मोस्ट एक्सीलेंस ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर" सम्मान देकर सम्मानित किया था। दीवान बहादुर की उपाधि भी उसे ब्रिटिश हुक्मरानों ने ही दी थी। अब आप मित्र स्वयं तय करिये कि लाला दीवान बहादुर कुंजबिहारी थापर एक देशभक्त था या अंग्रेजों का दलाल, गद्दार था ?

यह तो था वो फ्लैशबैक जिससे आप मित्रों का परिचित होना आवश्यक था ताकि आगे की कहानी का मर्म आप समझ सकें...

अब यह भी जानिए कि लाहौर का वह लाला दीवान बहादुर कुंज बिहारी थापर भारत में ब्रिटिश सरकार का कमीशन एजेंट था। आम आदमी की सामान्य भाषा में कहा जाए तो वो ब्रिटिश सरकार की दलाली का धंधा करता था। 1936 में इसने अपने लड़के प्राणनाथ की शादी जिस बिमला बशीराम सहगल से की थी उस बिमला बशीराम सहगल के भाई गौतम सहगल से 1944 में जवाहरलाल नेहरू ने अपनी सगी भांजी नयनतारा की शादी कर दी थी। यह वही नयनतारा सहगल है जिसने भारत में असहिष्णुता बहुत बढ़ जाने का राग अलापते हुए कुछ वर्ष पूर्व एवार्ड वापसी के कांग्रेसी गोरखधंधे की शुरुआत की थी। इसके अलावा लंबे समय से जब तब लेख लिखकर यह ज्ञान बांटती रही है कि RSS और सावरकर आदि अंग्रेजों के एजेंट थे।

इस रिश्तेदारी का एक साइड इफेक्ट यह भी हुआ था कि दीवान बहादुर कुंजबिहारी थापर के पुत्र प्राणनाथ थापर को जवाहरलाल नेहरू ने आज़ाद भारत में भारतीय सेना का सेनाध्यक्ष (आर्मी चीफ) नियुक्त किया था। इसी प्राणनाथ थापर के कार्यकाल में भारतीय सेना 1962 में चीन से पराजित हुई थी। उस युद्ध में हुईं भयंकर रणनीतिक-सामरिक चूकों और भूलों के परिणामस्वरूप केवल देश ही नहीं पूरी दुनिया में हुई थू थू के बाद अत्यन्त अपमानजनक परिस्थितियों में प्राणनाथ थापर को आर्मी चीफ का पद छोड़ना पड़ा था।

इस रोचक रोमांचक किन्तु अत्यन्त शर्मनाक कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण पात्र हैं करण थापर नाम का पत्रकार जो उसी गद्दार दीवान बहादुर लाला कुंजबिहारी थापर का पौत्र और प्राणनाथ थापर का पुत्र है। नेहरू खानदान से अपनी इसी रिश्तेदारी के कारण दिल्ली के लुटियनिया मीडिया दरबार का बेताज बादशाह रहा है करण थापर। आरएसएस और सावरकर को अंग्रेज परस्त सिद्ध करने के अभियान का सबसे बड़ा झंडाबरदार भी है करण थापर। इसके साथ अपने इंटरव्यू में केवल साढ़े तीन मिनट बाद गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी ने उसकी धूर्तता को बहुत बेआबरू कर के उसे अपने घर से खदेड़ने में कोई हिचक नहीं दिखाई थी। आजकल यह करण थापर वायर और प्रिंट नाम के युट्यूबिया वेबसाइटिया अड्डों पर मोदी विरोधी पत्रकारीय टोने-टोटके करने में जुटा रहता है।

उपरोक्त सच लोगों को खुलकर बताइये और उन तक जमकर पहुंचाइये।


Published: 13-04-2021

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